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Rv 1.15.8

Rig Ved 1.15.8


द्र॒वि॒णो॒दा द॑दातु नो॒ वसू॑नि॒ यानि॑ शृण्वि॒रे ।

दे॒वेषु॒ ता व॑नामहे ॥


Translation:-


द्र॒वि॒णो॒दाः - Deities providing Wealth.


द॑दातु - Giving away.


नः - We.


वसू॑नि॒ - All types of Wealth.


यानि॑ - which.


श्रृण्विरे - Have been listening.


दे॒वेषु॒ - For the Deities.


ता - They.


व॑नामहे - Dedicate.


Explanation:-This mantra says that the Yajmans should request the Wealth giving Deities to provide all types of Wealth adequately. This Wealth should then be dedicated to the Deities in the form of offerings. The intent behind this means that the Wealth giving deities bless the devotees with excellent Wealth to the deserving devotee.The devotees should in return use this wealth in the best possible way, meaning that it should be spent on worshipping deities in the form of offerings.



Deep Meaning:-

Rig Ved says that we should spent our maximum wealth and money on Dharmik related things. No misery in Dharmik related stuffs.


#मराठी



ऋग्वेद १.१५.८


द्र॒वि॒णो॒दा द॑दातु नो॒ वसू॑नि॒ यानि॑ शृण्वि॒रे ।

दे॒वेषु॒ ता व॑नामहे ॥


भाषांतर :-


द्र॒वि॒णो॒दाः - धन प्रदान करणारे देव.


द॑दातु - देणे.


नः - आपल्यास.


वसू॑नि॒ - सर्व प्रकार चे धन.


यानि॑ - जे.


श्रृण्वि॒रे - ऐकण्यात येणे.


दे॒वेषु॒ - देवांना.


ता - ते.


व॑नामहे - अर्पण करणे.


भावार्थ :-ह्या मंत्रात धन प्रदान करणारे देवांना यजमानानी अशी इच्छा व्यक्त केलेली आहे की देवांनी असे धन प्रदान करावे ज्याचा उपयोग पुनः हे हविश साठी अर्थात ते धन देव कार्यात समर्पित करण्यात यावी.ह्याचे अभिप्रेत हे धन देणारे देवाने उत्तम करणारे यजमानांना अति उत्तम धन प्रदान केले पाहिजे. म्हणून यजमानांनी ते धन देव कार्यात समर्पित करावे.


#हिंदी


ऋगवेद१.१५.८


द्र॒वि॒णो॒दा द॑दातु नो॒ वसू॑नि॒ यानि॑ शृण्वि॒रे ।

दे॒वेषु॒ ता व॑नामहे ॥


अनुवाद :-


द्र॒वि॒णो॒दाः - धन प्रदान करानेवाले देव।


द॑दातु - दें(देना)।


नः - हमें।


वसू॑नि॒ - सभी प्रकार के धन।


यानि॑ - जो।


श्रृण्वि॒रे - सुनते आएं हैं।


दे॒वेषु॒ - देवों को।


ता - वे


व॑नामहे - अर्पण करते हैं।


भावार्थ :- इस मंत्र में धन प्रदान करनेवाले देवों से एेसे धन को प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की गयी है जिसका पुनः उपयोग इस हवि के लिए हो अर्थात वह देवकार्य के लिए ही समर्पित हो। अभिप्राय यह कि धन देनेवाले देव उत्तम कार्य करनेवाले यजमान को अति उत्तम प्रकार का धन प्रदान करते हैं। इसीलिए यजमानो को भी वह धन देवकार्यों में ही समर्पित करना चाहिए।



https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1222362564161687553?s=19

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