Ishwar means Knowledge, there is no Avidya in him, therefore there is no discrimination from his side and this paves the way for liberation of soul. Also one should follow good company of others @ Rig Ved 1.24.12
तदिन्नक्तं॒ तद्दिवा॒ मह्य॑माहु॒स्तद॒यं केतो॑ हृ॒द आ वि च॑ष्टे ।
शुनः॒शेपो॒ यमह्व॑द्गृभी॒तः सो अ॒स्मान्राजा॒ वरु॑णो मुमोक्तु ॥
Translation:-
इत् - Definitely
नक्तम् - In the night.
तत् - That.
दिवा - Daytime.
मह्य॑म् - Me.
आहु॒ - Had said.
तत् - That.
हदः - In heart.
अयम् - This.
केतः - Knowledge too.
हृ॒दः - In heart.
आ विच॑ष्टे - Say.
शुनः॒शेपः - Shuunh Shep.
यम - Which.
अह्व॑त् - To pray.
गुभी॒तः - Tied to Yagya pillar.
सः - Same.
अ॒स्मान् - Of all.
राजा॒ वरु॑णः - King Varun.
मुमोक्तु - To liberate.
Translation:- This mantra actually is about Shuunah Shep(son of Ajigarth,who helped Raja Harishchandra by saving his son Rohit from death ) muni's worship towards Varundev.Shuunah Shep had saved himself from death and had attained longevity. Similarly if Evil people follow the company of Wise and intelligent men and meditate towards Varundev, they can wash away their sins.
Deep meaning: Ishwar is means Knowledge, there is no Avidya in him, therefore there is no discrimination from his side and this paves the way for liberation of soul. Also one should follow good company of others.
#मराठी
ऋग्वेद १.२४.१२
तदिन्नक्तं॒ तद्दिवा॒ मह्य॑माहु॒स्तद॒यं केतो॑ हृ॒द आ वि च॑ष्टे ।
शुनः॒शेपो॒ यमह्व॑द्गृभी॒तः सो अ॒स्मान्राजा॒ वरु॑णो मुमोक्तु ॥
भाषांतर :-
इत् - निश्चयपूर्वक.
नक्तम् - रात्री.
तत् - तेच.
दिवा - दिवस.
मह्य॑म् - माझ्या शी.
अाहु॒ - म्हणाला होता.
केतः - ज्ञान पण.
अयम् - हा.
हृ॒द - ह्दय स्थान मध्ये राहणारा.
आ विच॑ष्टे - सांगितले.
शुनः॒ शेपो॒ - शुनःशेप.
यम् - ज्या.
अह्व॑त - प्रार्थना करणे.
गृभीतः - यज्ञ स्तंभ ने बद्ध.
सः - तेच.
अ॒स्मान् - सर्वांचे.
राजा॒ वरु॑णः - राजा वरूण।
मुमोक्तु - मुक्त करणे.
भावार्थ :-हा मंत्राचा अभिप्रेत हा आहे की ज्या प्रकारे शुनःशेप मुनी(अजीगर्त चे पुत्र ज्यानी हरिश्चंद्र चे पुत्र रोहित ला जीवदान मिॆळवून दिला) ने स्वतःला वरूण ची आराधना करून यज्ञ स्तंभात बद्ध होउन ही मुक्त होउन दीर्घ आयुला प्राप्त केले,त्या प्रकारे दुष्ट व्यक्ती ज्ञानी चा सान्निध्यात जर वरूण चा ध्यान करतो तर त्याचे पाप स्वच्छ होउन जातिल.
गूढार्थ: ईश्वर अविद्या रहित असतात म्हणून सर्वां साठी समान भाव ठेवतात आणि मुक्ति चा मार्ग प्रशस्त करतात.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२४.१२
तदिन्नक्तं॒ तद्दिवा॒ मह्य॑माहु॒स्तद॒यं केतो॑ हृ॒द आ वि च॑ष्टे ।
शुनः॒शेपो॒ यमह्व॑द्गृभी॒तः सो अ॒स्मान्राजा॒ वरु॑णो मुमोक्तु ॥
अनुवाद :-
इत - निश्चय पूर्वक ।
तत् - वही।
नक्तम् - रात को।
दिवा - दिन में।
मह्य॑म् - मुझसे।
आहुः - कहा था।
अयम् - यह।
केतः - ज्ञान भी।
हृ॒द - ह्दय स्थान में रहनेवाला।
आ विच॑ष्टे - कहना।
शुनः॒ शेपः - शुनःशेप ने।
यम् - जिस।
अह्व॑त् - प्रार्थना करना।
गृभीतः - यज्ञ स्तम्भ से बद्ध।
सः - वही।
अ॒स्मान् - सबका।
राजा॒ वरु॑णः - राजा वरूण।
मुमोक्तु - मुक्त करना।
भावार्थ :-इस मंत्र का अभिप्राय यह है कि शुनःशेप मुनि ने जिस प्रकार वरूण की आराधना करने पर यज्ञ स्तंभ में वध के उद्देश्य से बंधे शुनःशेप (अजीगर्त के पुत्र जिन्होंने हरिश्चन्द्र के पुत्र को जीवनदान दिलवाया) मुक्त होकर दीर्घायु को प्राप्त किया उसी प्रकार बुरे व्यक्ति भी ज्ञानीयों के साथ रहने पर अगर वरूण का ध्यान करें,तो उनके भी पाप धुल जाएँगे।
गूढार्थ:- ईश्वर अविद्या रहित होते हैं इसीलिए वह सबके प्रति समान भाव रखते हैं और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
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