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Rv 1.10.2

Writer's picture: Anshul PAnshul P

Rig Ved 1.10.2


यत्सानोः सानुमारुहद्भूर्यस्पष्ट॒ कर्त्वं ।

तदिंद्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिरेजति ॥


Translation:-


यत् - When.


सानोः - From one mountain to another.


सानुम् - To the other mountain.


आरूहत् - Climb.


भूरिः - To take more effort.


कर्त्त्वम् - To do the work/duty.


इन्द्रः - Indradev.


अर्थम् - Reason.


चेतति - To know.


यूथेन - Along with Marudgans.


वृष्णिः - To fulfill the aim.


एजति - Come.


अस्पष्ट - To start.


तत् - Then.


Explanation :-

This mantra describes the benevolence of Indradev towards his devotees. Once the devotee decides to conduct som yagya,he starts collecting the materials required for this yagya. In order to collect somlata(Divine Herbal plant) he has to traverse from one mountain to another mountain. Looking at this hard work and deep resolution ,The benevolent Indradev along with Marudgans comes there to fulfill the wishes of his devotees.


Deep meaning:- Your sincere efforts will always be recognized by god and specially by doing Yagya.


#मराठी


ऋग्वेद १.१०.२


यत्सानोः सानुमारुहद्भूर्यस्पष्ट॒ कर्त्वं ।

तदिंद्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिरेजति ॥


भाषांतर:-


यत् - जेंव्हा.


सानोः - एका डोंगर तून.


सानुम् - दुसऱ्या डोंगर वर.


आरूहत् - चढणे.


भूरि - अधिक.


कर्त्त्वम् - कर्म करणे.


अस्पष्ट - प्रारंभ करणे.


तत् - जेंव्हा.


इन्द्रः - इंद्रदेव.


अर्थम् - प्रयोजन.


चेतति - माहित होणे.


वृष्णिः - कृपा करणे.


यूथेन - मरूदगण बरोबर.


एजति - येतात.


भावार्थ :-

ह्या मंत्रा मध्ये असे दर्शविले आहे की यजमान सोम यज्ञाचे संकल्प घेउन त्या यज्ञात लागणारी सामग्री गोळा करतात. त्यात लागणारी सोमवल्लरी शोधण्याचे दुसाध्य कार्या साठी ते एका डोंगरा तून दुसऱ्या डोंगरावर शोध करण्यासाठी त्यांना जास्त परिश्रम करावा लागतो. ह्याची जाणीव इंद्रदेवांना असते. यजमानांचे संकल्प आणी परिश्रमामुळेच कृपाळू इंद्रदेव आपल्या सोबत मरूदगणांना पण घेउन येतात आणी आपल्या भक्तांची मनोकामना पूर्ण करतात.



#हिंदी


ऋग्वेद १.१०.२


यत्सानोः सानुमारुहद्भूर्यस्पष्ट॒ कर्त्वं ।

तदिंद्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिरेजति ॥




यत् - जब( सोमलता ढूंढते समय)।


सानोः - एक पर्वत से।


सानुम् - दूसरे पर्वत तक।


आरूहत् - चढना।


भूरि - अधिक परिश्रम करना।


अस्पष्ट - आरंभ करना।


कर्त्वम् - कर्म करना।


इन्द्रः - इंद्रदेव ।


अर्थम् - प्रयोजन ।


चेतति - जानना।


यूथेन - मरूदगणों के साथ।


वृष्णिः - उद्देश्य सिद्ध करनेवाले ।


तत् - तब।


एजति - आना।


भावार्थ :-

इस मंत्र में यह बतलाया गया है कि यजमान सोमयज्ञ का संकल्प लेते हैं और फिर उसकी सामग्री इकठ्ठा करने में लग जाते हैं। उसमें प्रयुक्त होनेवाली सोमवल्लरी की खोज में एक पर्वत से दूसरे पर्वत की दुसाध्यता उन्हे पता चलती है। इस परिश्रम के दृढ़ संकल्प को ध्यान में रखकर कृपालु इंद्रदेव जो अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं, वे उस यज्ञकर्म में मरूदगणों के साथ आकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।




https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1176878786966482944?s=19

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