Rig Ved 1.13.6
वि श्रयंतामृतावृधो द्वारो देवीरसश्चतः ।
अद्या नूनं च यष्टवे ॥
Translation:-
वी श्रयंताम् - To get opened.
ऋतावृधः - Increases the yagya's glory.
द्वारः - Door towards yagya shala.
देवीः - Divine.
असश्चतः - Non destructive.
अद्य - Today.
नूनम् - Surely.
यष्टवे - To perform yagya.
Explanation:-
This mantra is addressed to Agni named "Devi dwar". It says during the morning time the door of the yagya shala(place where sacred fire is lit) is opened. This deed of divine yagya makes the door of this yagyashala also divine. Since yagya is the best and divine deed, Therefore the door also becomes divine.
Deep meaning:-
Yagya Will not only make u positive but also the surrounding environment. Hence we should always perform Yagya in regular intervals.
#मराठी
ऋग्वेद १.१३.६
वि श्रयंतामृतावृधो द्वारो देवीरसश्चतः ।
अद्या नूनं च यष्टवे ॥
भाषांतर :-
वि श्रयंताम् - उघडणे.
ऋतावृधः - यज्ञाची अभिवृद्धि करणारा.
द्वारः - यज्ञशाळेचा द्वार.
देवीः - दिव्य.
असश्चतः - अविनाशी.
अद्य - आज.
नूनम् - निश्चित.
यष्टवे - यज्ञ करण्यासाठी.
भावार्थ :- ह्या यज्ञात "देवी द्वार " अग्नि ला संबोधन केलेले आहे.प्रातः काळी यज्ञस्थळाचा दिव्य द्वार उघड्ण्यात येतो. ह्या द्वाराला दिव्य म्हणतात कारण बहुतेक हे असणार की यज्ञ श्रेष्ठ आणी उत्तम कर्म आहे.म्हणून ह्या पवित्र कार्याचा द्वार पण पवित्र असणार.
#हिंदी
ऋग्वेद १.१३.६
वि श्रयंतामृतावृधो द्वारो देवीरसश्चतः ।
अद्या नूनं च यष्टवे ॥
अनुवाद :-
वि श्रयंताम् - खुलना।
ऋतावृधः - यज्ञ की अभिवृद्धि करनेवाले ।
द्वारः - यज्ञशाळा के द्वार।
देवीः - दिव्य।
असश्चतः - अविनाशी।
अद्यः - आज।
नूनम् - निशिचत ।
यष्टवे - यज्ञ करने हेतु।
भावार्थ :- इस मंत्र में "देवी द्वार" नामक अग्नि को संबोधित किया है। यहां कहा गया है कि प्रातः के समय यज्ञशाळा के दिव्य द्वार खोले जाते हैं। इसे दिव्य इसलिए कहा गया है कि यजमान इन्हीं द्वार से होकर भीतर जाते हैं ।यज्ञ ही सर्वश्रेष्ठ एवम् उत्तम कर्म है। इसीलिए पवित्र यज्ञ के कारण द्वार भी पवित्र कहलाता है।
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