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RV 1.23.17

  • Writer: Anshul P
    Anshul P
  • May 26, 2020
  • 2 min read

In this mantra Prayer is being done to get rains. Rainfall happens because of Yagya which in turn provides the vital powers(जीवनी शक्ति) of life i.e Water, Fire and Wind according to Rig Ved 1.23.17


अ॒मूर्या उप॒ सूर्ये॒ याभि॑र्वा॒ सूर्यः॑ स॒ह ।

ता नो॑ हिन्वंत्वध्व॒रं ॥


Translation:-


अ॒मूः - This water.


याः - That.


उप॒ - Found in close relation.


सूर्ये॒ - In sun.


याभिः - In that water.


सूर्यः॑ - Only Sun.


स॒ह - Together.


ताः - That water flow.


नः - Ours.


वा - Other


हिन्वंतु -To receive happily.


अवध्व॒रम् - In this Yagya.


Explanation:-This mantra explains the close relation between Sun and Water.The water present in the sun rays(absorbed through evaporation) is very sacred,since it is very near to Sun.Therefore the Yajmans want that water for their Yagya.


Deep meaning:- In this mantra Prayer is being done to get rains. Rainfall happens because of Yagya which in turn provides the vital powers(जीवनी शक्ति) of life i.e Water, Fire and Wind.


#मराठी and #हिंदी translation 👇


#मराठी


ऋग्वेद १.२३.१७


अ॒मूर्या उप॒ सूर्ये॒ याभि॑र्वा॒ सूर्यः॑ स॒ह ।

ता नो॑ हिन्वंत्वध्व॒रं ॥


भाषांतर :-


अ॒मूः - हा पाणी.


या - जे.


वा - किंवा.


उप॒ - जवळ चा संबंधात सापडणारा.


सूर्ये॒ - सूर्याची.


याभिः - ज्या पाणी मध्ये.


सूर्यः॑ - सूर्याचा.


स॒ह - बरोबर.


ताः - तो पाण्याचा प्रवाह.


नः - आमचे.


हिन्वंतु - आनंदाने प्राप्त होणे.


अवध्व॒रम् - यज्ञात.


भावार्थ :- ह्या मंत्राचे अभिप्रेत हे आहे की जे पाणी सूर्याची किरणां मध्ये समाविष्ट आहे किंवा ज्या पाणीचा सूर्याशी जवळ चा संबंध आहे,तो पवित्र पाणी आमच्या यज्ञा साठी प्राप्त करून द्या.


गूढार्थ: वर्षा साठी यज्ञ होत आहे.यज्ञाने वर्षा होते.यज्ञानुष्ठान तून जीवन शक्ति प्राप्त होते.(यज्ञाची साठी जल,वायू आणि अग्नी प्राप्त होते).



#हिंदी


ऋग्वेद १.२३.१७


अ॒मूर्या उप॒ सूर्ये॒ याभि॑र्वा॒ सूर्यः॑ स॒ह ।

ता नो॑ हिन्वंत्वध्व॒रं ॥


अनुवाद :-


अ॒मूः - यह जल।


याः - जो।


वा - अथवा।


उप॒ - समीप के संबंधों में पाया जानेवाला।


सूर्ये॒ - सूर्य में।


याभिः - जिस जल के।


सूर्यः॑ - सूर्य ही।


स॒ह - साथ में।


ताः - वह जल प्रवाह।


नः - हमारे।


हिन्वंतु - आनंद पूर्वक प्राप्त होना।


अवध्व॒रम् - यज्ञ को।


भावार्थ :-इस मंत्र का अभिप्राय यह है कि जो जल सूर्य की किरणों में समाहित है या जिस जल के साथ सूर्य का सान्निध्य या निकट का संबंध है,,वह पवित्र जल हमारे यज्ञ के लिए प्राप्त हो।


गूढार्थ:इस मंत्र मे वर्षा के लिए प्रार्थना की गई है।यज्ञ से ही वर्षा होती है।यज्ञ से जीवनी शक्ति प्राप्त होती है( जल,वायु और अग्नि तीनों यज्ञ के लिए आवश्यक भी हैं)।



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