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Writer's pictureAnshul P

Rv 1.11.2

Rig Ved 1.11.2


सख्ये त इंद्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते ।

त्वामभि प्र णोनुमो जेतारमपराजि तं ॥


Translation:-


ते+सख्ये - Indradev's graceful friendship.


इंद्र - Oh Indradev!


वाजिनः - Rich in strength and wealth.


मा+भेम - Fearless.


शवसः+पते - The protector of strong people.


त्वाम - Yours.


अभि+प्र+णोनुमः - We bow to you this way.


जेतारम् - Victorious in war.


अपराजितम् - Undefeated.


Explanation:-As per this mantra it is common belief that man always bows and takes protection from the powerful and wealthy one's. No one is as strong and wealthy as Indradev. So all desire his friendship. This fact is explained in this mantra. It says that Oh Indradev! Under your graceful friendship and protection we can become more wealthy and strong. We will always emerge victorious under your patronage by offering our devotion towards you. This way we can overcome the difficulties in life.



#मराठी


ऋग्वेद १.११.२


सख्ये त इंद्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते ।

त्वामभि प्र णोनुमो जेतारमपराजितं ॥


भाषांतर :-


ते+सख्ये - इन्द्रदेवांची मित्रता.


इंद्र - इन्द्रदेव!


वाजिनः - धन धान्य आणी बळाने संपन्न.


मा+भेम - निर्भीड.


शवसः+पते - हे बलिष्ठांचे पालनकर्ता!


त्वाम् - आपले.


अभि+प्रण+णोनुमः - सर्व प्रकारे प्रणाम करणे.


जेतारम - युद्धात प्रत्येक वेळी विजयी.



अपराजितम् - अपराजित.


भावार्थ :-


ह्या मंत्राचा अभिप्राय हे असू शकतो की व्यक्ती आपल्या हून अधिक बळशाली आणी संपन्न व्यक्तीचा आश्रय घेतो. इन्द्रदेवांहून अधिक श्रेष्ठ कुणी नाही.म्हणुनच त्यांचे आश्रयात राहूं. मंत्रा प्रमाणे हे सांगितले गेले आहे की आम्ही इंद्राचे आश्रयात राहूनच बळवंत आणी निर्भय बनूं.त्यांची अनुग्रह पूर्ण मित्रता मध्ये राहून अपराजित राहून त्यांची भक्ती करून जीवन संग्रामात अपराजित राहू.



#हिंदी


ऋग्वेद १.११.२


सख्ये त इंद्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते ।

त्वामभि प्र णोनुमो जेतारमपराजितं ॥


अनुवाद :-


ते+सख्ये - इंद्रदेव की अनुग्रह युक्त मित्रता ।


इंद्र - इन्द्रदेव!


वाजिनः - बल और अन्न से संपन्न ।


मा+भेम - निडर ।


शवसः+पते - बलवानो के रक्षक ।


त्वाम् - आपको।


अभि+प्रण+णोनुमः - हर प्रकार से प्रणाम करना।


जेतारम् - युद्ध में अपराजित ।


अपराजितम् - अपराजेय।


भावार्थ :-


इस मंत्र का अभिप्राय है कि जीवन संग्राम में हर व्यक्ति अपने से अधिक मजबूत और संपन्न व्यक्ति का आश्रय लेना चाहता है। इन्द्रदेव से अधिक बलिष्ट और संपन्न कोई नहीं।उन्ही का आश्रय सर्वश्रेष्ठ है। मंत्र में यही व्यक्त करते हुए कहा गया है कि हे इंद्र! आपकी अनुग्रह युक्त मित्रता से हम बलवान और निर्भीक बने। किसी से पराजित न होते हुए विजयी बने और प्रत्येक क्षण आपकी भक्ति करते हुए आपकी तरह जीवन संग्राम में सफल होते रहें।




https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1189570301752991744?s=19

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