In reality all the Deities are various forms of one single Parmatma. This means that it is their energy which is present in the Water as Agni. The same energy reflects itself in the devotee when he enters water @ Rig Ved 1.23.24
सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा ।
वि॒द्युर्मे॑ अस्य दे॒वा इंद्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः ॥
Translation:-
अग्ने॒ - Oh Agnidev!
वर्च॑सा - Radiance.
सम् सृज॒ - Associated or Included.
सम् - Associated or Included.
प्र॒जया॒ - For citizens.
आयु॑षा - In Life.
सम् - Associated.
मा - Me.
वि॒द्युः -To Know.
र्मे॑ - Mine.
अस्य - This.
दे॒वाः - Deities.
इंद्रः - Indradev.
विद्यात् - To know facts.
ऋषि॑भिः सह - Along with Sages.
Explanation:- This mantra is addressed to the Fire energy present inside the Water. Here the Agni is requested to provide energy,ability to become good Citizens and longevity to Yajmans.This mantra also requests to all the Deities, Indradev and Sages to listen to the devotees and help them attain Radiance, Top position,Longevity and the ability to become good citizen.
Deep meaning:- In reality all the Deities are various forms of one single Parmatma. This means that it is their energy which is present in the Water as Agni. The same energy reflects itself in the devotee when he enters water.
#मराठी
ऋग्वेद १.२३.२४
सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा ।
वि॒द्युर्मे॑ अस्य दे॒वा इंद्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः ॥
भाषांतर :-
सम् - युक्त करणे.
मा॑ - मला.
अग्ने॒ - हे अग्ने!
वर्च॑सा - तेज.
सम् सृज॒ - युक्त करणे.
सम् - युक्त करणे.
प्र॒जया॒ - प्रजेला.
सम् - युक्त करणे.
आयु॑षा - आयुष्यात.
वि॒द्युः - माहिती असणे.
र्मे॑ - माझे.
अस्य - ह्या.
दे॒वाः - देव.
इंद्रः - इंद्रदेव.
विद्यात् - तथ्य माहित करणे.
ऋषि॑भिः सह - ऋषीं बरोबर.
भावार्थ :-पाण्याचे आत स्थित अग्निला संबोधत म्हटलं आहे की त्याचा अनुषंगाने यजमानां मध्ये तेजस्विता, सुप्रजा आणि दीर्घ आयु प्राप्ति निवेदित करतो.हे मंत्रात हे ही प्रार्थना केलेली आहे की सर्व देव,इन्द्र आणि ऋषिगण अापल्या भक्तांची प्रार्थना ऐकून त्यांची सहायता करून त्याना तेजस्वी, श्रेष्ठ पद,आयुष्य आणि उत्तम नागरिक बनवून देण्याची कृपा करावी.
गूढार्थ: वास्तवात सर्व देवी देवता परमात्माच विभिन्न रूप आहेत अर्थात त्यांची दैवी शक्ती पाण्यात अग्निच्या रूपात विद्यमान आहे.त्यांचीच शक्ती पाण्यात प्रवेश केल्यावर भक्ता मधे येते.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२३.२४
सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा ।
वि॒द्युर्मे॑ अस्य दे॒वा इंद्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः ॥
अनुवाद :-
सम् - युक्त करिए।
मा॑ - मुझको।
अग्ने॒ - हे अग्ने!
वर्च॑सा - तेज से।
सम् सृज॒ - युक्त करना।
सम् - युक्त करना।
प्र॒जया॒ - प्रजा से।
आयु॑षा - आयु से।
वि॒द्युः - जाने।
र्मे॑ - मेरे।
अस्य - इस।
दे॒वाः - देवलोग।
इंद्रः - इंद्रदेव।
विद्यात् - तथ्य को जानना।
ऋषि॑भिःसह - ऋषियों के साथ।
भावार्थ :- जल के भीतर स्थित अग्नि को संबोधित कर उससे तेजस्विता, सुप्रजा और लंबी आयु प्राप्त करने का निवेदन किया गया है।साथ ही मंत्र में यह भी निवेदित किया है कि सभी देव,इन्द्र और ऋषिऋण अपने भक्त की प्रार्थना सुनें ताकि इनकी सहायता से भक्त तेजस्वी बने,ऊँचा स्थान प्राप्त करे,लंबी आयु पाए और अच्छा नागरिक बने।
गूढार्थ:वास्तव में सभी देवी देवता एक ही परमात्मा के विभिन्न स्वरूप हैं अर्थात उन्हीं की दैवी शक्ति जल में अग्नि के रूप में विद्यमान है। उन्हीं की शक्ति को जल में प्रवेश करने पर भक्तों पर प्रकट होती हैं।
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