Rig Ved 1.48.7
An important spiritual aspect of this mantra is that Usha does not rise in anyone particular spot, but it rises everywhere as per its time. There is no pettiness but total impartiality because this Devi is Gyan Swarup. When she spreads it's radiance, all the evils are destroyed. Just like Usha destroys the darkness of a long or short night similarly Gyan Swarup Usha also helps people with pure mind to become radiant. This is total stage of Knowledge which has no afternoon or evening. All the worries, pain and difficulties go away. We should strive for this regularly.
ए॒षायु॑क्त परा॒वतः॒ सूर्य॑स्यो॒दय॑ना॒दधि॑ ।
श॒तं रथे॑भिः सु॒भगो॒षा इ॒यं वि या॑त्य॒भि मानु॑षान् ॥
Translation:
एषा - These.
शतम - On hundred chariots.
अयुक्त - Harness.
सुभगा - A good fortuned lady.
इयम - This.
उषा: - Usha.
परावत: - Very far.
सूर्यस्य - Of Surya.
उदयनत - From the rising spot.
अधि - From high up.
मानुषां - Of human.
अमी - That direction.
रथेभि - On chariot.
वि याति - Coming.
Explanation:- Usha devi has the power to join faraway places away from the place where the Sun rises. This good fortuned Usha devi is coming towards earth riding on hundreds of chariots.
Deep meaning:- An important spiritual aspect of this mantra is that Usha does not rise in anyone particular spot, but it rises everywhere as per its time. There is no pettiness but total impartiality because this Devi is Gyan Swarup. When she spreads it's radiance, all the evils are destroyed. Just like Usha destroys the darkness of a long or short night similarly Gyan Swarup Usha also helps people with pure mind to become radiant. This is total stage of Knowledge which has no afternoon or evening. All the worries, pain and difficulties go away. We should strive for this regularly.
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📷 Credit - @artistic_ambaar ji
Note - This is not Devi Usha's pic. Its Devi Parvati.
#मराठी
ऋग्वेद १.४८.७
ए॒षायु॑क्त परा॒वतः॒ सूर्य॑स्यो॒दय॑ना॒दधि॑ ।
श॒तं रथे॑भिः सु॒भगो॒षा इ॒यं वि या॑त्य॒भि मानु॑षान् ॥
भाषांतर:
एषा - या
शतम - शंभर रथाचे वर
अयुक्त - जुंपणे
सुभगा - सौभाग्यवती
इयम - हा
उषा: - उषा
परावत: - अधिक लांब
सूर्यस्य - सूर्याने
उदयनत - उदय स्थान पासून
अधि - वर
मानुषां - मनुषयांचे
अमी - जवळ
रथेभि - रथात
वि याति - येणे
भावार्थ: देवी उषा सूर्य उदित होणाऱ्या स्थानापासून दूरस्थ स्थानांना जोडणारी आहे, ही सौभाग्यवती उषा देवी मनुष्य लोककडे शेकडो रथांवर बसून येते.
गूढार्थ:- ह्या मंत्राचे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पक्ष आहे की उषा एकाच ठिकाणी नव्हे पण प्रत्येक ठिकाणी एकाच वेळी आपल्या काळानुसार तिचा प्राकट्य होतो. ह्या वेळी काहीही तुच्छता नव्हे पण निष्पक्षता असते.ही देवी ज्ञान स्वरूप आहे आणि ज्ञान कधीही पक्षपाती होत नाही. जेंव्हा तो प्रकाशित होतो तेव्हा सगळे विकार नष्ट होतात. ज्याप्रकारे ज्ञानरुपी उषा लहान किंव्हा मोठी रात्रीचे अंधकार नष्ट करते त्याच प्रमाणे शुद्ध आणि प्रखर बुद्धी युक्त pव्यक्ती ज्ञान प्राप्त होताच तेजस्वी होऊन जाते, हे सम्पूर्ण रूपाने ज्ञानाचे उदय काळ आहे,इकडे कधीही मध्यान्ह किव्हा उत्तरायण होत नसतो. ह्या अवस्थेत सगळे दुःख , अनर्थ आणि पीडा तिरोहित होतात.
#हिंदी
ऋग्वेद १.४८.७
ए॒षायु॑क्त परा॒वतः॒ सूर्य॑स्यो॒दय॑ना॒दधि॑ ।
श॒तं रथे॑भिः सु॒भगो॒षा इ॒यं वि या॑त्य॒भि मानु॑षान् ॥
अनुवाद:
एषा - इन।
शतम - सौ रथों को।
अयुक्त - जोता है।
सुभगा - सौभाग्यशाली।
इयम - यह।
उषा: - उषा।
परावत: - बहुत दूर ।
सूर्यस्य - सूर्य से।
उदयनत - उदय स्थान से।
अधि - बहुत ऊपर से।
मानुषां - मनुष्यों की।
अमी - ओर।
रथेभि - रथों में।
वि याति - आती है।
भावार्थ: देवी उषा सूर्य के उदय होनेवाले स्थान से कोसों दूर के स्थान को भी जोड़ लेती है। यह सौभाग्यशाली उषादेवी मनुष्य लोक की ओर सैकड़ो रथों पर सवार होकर आ रही है।
गूढार्थ:- इसका महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पक्ष है कि उषा एक स्थान पर ही नहीं बल्कि अपने कालानुसार सर्वत्र प्रकट होगी।इसमें कोई तुच्छता नही बल्कि निष्पक्षता है। ये देवी ज्ञान का स्वरूप है तो ज्ञान कभी भी पक्षपाती नहीं होता। जब वो प्रकाशित होगा तो सम्पूर्ण विकार को नष्ट करेगा। जिस प्रकार पुषा किसी भी छोटी या बड़ी रात्रि के अंधकार को नष्ट करती है उसी प्रकार ज्ञान रूपी पूषा भी शुद्ध बुद्धि वाले को और प्रखर एवम तेजस्वी बना देती है। यह पूर्ण रूप से ज्ञान का उदय काल है। यहां कोई मध्यान्ह या उत्तरायण नही होता। इस अवस्था में सारे दुख,अनर्थ पीड़ा आदि तिरोहित हो जाते हैं। इसीका निरंतर प्रयास करना चाहिए।
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