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Writer's pictureAnshul P

RV 1.22.19

Lord Vishnu is our greatest Friend.He is always present within our soul according to Rig Ved 1.22.19


विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे ।

इंद्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑ ॥


Translation:-


विष्णोः॒ - Of Vishnudev.


कर्मा॑णि - Of deed or karma


पश्यत॒ - To see.


यतः - Whose.


व्र॒तानि॑ - A pledge or a Vow.


पस्प॒शे - Rite or ritual.


इंद्र॑स्य॒ - Of Indra.


युज्यः॒ - Ablest.


सखा॑ - Friend.


Explanation:-This mantra portrays the importance of Lord Vishnu. Here he is described as Indra's friend. Indra also means creatures or beings. In this mantra, Indra means creatures or beings, that creature who depends on Praan(Vishnu).So vishnu is the friend of creatures(us). This whole universe is run by Vishnu's deed or karma continuously.We depend on Vast and Comprehensive Vishnu to fulfill our deeds.We can perform our Karma aided by Vishnu's deeds or karma.


Deep meaning:- Lord Vishnu is our greatest Friend.He is always present within our soul.



#मराठी


ऋग्वेद १.२२.१९


विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे ।

इंद्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑ ॥


भाषांतर :-


विष्णोः॒ - विष्णू देवांचा.


कर्मा॑णि - कर्मांचा.


पश्यत॒ - अवलोकन करणे.


यतः - ज्यांचे.


व्र॒तानि॑ - व्रतांचा.


पस्प॒शे - अनुष्ठान करणे.


इंद्र॑स्य॒ - इन्द्रदेवांचा.


युज्यः॒ - सुयोग्य.


सखा॑ - मित्र.


भावार्थ :- हा मंत्र विष्णूदेवांचा संदर्भात आहे.ह्यात इंद्रांना विष्णूदेवांचा सुयोग्य मित्र म्हटला आहे.इन्द्र शब्दाचा एक अर्थ जीव किंवा प्राणी पण आहे.ह्याचा अर्थ म्हणजे भगवान विष्णू जीव किंवा प्राणीचे मित्र आहेत.ते व्यापक देव असून त्यांचेच कर्मांने समस्त संसार सतत् चालत असतो.हेच व्यापक प्रभूंवर मनुष्यांचे कार्य आश्रित आहेत. त्यांचे कर्मांचा आश्रय घेउन आम्ही आपले कार्य संपन्न करत असतो.



#हिंदी



ऋग्वेद १.२२.१९


विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे ।

इंद्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑ ॥


अनुवाद :-


विष्णोः॒ - भगवान विष्णु के।


कर्मा॑णि - कर्मों का।


पश्यत॒ - अवलोकन करना।


यतः - जिनका।


व्र॒तानि॑ - व्रतों का।


पस्प॒शे - अनुष्ठान करना।


इंद्र॑स्य॒ - इन्द्रदेव को।


युज्यः॒ - सुयोग्य।


सखा॑ - मित्र।


भावार्थ :-यह मंत्र विष्णु को संबोधित किया गया है।इसमें इन्द्र को विष्णु का सुयोग्य मित्र बताया गया है।इन्द्र शब्द का अर्थ प्राण या जीव भी होता है।इस मंत्र में इन्द्र का अर्थ प्राण ही लिया गया है,वह प्राण जो प्राणी में आश्रित हैं। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान विष्णु जीव या प्राणी के मित्र हैंं।उन्हीं व्यापक प्रभु का कर्म समस्त विश्व को सतत् चला रहा है।इन्हीं व्यापक प्रभु के कार्यो में मनुष्यो के कार्य आश्रित हैं। उनके कर्मो का आश्रय लेकर ही मनुष्य के रूप में हम अपने कार्य संपन्न करते हैं।


https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1258405083177508864?s=19



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