Rig Ved 1.13.5
स्तृणीत बर्हिरानुषग्घृतपृष्ठं मनीषिणः ।
यत्रामृतस्य चक्षणं ॥
Translation:-
स्तृणीत - To sit near the sacrificial fire.
बर्हि - Mat made of straw(kusha).
अनुषकि - Mutually.
घृतपृष्टम् - To keep the ghee pot on the straw mat
मनीषिणः - The priests
यत्र - Here.
Explanation:-
This mantra is addressed to Agni named "Barhi".This mantra states that the priests should take into account of all the 4 directions & lay the kusha(grass) mat in such a way that they are linked mutually. Also the pot of ghee(Clarified butter) should be placed in such a way on the mat(grass) that it is visible from everywhere.
Hidden meaning:-Ghee is placed in such a way in front of public that all Sanantan dharm followers are attracted towards Yagya.
#मराठी
ऋग्वेद १.१३.५
स्तृणीत बर्हिरानुषग्घृतपृष्ठं मनीषिणः ।
यत्रामृतस्य चक्षणं ॥
भाषांतर :-
स्तृणीत - यज्ञाचे वेदी वर बसणे.
बर्हिः - कुशा ला.
अनुषक - परस्परे.
घृतपृष्ठम् - आसन वर ठेवणे.
मनीषिणः - ऋत्विक लोक.
यत्र - जिकडे (आसन वर).
अमृतस्य - अमृत समान.
चक्षणम् - दर्शन होत राहणे.
भावार्थ :-ह्या मंत्रात "बर्हि"नावांचे अग्नि ला संबोधन केले गेले आहे.ह्या मंत्रा मध्ये याज्ञिकांना निर्देशित केले आहे की सर्व दिशेने लक्ष्य करून कुशाचे आसन अशा प्रकारे टाकण्यात यावे की ते परस्पर एक दुसर्याच्या संबद्ध होतिल.ह्या आसनावर तुपाचा पात्र अश्या रीती ने ठेवण्यात यावा की तो सर्व दिशेने दिसला पाहिजे.
#हिंदी
ऋग्वेद १.१३.५
स्तृणीत बर्हिरानुषग्घृतपृष्ठं मनीषिणः ।
यत्रामृतस्य चक्षणं ॥
अनुवाद :-
स्तृणीत - यज्ञकी वेदी पर बैठाना।
बर्हिः - कुश केा।
आनुषक् - परस्पर में।
घृतपृष्ठम् - पृष्ठपर घी रखना।
मनीषिणः - ऋत्विज लोग ।
यत्र - जहां(कुश पर)।
अमृतस्य - अमृत के समान।
चक्षणम् - दर्शन होता रहे।
भावार्थ :- इस मंत्र मे "बर्हि" नामक अग्नि को संबोधित किया गया है। इस मंत्र के अनुसार याज्ञिक को कहा गया है कि सभी दिशाओं को लक्ष्य करके कुश के आसन को इस प्रकार बिछाएँ कि वे स्वतः परस्पर एक दूसरे से सम्बद्ध हों। उस आसन पर घी का पात्र अच्छी तरह से रखा हो और उसके दर्शन सभी को हो सकें।
https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1204436020135186434?s=19
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