Trikaal Sandhya Poojan Rig Ved 1.15.4
अग्ने देवाँ इ॒हा वह सादया योनिषु त्रिषु ।
परि भूष पिब ऋतुना ॥
Translation:-
अग्ने - Oh Agnidev!
देवान् - For deities.
इह - Here.
आ वह - To call.
सादय् - To sit.
त्रिषु योनिषु - All the three times.
परिभूष - To decorate.
पिब - Drink.
ऋतुना - Suitable for all seasons.
Explanation:- This mantra is addressed to Agnidev. He is requested to bring along all the deities and make them sit throughout the day namely Mornings, Afternoons and Evenings. Agnidev is also requested to decorate the deities and offer them Somras. He is also requested to drink this Somras along with the deities.
Deep meaning: This mantra emphasises the idea of Trikaal Sandhya Pooja, wherein the deities are worshipped three times in a day(Morning, Afternoon and Evenings).
#मराठी
ऋग्वेद १.१५.४
अग्ने देवाँ इ॒हा वह सादया योनिषु त्रिषु ।
परि भूष पिब ऋतुना ॥
भाषांतर :-
अग्ने - हे अग्निदेव!
देवान् - देवांना.
इह - इकडे.
आ वह - बोलवणे.
सादय - बसवणे.
त्रिशु योनिषु - तीन्ही वेळात.
परिभूष - अलंकृत करणे.
पिब - प्राशन करणे.
ऋतुना - ऋतुनुकूल.
भावार्थ :- ह्या मंत्रात अग्निदेवांना संबोधन करून म्हटलं आहे की हे अग्निदेव! आपण सर्व देवांना तीन्ही वेळ म्हणजे सकाळी,दुपारी आणि संध्याकाळी बोलवून ह्या यज्ञकर्मात बसवून घ्या.त्यांना अलंकृत करून ऋतुनुकूल सोमरसाचा स्वतः प्राशन करून देवांना पण देण्याची कृपा करा.
#हिंदी
ऋग्वेद १.१५.४
अग्ने देवाँ इ॒हा वह सादया योनिषु त्रिषु ।
परि भूष पिब ऋतुना ॥
अनुवाद :-
अग्ने - हे अग्निदेव!
देवान् - देवों को।
इह - इस यज्ञकर्म में।
आ वह - बुलाना।
सादय - बैठाना ।
त्रिषु योनिषु - तीनों समय।
परिभूष - अलंकृत करना।
पिब - पान करना।
ऋतुना - ऋतु के अनुकूल।
भावार्थ :-इस मंत्र में अग्निदेव को संबोधित करते हुए कहा गया है कि हे अग्निदेव! आप देवताओं को इस यज्ञकर्म में तीनो समय(प्रातः, मध्यान्ह और संध्या) बुलाकर उन्हे आसीन कीजिए। साथ ही उन देवताओं को अलंकृत करके स्वयं सोमपान करें और देवताओं को भी सोमरस पिलाएं।
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