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Writer's pictureAnshul P

RV 1.24.1

In this mantra Shruti Bhagwati or Ved has expressed their curiosity regarding Parmatma @ Rig Ved 1.24.1


कस्य॑ नू॒नं क॑त॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑ ।

को नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च ॥


Translation:-



नू॒नं कस्य - Definitely.


अमृता॑नाम् - Amidst Deities.


मना॑महे॒ - To Ponder.


चारु॑ - Sacred.


दे॒वस्य॒ - For Deities.


नाम॑ - Name.


कः - Who.


नः - Me.


म॒ह्यै - Great.


अदि॑तये॒ - In order to stay on Earth.


पुनः - Again.


दात् - Give.


पितरम् - Father.


च - And.


दृ॒शेयम् - To see.


मा॒तरम् - Mother.


Explanation:- This mantra is connected to shunah Shep Rishi where he is curious to know that amongst so many Deities, whom should he ponder about to avoid death and gets to view his Mother and Father.This is in reference to Raja Harishchandra and his son Rohit who was born from a boon. Raja promised to sacrifice his first born son in return for this boon.But was avoiding this sacrifice. It was shunah shep Rishi who finally saved him.


Deep meaning: In this mantra Shruti Bhagwati or Ved has expressed their curiosity regarding Parmatma.



#मराठी


ऋग्वेद १.२४.१


कस्य॑ नू॒नं क॑त॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑ ।

को नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च ॥


भाषांतर :-


नूनम् कस्य॑ - निश्चित रूपाने.


क॑त॒मस्य - जाति ने संबंधित.


अमृता॑नाम् - देवांचे मध्य.


मना॑महे॒ - मनन करणे.


चारु॑ - शुभ.


दे॒वस्य॒ - देवांना.


नाम॑ - नाम.


कः - कोण.


नः - मी.


म॒ह्यै - महान.


अदि॑तये॒ - पृथ्वीवर राहण्या साठी.


पुनः - पुनः.


पितरम् - वडिल.


दृ॒शेयम् - बघणे.


मा॒तरम् - आई ला.


भावार्थ :-ह्या मंत्राचा संबंध शुनःशेप ऋषीशी आहे.त्यांच्या द्वारे हे जिज्ञासा प्रकट केलेली गेलेली आहे ते अनेक देवां मध्ये त्यानी कोणते देवतांचे मनन केले पाहिजे जे त्याना मृत्यू पासून वाचवून नंतर आई आणि वडिलांचे दर्शन घडवून देउ शकतो. हा संदर्भ राजा हरिश्चंद्र आणि त्यांचे वरद् पुत्र रोहितशी संबंधित आहे.वरदानात पुत्र प्राप्त करून प्रथम पुत्राची आपण बलि देउ असे वचन देउन राजाने वचन टाळण्याचा फार प्रयत्न केला.शेवटी ऋषी शुनःशेप ने त्याना वाचवले.


गूढार्थ: ह्या मंत्राचे द्वारे श्रुति भगवती अर्थात वेद ने परमात्मा विषयी जिज्ञासा प्रकट केलेली आहे.



#हिंदी


ऋग्वेद १.२४.१


कस्य॑ नू॒नं क॑त॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑ ।

को नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च ॥


अनुवाद :-


नूनम् कस्य॑ - निशिचत रूप से।


क॑त॒मस्य - जाति से संबद्ध।


अमृता॑नाम् - देवताओ के मध्य।


मना॑महे॒ - मनन करना।


चारु॑ - शुभ।


दे॒वस्य॒ - देव को।


नाम॑ - नाम का।


कः - कौन।


नः - मुझ।


म॒ह्यै - महान।


अदि॑तये॒ - पृथ्वी पर रहने के लिए।


पुनः -फिर से।


पितरम् - पिता।


च - और।


दृ॒शेयम् - देख सकना।


दात् - देना।


मा॒तरम् - माता को।


भावार्थ :-इस मंत्र का संबंध शुनःशेप ऋषि से है। उनके द्वारा यह जिज्ञासा प्रकट की गई है कि वह अनेक देवों के मध्य किस देव का मनन करें जो उन्हें मृत्यु से बचाकर फिर से उन्हें अपने माता पिता के दर्शन करवा सके।यह संदर्भ राजा हरिश्चन्द्र और उनके वरद् पुत्र रोहित से जुडा है। पुत्र को वरदान में प्राप्त करने पर राजा ने पहले पुत्र की बलि देने की बात कही थी,पर उसे टालते रहे। तब शुनःशेप ऋषि ने रोहित को बचाया था।


गूढार्थ:- इस मंत्र के द्वारा श्रुति भगवती अर्थात वेद परमात्मा के प्रति जिज्ञासा प्रकट कर रहीं हैं।



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