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Rv 1.14.3

Rig Ved 1.14.3


इंद्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगं ।

आदित्यान्मारुतं गणं ॥


Translation:-


इंद्रवायू - Deities named Indradev and Vaayu.


बृहस्पतिम् - Deity named Brahaspati.


मित्राग्निं - Deities named Mitra and Agni.


पूषणम् - Deity named Pusha.


भगम् - Bhug.


आदित्यान् - Deity named Aaditya.


मारुतं गणम् - Marutgan's.


Explanation: - In the previous mantra we have read that Agnidev is requested to bring along other deities for the Yagya.This mantra elaborately mentions their name's. But in this mantra, Agni is supposed to be inviting himself in this Yagya. Rishi Saayan explains this nicely.He says that Agni in form of Brahman is inviting the performing deity of Yagya, namely Agnidev. Brahmins(By Karma) are considered to be Agni roop by the society. Similarly Marut and Vaayu words are both written jointly. Vaayu and Marut are one and the same.Besides these two, the other deities who are invited are Aaditya, Bhag, Poosha and Brahaspati.


Hidden meaning:- It is said that Yagya karma is impossible without the presence of all Swarg lok deities. Also these deities are identified and represent as our part of Body


#मराठी


ऋग्वेद १.१४.३


भाषांतर:-


इंद्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगं ।

आदित्यान्मारुतं गणं ॥


इंद्रवायू - इंद्र आणि वायु.


बृहस्पतिम् - बृहस्पति


मित्राग्निम् - मित्र आणि अग्नि.


पूषाणम् - पूषा


भगम् - भग.


आदित्यान् - आदित्य.


मारुतं गणम् - मरूत् गण.


भावार्थ :- पूर्वीच्या मंत्रात अग्निदेवांना सर्व देवांना बरोबर आणन्याचे निवेदन केले होते.ह्या मंत्रात ही अग्निदेव समेत देवतांना नावाने बोलवले आहे. प्रश्न हे आहे की अग्नि स्वतःला कसे बोलवू शकतो? ह्याचे उत्तर ऋषी सायन ने समजुन सांगितले आहे की ब्राह्मण रूपी अग्नि हे अग्निदेवांना निमंत्रित करत आहे,कारण समाजात ब्राह्मणाला अग्नि रूप मानले आहे.नंतर वायु आणि मरूत, दोघांना बरोबर घेतल्या ने, ते पण का एकच आहेत की वेगळे? सायण ऋषिने दोघांना परत एकच मानले आहे.ह्या देवांच्या अतिरिक्त आदित्य, भग,मित्र आणि पूषा नावांचे देवांना निमंत्रित केलेले आहे.



#हिंदी


ऋग्वेद १.१४.३


इंद्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगं ।

आदित्यान्मारुतं गणं ॥


अनुवाद :-


इंद्रवायू - इन्द्र और वायु ।


बृहस्पतिम् - बृहस्पति देव।


मित्राग्निम् - मित्र और अग्नि।


पूषणम् - पूषा।


भगम् - भग।


आदित्यान् - आदित्यों को।


मारुतं गणम् - मरूत् गण।


भावार्थ :- इसके पूर्व के मंत्र में अग्निदेव से सभी देवताओं को यज्ञकर्म में लाने का निवेदन किया गया था।इस मंत्र में उन देवताओं का नाम लेकर निमंत्रित किया गया है।चूंकि यहां अग्नि को निमंत्रित किया गया है तो क्या अग्नि को अग्नि ही निमंत्रित कर रहे हैं? सायण ऋषि के अनुसार ब्राह्मण रूपी अग्नि यज्ञ निष्पादक अग्नि को निमंत्रित करता है। समाज में ब्राह्मण को अग्नि रूप ही माना गया है। इसी तरह वायु और अग्नि को एक साथ पढा गया है।सायण ऋषि इन्हें भी एक देव माना है। इस यज्ञ में इनके अलावा आदित्य, पूषा, भग और बृहस्पति को भी निमंत्रित करते हैं।




https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1210234466188308480?s=19

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