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  • Writer's pictureAnshul P

RV 1.48.8


Rig Ved 1.48.8


Only scriptures alone will not help us in our life. There is a need of a guide and teacher at every level. On investigation we find that this world is unstable. After knowing this weakness we have to find out a good guide in order to overcome this. It is said that "विज्ञानार्थम अवगच्छे" meaning that we have to take definite meaningful steps to overcome this. Usha devi is requested to help us overcome the three types of Taaph namely Daihik, Daivik and Bhautik Taaph.


विश्व॑मस्या नानाम॒ चक्ष॑से॒ जग॒ज्ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ ।

अप॒ द्वेषो॑ म॒घोनी॑ दुहि॒ता दि॒व उ॒षा उ॑च्छ॒दप॒ स्रिधः॑ ॥


Translation:


विश्वम - All.


जगत - Worldly creatures.


अस्या - Theirs.


अक्षसे - Light.


ननाम - To bow.


सूनरी - Giving beautiful fruits.


ज्योतिः - Shone.


कृनोती - To do.


मघोनी: - Rich Usha.


दिवः - Of Sky.


दुहिता: - Daughter.


उषा: - Usha devi.


द्वेष: - Of jealous people.


अप उछत: - To take faraway.


Explanation In order to get a glimpse of Ushadevi, the whole world bows before her. The wealthy daughter of Sky,Usha devi is the one who shows our path, guides us. She also destroys the negative and jealous elements from our path.


Deep meaning:-Only scriptures alone will not help us in our life. There is a need of a guide and teacher at every level. On investigation we find that this world is unstable. After knowing this weakness we have to find out a good guide in order to overcome this. It is said that "विज्ञानार्थम अवगच्छे" meaning that we have to take definite meaningful steps to overcome this. Usha devi is requested to help us overcome the three types of Taaph namely Daihik, Daivik and Bhautik Taaph.





#मराठी


ऋग्वेद १.४८.८


विश्व॑मस्या नानाम॒ चक्ष॑से॒ जग॒ज्ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ ।

अप॒ द्वेषो॑ म॒घोनी॑ दुहि॒ता दि॒व उ॒षा उ॑च्छ॒दप॒ स्रिधः॑ ॥


भाषांतर:-


विश्वम - समस्त


जगत - जगातले प्राणी


अस्या - ह्यांचे


अक्षसे - प्रकाश


ननाम - नमस्कार करणे


सूनरी - सुंदर फळ देणारी


ज्योतिः - प्रकाशित


कृनोती - करणे


मघोनी: - धनवान उषा


दिवः - आकाशाची


दुहिता: - पुत्री


उषा: - उषा


द्वेष: द्वेषीचे


अप उछत: - दूर करण्यासाठी



भावार्थःसमस्त संसार उषा ह्यांच्या दर्शनार्थ वाकून नमन करता आहे, मार्ग प्रशस्त करणारी आणि मार्ग दर्शन करणारी, ऐशवर्यावान आकाशाची पुत्री उषा देवी ह्यांना विनंती आहे की मार्गाच्या सर्व अडचणी दूर करावेत,


गूढार्थ: आमच्या जीवनात मात्र शास्त्र घेऊन कार्य सम्पन्न होणार नाही, त्यासाठी एक योग्य आचार्य पण पाहिजे, परीक्षण करण्यावर ज्ञात होईल की संसार नितांत अस्थिर आहे,ह्याचे दोषांचे निवारणार्थ आचार्याकडे जाण्याची आवश्यकता आहे, म्हटले आहे विज्ञानार्थम अवगच्छे अर्थात है दोष दूर करण्याचे सार्थक प्रयास केले पाहिजे, तीन प्रकारांचे ताप म्हणजे दैहिक दैविक आणि भौतिक ताप दूर करण्यासाठी उषा देवी ह्यांना निवेदन केलेले आहे,




#हिंदी



ऋग्वेद १.४८.८


विश्व॑मस्या नानाम॒ चक्ष॑से॒ जग॒ज्ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ ।

अप॒ द्वेषो॑ म॒घोनी॑ दुहि॒ता दि॒व उ॒षा उ॑च्छ॒दप॒ स्रिधः॑ ॥


अनुवाद:-


विश्वम - समस्त।


जगत - जगत के प्राणि।


अस्या - इसके।

अक्षसे - प्रकाश।


ननाम - नमस्कार करना।


सूनरी - सुंदर फल देनेवाली।


ज्योतिः - प्रकाशित।


कृनोती - करना।


मघोनी: - धनवान उषा।


दिवः - आकाश की।


दुहिता: - पुत्री।


उषा: - उषादेवी।


द्वेष: द्वेषियों को।


अप उछत: - दूर करती है।



भावार्थःसमस्त संसार उषादेवी के दर्शन पाने पर झुक के नमन करता है।मार्ग प्रशस्त करने वाली मार्गदर्शन करने वाली ऎश्वर्यशाली आकाश की पुत्री उषादेवी हमारे मार्ग में मिलने वाले द्वेषपूर्ण लोगो को हटाती हैं।


गूढार्थ: हमारे जीवन में अकेले शास्त्र होने से कार्य नहीं बनेगा। उसके साथ आचार्य भी आवश्यक है।परीक्षण करने पर हमें ज्ञात होता है कि संसार नितांत अस्थिर है।इसके दोषों से परिचित हो जाने के बाद उनके निवारण हेतु अचार्य के पास जाना पड़ेगा।कहा गया है कि विज्ञानार्थम कुरुमेव अवगच्छे अर्थात इन दोषों को दूर करने के लिए सार्थक प्रयास करने चाहिए। तीन तापों को अर्थात दैहिक दैविक और भौतिक तापों को दूर करने के लिए उषादेवी से निवेदन किया गया है।

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