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Writer's pictureAnshul P

RV 1.23.3

It is through Parmatma that Shruti Bhagwati fulfills our Worldly comforts(स्वार्थ) as well as Spiritual Aims(परमार्थ) @ Rig Ved 1.23.3


अ॒भि त्वा॑ देव सवित॒रीशा॑नं॒ वार्या॑णां ।

सदा॑वन्भा॒गमी॑महे ॥


Translation:-


त्वा॑ - You.


देव - Dev!


ईशा॑नम् - To the Master(Swami).


वार्या॑णाम् - Can be accepted


सदा॑वन् सावित् - Oh The everlasting Protector Savitadev!


भा॒गम् - Fit for consumption.


अभि ईमहे - To Plead.


Explanation:- After pleading to Agnidev, Shuunh Shep Rishi then prays to Savitadev.He says that Savitadev always Protects his devotees. He also is the owner of Wealth.Therefore the Rishi asks Savitadev for protection and Wealth that can be used for consumption.


Deep meaning: It is through Parmatma that Shruti Bhagwati fulfills our Worldly comforts(स्वार्थ) as well as Spiritual Aims(परमार्थ).




#मराठी


ऋग्वेद १.२४.३


अ॒भि त्वा॑ देव सवित॒रीशा॑नं॒ वार्या॑णां ।

सदा॑वन्भा॒गमी॑महे ॥


भाषांतर :-


त्वा॑ - आपण.


देव - देव!


ईशा॑नम् - स्वामी ला.


वार्या॑णाम् - स्वीकारणे योग्य.


सदा॑वन् सवितः - हे सर्वदा सुरक्षितता देणारे सवितादेव!


भा॒गम् -उपभोग करायला योग्य.


अभि ईमहे - याचना करणे.


भावार्थ :-शुनःशेप ऋषी नी अग्निदेवांच्या नंतर सवितादेवांना प्रार्थना करून म्हणाले की आपण सर्वदा भक्तांना सुरक्षा प्रदान करणारे आहात.आपण स्वीकार करणे योग्य धनाचे पण स्वामी आहात. म्हणून ऋषी त्यांचाशी सुरक्षा आणि उपभोग करने योग्य धनाची याचना करतात.


गूढार्थ: श्रुति भगवती परमात्माचे वतीने आमचे स्वार्थ(भौतिक सुख) आणि परमार्थ (परमात्मा) दोन्ही करवून घेते.




#हिंदी



ऋग्वेद १.२४.३


अ॒भि त्वा॑ देव सवित॒रीशा॑नं॒ वार्या॑णां ।

सदा॑वन्भा॒गमी॑महे ॥


अनुवाद :-



त्वा॑ - आप।


देव - देव!


ईशा॑नम् - स्वामी से।


वार्या॑णाम् - स्वीकार करने योग्य।


सदा॑वन् सवितः -हे सदा सुरक्षा देनेवाले सवितादेव!


भा॒गम् - उपभोग करने योग्य।


अभि ईमहे - याचना करना।


भावार्थ :-शुनःशेप ऋषि अग्निदेव के बाद सवितादेव को प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि सवितादेव सदा अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करते हैं और वे स्वीकार करने योग्य धनों के स्वामी हैं।इसी लिए ऋषि उनसे अपनी सुरक्षा और उपभोग करने योग्य धन की याचना करते हैं।


गूढार्थ:श्रुति भगवती परमात्मा के द्वारा हमारे स्वार्थ (भौतिक सुख) और परमार्थ(परमात्मा) दोनो को पूर्ण कराती हैं।



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