Rig ved 1.48.3
Ocean (समुद्र देव) is known by many names, one of them being 'Ratnakar'. Ocean is the treasure of many things that are precious. So people look at it with hope. It is a complete source. Similarly Yajmans with the help of Ritwik make offerings to divine Devtas with a special intent. Here we talk about Usha devi. In the previous mantra Usha is called the daughter of the Sky. So we request this daughter of Sky that like there are many precious stones in the Ocean, Similarly we request you to provide us precious wealth of Gyan, Prakash (Illumination), Compassion. We wait for you eagerly so that the Darkness, Agyaan, Worries, Pain, Unsatisfaction etc go away from our lives.
उ॒वासो॒षा उ॒च्छाच्च॒ नु दे॒वी जी॒रा रथा॑नां ।
ये अ॑स्या आ॒चर॑णेषु दध्रि॒रे स॑मु॒द्रे न श्र॑व॒स्यवः॑ ॥
Translation:
रथानाम - On chariot
जीरा - Inspiration.
उषा देवी: - Usha devi.
उच्छवास - To create morning.
समुद्र न- In the ocean.
च - And.
नु - In present.
उचछात - To create morning.
श्र्वस्यव - Desire for wealth.
समुद्र न् - The way this Ocean.
ये - That which.
अस्या - Theirs.
आचरनयेषु - On coming.
दध्रिर- To be ready.
Explanation:- Usha devi resided here first. We request her to come here today riding her Chariot. Those who desire pearls and diamonds should concentrate their minds towards Ocean. We are waiting for Usha devi.
Deep meaning: Ocean (समुद्र देव) is known by many names, one of them being 'Ratnakar'. Ocean is the treasure of many things that are precious. So people look at it with hope. It is a complete source. Similarly Yajmans with the help of Ritwik make offerings to divine Devtas with a special intent. Here we talk about Usha devi. In the previous mantra Usha is called the daughter of the Sky. So we request this daughter of Sky that like there are many precious stones in the Ocean, Similarly we request you to provide us precious wealth of Gyan, Prakash (Illumination), Compassion. We wait for you eagerly so that the Darkness, Agyaan, Worries, Pain, Unsatisfaction etc go away from our lives.
#मराठी
ऋग्वेद १.४८.३
उ॒वासो॒षा उ॒च्छाच्च॒ नु दे॒वी जी॒रा रथा॑नां ।
ये अ॑स्या आ॒चर॑णेषु दध्रि॒रे स॑मु॒द्रे न श्र॑व॒स्यवः॑ ॥
भाषांतर:
रथानाम - रथाचे,
जीरा - प्रेरक
उषा देवी: - उषा देव
उवास - निवास अथवा प्रभात
च - आणि
नू - वर्तमान मध्ये
उचछात - प्रभात करणे
श्र्वस्यव - धनाची इच्छा
समुद्र न् - ज्या पद्धतीने समुद्रात
ये - जे
अस्या: - ह्यांच्या
आचरनयेषु - गेल्यावर
दध्रिर - तयार ठेवले
भावार्थ:,जे उषा देवी प्रथम पण निवास करीत होत्या त्या रथावर सवार होऊन आज पण इथे यावेत, ज्यांना रत्नांची कामना असेल त्यांनी समुद्राकडे मन लावून राहावे,आम्ही पण उषा देवीची प्रतीक्षा करीत आहोत,
गूढार्थ:समुद्रास अनेक नावानी ओळखले जातो, तो रत्नांचा भांडार आहे, मनुष्यास त्या पासून काही अपेक्षा असते, इथे समस्त साधन आहेत, त्या अनुषंगाने साधक अथवा यजमान रित्त्विकच्या सहाय्याने दिव्य देवतांना काही वैशिष्टय पूर्ण प्रयोजननाने आहुती देणार, इथे उषादेवीचे वर्णन होत आहे,पूर्वी च्या मंत्रात उषा ला आकाशाची कन्या म्हटले आहे, तरी तीच पुत्रीस प्रार्थना केलेली आहे की ज्याप्रकारे समस्त रत्नानी रत्नमान सागर आहे त्याच प्रकारे ज्ञान, प्रकाश ज्ञान संवेदना सारखी अमूल्य रत्नांनसाठी प्रार्थना करीत आहोत, त्याच उषा देवींचे आगमनाची वाट पाहली जात आहे ज्याने आमच्या आयुष्यात तम अज्ञान कष्ट पीडा अशांती असंतोष समाप्त करावी।
#हिंदी
घ्रऋग्वेद १.४८.३
उ॒वासो॒षा उ॒च्छाच्च॒ नु दे॒वी जी॒रा रथा॑नां ।
ये अ॑स्या आ॒चर॑णेषु दध्रि॒रे स॑मु॒द्रे न श्र॑व॒स्यवः॑ ॥
अनुवाद:
रथानाम - रथ का।
जीरा - प्रेरक।
उषा देवी: - उषा देव।
उवास - निवास या प्रातः।
च - और।
नू - वर्तमान में।
उचछात - प्रभात करना।
श्र्वस्यव - धन की इच्छा।
समुद्र न् - जिस तरह समुद में।
ये - जो।
अस्या: - इनके।
आचरनयेषु - आने पर।
दध्रिरे- तैयार रखना।
भावार्थ:जो उषा देवी पहले भी यहां निवास करती थीं वह आज भी रथ पर सवार होकर आज भी आएं। जो रत्नों की कामना करते हैं वे समुद्र की ओर मन लगाए रहते हैं। उसी प्रकार हम उषादेवी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
गूढार्थ:- समुद्र के अनेकों नामों में एक रत्नाकर है। समुद्र रत्नों का घर है मनुष्य उनसे आशा लगाता है। यहां समस्त साधन हैं। ठीक उसी प्रकार साधक या यजमान ऋत्विज की सहायता से दिव्य देवताओं को किसी विशेष प्रयोजन से आहुति दे रहा है। यहां उषा का वर्णन हो रहा है। पूर्व मन्त्र में इन्हें आकाश की बेटी कहा गया है। उन्ही आकाश की पुत्री से प्रार्थना की जा रही है कि जिस प्रकार से समस्त रत्नों से रत्नमान सागर है उसी प्रकार उनसे ज्ञान प्रकाश, संवेदना जैसे अमूल्य रत्नों के लिए प्रार्थना हो रही है।उन्ही उषादेवी के आगमन की प्रतीक्षा हो रही है ताकि हमारे जीवन का तम, अज्ञान, कष्ट, पीड़ा, अशांति, असंतोष आदि की विदाई हो, यहां ऐसा भाव दर्शाया गया है।
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