Importance of Somyagya and dev guru Brahaspati is highlighted in Rig Ved 1.18.1
सोमानं स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते ।
कक्षीवंतं य औशिजः ॥
Translation:-
सोमानम् - Somyagya performing Yajmans.
स्वरणम् - Glorious .
कृणुहि - To make.
ब्रह्मणस्पते - Oh Brahaspati dev!
कक्षीवंतम् - Saint named Kukshivaan.
यः - Which.
औशिजः - Son of Useej.
Explanation:-This mantra is addressed to Brahaspati dev.It says that as Brahaspati dev had made kukshivaan famous amidst the devta's ,similarly the yajmans performing Somyagya should also get this glory. Also, he should make them famous like Kukshivaan.
Deep meaning:- Importance of Somyagya and dev guru Brahaspati is highlighted.
#मराठी
ऋग्वेद १.१८.२
सोमानं स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते ।
कक्षीवंतं य औशिजः ॥
भाषांतर :-
सोमानम् - सोमयज्ञ करणारे.
स्वरणम् - तेजस्वी.
कृणुहि - बनवून देणे.
ब्रह्मणस्पते - हे ब्रहस्पतिदेव!
कक्षीवंतम् - कुक्षिवान नावाचे ऋषी.
यः - जे
औशिजः - उशिज पुत्र.
भावार्थ :-ह्या मंत्राचा आशय हे की ब्रहस्पतिदेवांना असे विशेष आग्रह केलेले आहे की आपण ज्या प्रमाणे कुक्षिवानाला देवतां मध्ये प्रसिद्ध केले होते त्याच प्रमाणे सोमयज्ञ करणारे यजमानांना तेजस्वी बनवावे.आणि त्याच प्रमाणे त्यांना प्रसिध्द करावे.
#हिंदी
ऋग्वेद १.१८.१
सोमानं स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते ।
कक्षीवंतं य औशिजः ॥
अनुवाद :-
सोमानम् - सोमयज्ञ करनेवालों के।
स्वरणम् - तेजस्वी।
कृणुहि - बनाइए।
ब्रह्मणस्पते - हे ब्रहस्पतिदेव!
कक्षीवंतम् - कुक्षिवान नामक ऋषि।
यः - जो।
औशिजः - उशिज पुत्र।
भावार्थ :-इस मंत्र में ब्रहस्पतिदेव से विशेष रूप से सोमयज्ञ करनेवालों के लिए प्रार्थना की है। जिस तरह ब्रहस्पतिदेव ने कुक्षिवान को देवताओँ के समूह में प्रसिद्ध किया था,उसी प्रकार सोमयज्ञ करनेवालों को तेजस्वी बनाकर प्रसिद्ध करें।
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