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Writer's pictureAnshul P

RV 1.24.14

Updated: Jun 17, 2020

Shruti Bhagwati (Ved) tells us to control our anger. Also it is important to control all the other senses if we want to attain Moksh @ Rig Ved 1.24.14


अव॑ ते॒ हेळो॑ वरुण॒ नमो॑भि॒रव॑ य॒ज्ञेभि॑रीमहे ह॒विर्भिः॑ ।

क्षय॑न्न॒स्मभ्य॑मसुर प्रचेता॒ राज॒न्नेनां॑सि शिश्रथः कृ॒तानि॑ ॥


Translation:-


अव॑ ईमहे - Faraway.


ते॒ - Yours.


हेळः - For anger.


वरुण॒ - Oh Varundev!


नमो॑भिः - Through Namaskaars.


य॒ज्ञेभिः - Through Yagya's.


अव ईमहे - Faraway.


ह॒विर्भिः॑ - With materials for Offerings (Havi).


क्षय॑न् - To reside.


अस्मभ्य॑म् - For us.

असुर - To provide Power for life(Jeevanshakti).


प्रचेत राज॒न् - Bright Intellectuals.


एनां॑सि - Of sins.


शिश्रथः - Weakness.


कृ॒तानि॑ - Been done.


Explanation:-This mantra is about Varundev who tries to wipe away the pain of his devotees and provides them with power to life(Jeevan shakti). He is intelligent and bright.He gets terribly angry but he controls it by arresting this anger.Actually this mantra portrays the solutions for peace. We should therefore fear Varundev. But if Varundev is pleased with someone he not only provides them power for life but washes away their Sins.


Deep meaning; Shruti Bhagwati (Ved) tells us to control our anger.Also it is important to control all the other senses if we want to attain Salvation.



#मराठी


ऋग्वेद १.२४.१४


अव॑ ते॒ हेळो॑ वरुण॒ नमो॑भि॒रव॑ य॒ज्ञेभि॑रीमहे ह॒विर्भिः॑ ।

क्षय॑न्न॒स्मभ्य॑मसुर प्रचेता॒ राज॒न्नेनां॑सि शिश्रथः कृ॒तानि॑ ॥


भाषांतर :-


अव॑ ईमहे - लांब असणे किंवा शांत करणे.


ते॒ - आपले.


हेळः - क्रोधात.


वरुण॒ - हे वरूणदेव!


नमो॑भिः -नमस्कारा तून.


य॒ज्ञेभिः - यज्ञा तून.

अव ईमहे - लांब असणे.


ह॒विर्भिः॑ - हवि द्रव्यां द्वारे.


क्षय॑न् - निवास करणे.


अस्मभ्य॑म - आमच्या साठी.


असुर - जीवन शक्ति प्रदान करणे.


प्रचेत राज॒न् - दीप्तिमान ज्ञानी.


एनां॑सि - पापांचा.


शिश्रथः - शिथिलता.


कृ॒तानि॑ - केलेला.


भावार्थ:-ह्या मंत्रात म्हटले आहे की वरूणदेव आपल्या भक्तांचे दुःख समाप्त करून त्याना जीवन शक्ती प्रदान करतात. ते ज्ञानी आहेत आणि दीप्तिमान राहतात. ते भयंकर रूपाने क्रोधित पण होतात पण क्रोधाला बंधन टाकून त्याचे शमन करतात.वास्तवात हे शांतिचे उपाय आहेत .त्यांचे क्रोधा पासून अाम्हास भय वाटायला पाहिजे.परंतु ते ज्याचा वर प्रसन्न होतात त्याला जीवन शक्ति बरोबर त्याचे पापांचे विनाश करतात.


गूढार्थ: श्रुति भगवती (वेद) हे शिक्षण देतात की आम्हास आपल्या क्रोध वर नियंत्रण ठेवले पाहिजे. ह्याच बरोबर अन्य इन्द्रियांना नियंत्रित केले पाहिजे कारण अनियंत्रित राहल्या वर आमचे मोक्ष द्वार अवरूद्ध होतिल.


#हिंदी


ऋग्वेद १.२४.१४


अव॑ ते॒ हेळो॑ वरुण॒ नमो॑भि॒रव॑ य॒ज्ञेभि॑रीमहे ह॒विर्भिः॑ ।

क्षय॑न्न॒स्मभ्य॑मसुर प्रचेता॒ राज॒न्नेनां॑सि शिश्रथः कृ॒तानि॑ ॥


अनुवाद:-


अव॑ ईमहे- दूर करना या शांत करना।


ते॒ - आपके।


हेळः - क्रोध को।


वरुण॒ - हे वरूण!


नमो॑भिः - नमस्कारों से।


य॒ज्ञेभिः - यज्ञ द्वारा।


अव ईमहे - दूर करते हैं।


ह॒विर्भिः॑ - हवि के द्रव्यों द्वारा।


क्षय॑न् - निवास करना।


अस्मभ्य॑म् - हमारे लिए।


असुर - जीवन शक्ति प्रदान करनेवाले।


प्रचेतः राज॒न् - दीप्तिमान ज्ञानी।


एनां॑सि - पाप का।


शिश्रथः - शिथिलता।


कृ॒तानि॑ - किया हुआ।


भावार्थ :-इस मंत्र में कहा गया है कि वरूणदेव अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं तथा उन्हें जीवन की शक्ति प्रदान करते हैं।वे ज्ञानी हैं तथा सदा दीप्तिमान रहते हैं। उनको भयंकर क्रोध भी अाता है परंतु उसे ये बंधनों में डालकर उसका शमन भी करते है। मंत्र में वास्तव में शांति के उपाय बताएं हैं। उनके क्रोध से डर कर रहना चाहिए। परंतु जिसके ऊपर प्रसन्न होते हैं उसे जीवन शक्ति के साथ उसके पापों का भी नाश करते हैं।


गूढार्थ:श्रुति भगवती(वेद) यहां कह रहीं हैं कि हमें अपने क्रोध को वश में रखना चाहिए। साथ ही बाकी सब इन्द्रियों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए ताकि हमारे मोक्ष का द्वार अवरूद्ध न हों।



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