top of page
Search
Writer's pictureAnshul P

Rv 1.13.11

Rig Ved 1.13.11


अव सृजा वनस्पते देव देवेभ्यो॑ हविः ।

प्र दातुरस्तु चेतनं ॥


Translation:-


अव सृज - To create.


देव वनस्पते - Oh Vanaspati dev!


देवेभ्यः - Deities accepting offerings.


हविः - Foodgrains in the form of offerings.


प्र दातुः - Of Yajmans.


अस्तु - Unabated due to your grace.


चेतनम् - Science of the other world(parlok).


Explanation:- This mantra is addressed to Agni named "Vanaspati". He is requested to provide substantial amount of foodgrains to the devotees so that the devotees can offer the same to the other world or heaven.This implies that rain provide vegetation(nature) which in turn provides foodgrains. This food is then provided to deities in the form of Yagya which in turn benefits mankind.


Deep meaning:- Here significance is given to nature and its cycle. How important Nature is for the mankind.


#मराठी



ऋग्वेद २.१३.११


अव सृजा वनस्पते देव देवेभ्यो॑ हविः ।

प्र दातुरस्तु चेतनं ॥


भाषांतर:-


अव सृज - सृजन करणे.


देव वनस्पते - हे वनस्पती देव!


देवेभ्यः - हवि ग्रहण करणाऱ्या देवांचा.


हविः - हविच्या रूपात अन्न.


प्र दातुः - यजमानांचे.


अस्तु - आपली कृपेने अ‌खंड राहिल.


चेतनम् - परलोक विषयक विज्ञान.


भावार्थ :- ह्या मंत्रात " वनस्पती " नावाचे अग्निला संबोधले आहे.त्याना प्रार्थना करून अस म्हटलं आहे की ते पर्याप्त प्रमाणात आपल्या भक्तांना अन्न प्रदान करतील तर यजमान ते परलोक बुद्धि ने त्या अन्नाचा दान करतील.अभिप्रेत हे की पर्जन्यानी औषधी आणी औषधी ने अन्न उत्पन्न होतो.हेच अन्न देवांना पण समर्पित होतो ज्याने यज्ञकर्मात अभिवृद्धि आणी मनुष्याचा हित संपादित होतो.



#हिंदी


ऋग्वेद १.१३.१२


अव सृजा वनस्पते देव देवेभ्यो॑ हविः ।

प्र दातुरस्तु चेतनं ॥


अनुवाद :-


अव सृज - अवसर्जन करें।


देव वनस्पते - हे वनस्पति देव!


देवेभ्यः - हवि ग्रहण करनेवाले देवों को।


हविः - हवि रूप अन्न का।


प्र दातुः - यजमान का।


अस्तु - आपकी कृपा से अक्षुण्ण बना रहे।


चेतनम् - परलोक विषयक विज्ञान ।


भावार्थ :-इस मंत्र में "वनस्पति" नामक अग्नि को संबोधित किया गया है। उनसे प्रार्थना की गई है कि वह पर्याप्त प्रमाण में अन्न अपने भक्तों को प्रदान करें,जिससे कि यजमान भी परलोक बुद्धि से उस अन्न का दान कर सकें। अभिप्राय यह है कि पर्जन्य से औषधियां और औषधि से अन्न उत्पन्न होता है। यही अन्न देवों को भी समर्पित किया जाता है जिससे यज्ञकर्म की अभिवृद्धि और मनुष्यों का हित संपादित होता है।




https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1207708376337178625?s=19

3 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


Post: Blog2_Post
bottom of page