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Writer's pictureAnshul P

RV 1.23.2

Parmatma always protects us, Also his glory is visible in all loks, Be it Earth or Dhyulok or any other lok. Also According to Rigved 1.23.2


उ॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशें॑द्रवा॒यू ह॑वामहे ।

अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥


Explanation:-


उ॒भा - Both.


दे॒वा - Of Deities.


दि॑वि॒स्पृशा - Residing at Dhyulok.


इंद्रवा॒यू - Indra and Vayudev.


ह॑वामहे - To call.


अ॒स्य - This.


सोम॑स्य - Of Somras.


पी॒तये॑ - To drink


Explanation:-This mantra is addressed to Indra and Vayudev. The devotees are inviting them to the yagya since these Deities protect their devotees. They both reside at Dhyulok but their glory is spread in all the loks. The devotees are inviting them to the Yagya and offering them Somras.


Deep meaning: Parmatma always protects us, Also his glory is visible in all loks, Be it Earth or Dhyulok or any other lok.




#मराठी



ऋग्वेद १.२३.२


उ॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशें॑द्रवा॒यू ह॑वामहे ।

अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥


भाषांतर :-


उ॒भा - दोन्ही.


दे॒वा - देवांचा.


दि॑वि॒स्पृशा - द्युलोकात राहणारे.


इंद्रवा॒यू - इंद्र आणि वायुदेव. .


ह॑वामहे - बोलवणे.


अ॒स्य - ह्या.


सोम॑स्य - सोमरसाचा.


पी॒तये॑ - प्राशन करणे.


भावार्थ :- ह्या मंत्रात भक्त इंद्रदेव आणि वायुदेवांना बोलवत आहेत. दोन्ही देव द्युलोक मध्ये निवास करतात पण त्यांची कीर्ति चार ही दिशेत व्याप्त आहे . ते आपल्या भक्तांचा रक्षण करतात. ह्या कारणी भक्त दोघांना यज्ञात बोलवून सोमरस अर्पित करतात.


गूढार्थ: ईश्वराचे यश सर्व लोकात व्याप्त असतो,द्युलाेक असो किंवा कोणी ही लोक असो.




#हिंदी


ऋग्वेद १.२३.२


उ॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशें॑द्रवा॒यू ह॑वामहे ।

अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥


अनुवाद :-


उ॒भा - दोनों।


दे॒वा - देवों को।


दि॑वि॒स्पृशा - द्युलोक में रहनेवाले।


इंद्रवा॒यू - इंद्र और वायु।


ह॑वामहे - बुलाना।


अ॒स्य - इस।


सोम॑स्य - सोमरस के।


पी॒तये॑ - पान के लिए।


भावार्थ :-इस मंत्र में इंद्रदेव और वायुदेव को भक्त बुला रहें हैं। दोनों देव द्युलोक में निवास करते हैं पर उनकी कीर्ति चारों तरफ व्याप्त है।वे भक्तों के रक्षक हैं। इसीलिए भक्त इन्हें यज्ञ में बुलाकर सोमरस अर्पित करते हैं।


गूढार्थ: ईश्वर का यश सभी लोकों में विद्यमान है,द्युलोक हो या अन्य कोई ।




ऋग्वेद १.२३.२


उ॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशें॑द्रवा॒यू ह॑वामहे ।

अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥


उभा-ଉଭୟ

देवा-ଦେବତାମାନଙ୍କୁ

दिंविस्पृशा-ଦ୍ଯୁଲୋକରେ ବାସ କରୁଥିବା

इंद्रवायू- ଇଦ୍ର ଏବଂ ବାୟୁ

हवामहे -ଆହ୍ବାନ କରିବା

अस्य-ଏହା

सोमस्य - ସୋମରସ

पितये - ପାନ କରିବା ପାଇଁ


ଭାବାର୍ଥ-ଏହିମନ୍ତ୍ରରେ ଭକ୍ତମାନେ ଇନ୍ଦ୍ର ଏବଂ ବରୁଣ ଦେବଙ୍କୁ ଡାକନ୍ତି । ଉଭୟ ଦେବତା ଦ୍ଯୁଲୋକ ରେ ରୁହନ୍ତି ଓ ଭକ୍ତମାନଙ୍କର ରକ୍ଷକ ଅଟନ୍ତି ।ସେଥିପାଇଁ ଭକ୍ତମାନେ ଯଜ୍ଞରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଆହ୍ବାନ କରି ସୋମରସ ଅର୍ପଣ କରିଥାନ୍ତି ।




https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1259827171809353729?s=19


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