Rig Ved 1.48.10
By giving the name of Usha Devi, a very important message is being given. In reality the Jeev is Universe. He stays inside the body comprising of five elements or Panch-Mahabhoot. The individual self or Vyashthi and the total external forms collectively are also made up of five elements. We are discussing the interdependent state of these with Universe. One is real and the other is imaginary. Here Avidya is imaginary because it is just a reflection. Imagination is in the mind.Thoughts come through knowledge. knowledge is deeper than mind. You should be aware of your destination while following the right path. Our achievement while taking the right path should be recognition of Swarup. This is reality. Imagination is to go away from Swarup. In order to go back to Swarup one should be healthy, especially mind. Mind gets diseased through doubts, inner inclinations. We have to make efforts for mind to follow the right path. Right path makes the destination more easier.
विश्व॑स्य॒ हि प्राण॑नं॒ जीव॑नं॒ त्वे वि यदु॒च्छसि॑ सूनरि ।
सा नो॒ रथे॑न बृह॒ता वि॑भावरि श्रु॒धि चि॑त्रामघे॒
Translation:-
सुनरी - Oh the great leader! Usha devi!
विश्वस्य - All living beings.
प्राणनम - Efforts.
जीवनम - Life.
स्वे ही - Internal.
यत - Therefore.
वि उच्छति - To remove.
विभावरि - Special Radiance.
सा - That.
नः - For us.
बृहता - Mature.
रथेन - Along with Chariot.
Explanation:Oh the inspiration towards good path, Usha devi! Oh the one with great radiance! Your arising gives a new foundation to Living beings. You come riding on your chariot and listen to our appeal.
Deep meaning:- By giving the name of Usha Devi, a very important message is being given. In reality the Jeev is Universe. He stays inside the body comprising of five elements or Panch-Mahabhoot. The individual self or Vyashthi and the total external forms collectively are also made up of five elements. We are discussing the interdependent state of these with Universe. One is real and the other is imaginary. Here Avidya is imaginary because it is just a reflection. Imagination is in the mind.Thoughts come through knowledge. knowledge is deeper than mind. You should be aware of your destination while following the right path. Our achievement while taking the right path should be recognition of Swarup. This is reality. Imagination is to go away from Swarup. In order to go back to Swarup one should be healthy, especially mind. Mind gets diseased through doubts, inner inclinations. We have to make efforts for mind to follow the right path. Right path makes the destination more easier.
#मराठी
ऋग्वेद १.४८.१०
विश्व॑स्य॒ हि प्राण॑नं॒ जीव॑नं॒ त्वे वि यदु॒च्छसि॑ सूनरि ।
सा नो॒ रथे॑न बृह॒ता वि॑भावरि श्रु॒धि चि॑त्रामघे॒
भाषान्तर:
सुनरी हे उत्तम नेत्री उषा देवी
विश्वस्य - समस्त प्राणिलोकांचा
प्राणनम - प्रयत्न
जीवनम - जीवन
स्वे ही - आपल्या मध्ये
यत - ह्या साठी
वि उच्छति - हटविणे
विभावरि - विशेष प्रकाराचे प्रकाश
सा - ते
नः - आमच्यासाठी
बृहता - प्रौढ
रथेन - रथातून
भावार्थ:
हे उत्तम मार्ग दाखविणारे उषा! हे कांतीने परिपूर्ण उषा! आपल्या उदय समस्त प्राणीलोक ह्यास आधार देतो, आपण स्वतःचे रथावर बसून यावेत आणि आमचे आवाहन स्वीकारावे,
गूढार्थ:उषाचा दृष्टांत देऊन एक विशिष्ट बातमी सांगितलेली आहे, वास्तवात जीव हेच जगत आहे,ते ज्या शरीरामध्ये राहतो तो पण पंच भूतांचा आहे,वेष्टि आणि त्याच्या बाहेर समष्टी पण पंचभूत आहेत,ह्याहून पंचभूतांवर अनन्याश्रित होऊन संसाराची चर्चा केली जात आहे, ह्याचे वास्तविक अर्थ आणि काल्पनिक अर्थ आहेत, इथे अविद्या काल्पनिक आहे कारण ती नसतेच, मात्र त्याचा आभास असतो,कल्पना तर मनात होते,विचार बुद्धीने होते, मना पासून अधिक खोल असते,तर अबुद्धि चे त्यावर विचार चालू आहे,सुमार्ग वर जाण्यासाठी लक्ष्याचा माहिती असली पाहिजे, आमचे लक्ष्य आहे सुमार्गात स्वरूपाची उपलब्धी,हे वास्तविक बाब आहे, कल्पनिकता आहे स्वरूपाहुन दूर जाणे,स्वरूपात पोचण्यासाठी निरोगी होणे आवश्यक आहे, विशेष रुपाने मन, मनाचे रोग आहे विषयांचे आग्रह, भ्रम ,बुद्धीस सुमार्गावर चालविण्यासाठी प्रयास करत आहे, मार्ग बरोबर होईल तर लक्ष्य पण अचूक असतील
#हिंदी
ऋग्वेद १.४८.१०
विश्व॑स्य॒ हि प्राण॑नं॒ जीव॑नं॒ त्वे वि यदु॒च्छसि॑ सूनरि ।
सा नो॒ रथे॑न बृह॒ता वि॑भावरि श्रु॒धि चि॑त्रामघे॒
अनुवाद:
सुनरी - हे उत्तम नेत्री उषादेवी!
विश्वस्य - समस्त प्राणिजगत की।
प्राणनम - चेष्टाएँ।
जीवनम - जीवन।
स्वे ही - आपके भीतर।
यत - इसीलिए।
वि उच्छति - हटाना।
विभावरि - विशेष प्रकार का प्रकाश।
सा - वह।
नः - हमारे लिए।
बृहता - प्रौढ़।
रथेन - रथ के द्वारा।
भावार्थ:हे उत्तम मार्ग की प्रेरणा देनेवाली उषा! हे कांति से परिपूर्ण उषा!आपके उदय से संसार के प्राणिजगत को आधार मिलता है।आप अपने रथ पर सवार होकर आएं और हमारा आवाहन स्वीकार करें।
गूढार्थ:- इस महत्वपूर्ण मन्त्र में उषा के दृष्टांत से विशेष बात कही गई है।वास्तव में यह जीव जगत ही है।वह जिस शरीर में रह रहा है, वह भी पांचभूतों का है। वेष्टि और उसके बाहर समष्टि भी पंचभूत है। इसमें पंचभूतों का अनन्याश्रित होकर जगत की चर्चा चल रही है।इसमें एक वास्तविक अर्थ है और एक काल्पनिक अर्थ है। यहां अविद्या को काल्पनिक कहा गया है क्योंकि वह वास्तव में नही है मात्र आभास है। कल्पना तो मन में होती है।विचार बुद्धि से होता है।मन से एक कदम गहरा बुद्धि है।तो अबुद्धि में उसपर विचार चल रहा है।सुमार्ग पर चलने के लिए मंजिल कस पता होना चाहिये।हमारी मंजिल है सुमार्ग में स्वरूप की उपलब्धि।यह वास्तविक बात है। काल्पनिक बात है स्वरूप से हट जाना। वापस स्वरूप तक पहुचने के लिए निरोग होना चाहिए।विशेषतः मन को।मन का रोग है विषयों का आग्रह भ्रम आदि है।बुद्धि को सुमार्ग पर चलाने का प्रयास किया जा रहा है।रास्ता सही होगा तो मंजिल आसान हो जाएगी।
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