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Writer's pictureAnshul P

RV 1.24.15

Updated: Jun 18, 2020

Physical and mental desires should be dissolved,then only our soul will unite with Parmatma and we can attain Salvation(Moksha) @ Rig Ved 1.24.15


उदु॑त्त॒मं व॑रुण॒ पाश॑म॒स्मदवा॑ध॒मं वि म॑ध्य॒मं श्र॑थाय ।

अथा॑ व॒यमा॑दित्य व्र॒ते तवाना॑गसो॒ अदि॑तये स्याम ॥


Translation:-


उत् - To pull upwards.


उत्त॒मम् - Excellent.


व॑रुण॒ - Oh Varundev!


पाश॑म् - To tie.


अस्मत् - Us.


अध॒मम् - Down towards legs.


वि - Different.


म॑ध्य॒मम् - Middle portion.


श्र॑थाय - To loosen.


अथ - .After this.


व॒यम् - We.


आदित्य - Aditi's son Varundev.


तव व्र॒ते - For your resolutions.


अना॑गसः - Sinless.


अदि॑तये - For Aditi or Without denial.


स्याम - To be.


Explanation:- This mantra is addressed to Varundev wherein he is asked to relieve us from three types of ‘Taap' or ties.They are Metaphysical, spiritual and Supernatural.Along with middle and lower ties these three types of bondages should be freed.Oh Surya Putra!Make us Sinless after we follow the Principal of Karmafal in a disciplined way to attain Salvation.

Second meaning is that Man is bound by three types of enchainments or ties.They are towards father (Pitraruun),towards Sages(Rishi ruun) and towards God(Dev ruun). They actually are Satva, Rajas and Tamas ties.To get rid of these chains, man has to follow the rules made by Varundev to attain Salvation(Moksha).


Deep meaning:- Physical and mental desires should be dissolved,then only our soul will unite with Parmatma and we can attain Salvation( Moksha).



#मराठी


ऋग्वेद १.२४.१५


उदु॑त्त॒मं व॑रुण॒ पाश॑म॒स्मदवा॑ध॒मं वि म॑ध्य॒मं श्र॑थाय ।

अथा॑ व॒यमा॑दित्य व्र॒ते तवाना॑गसो॒ अदि॑तये स्याम ॥


भाषांतर :-


उत - वर खेंचणे.


उत्त॒मम् - उत्कृष्ट.


व॑रुण॒ - हे वरूणदेव!


पाश॑म् - बांधले.


अस्मत् - आम्हातून.


अव - खाली खेचून शिथिल करणे.


अध॒मम् - खालचे भाग म्हणजे पाव.


वि - पृथक.


म॑ध्य॒मम् - मध्य भाग.


श्र॑थाय - सैल करणे.


अथ - ह्याचे नंतर.


व॒यम् - आम्ही.


आदित्य - अदिति पुत्र वरूण.


तव व्र॒ते - आपल्या व्रतात राहून.


अना॑गसः - पाप रहित.


अदि॑तये - अदिति साठी किंवा खंडन रहित.


स्याम - होणे.


भावार्थ :-ह्या मंत्रात वरूणदेवांना प्रार्थना केलेली आहे की त्यानी आम्हास तीन्ही प्रकारांचे तापांचे बंधनातून मुक्त केले पाहिजे. आधिभौतिक, आधिदैविक आणि आध्यात्मिक तापां पासून लांब ठेवावे आणि मध्य व खालच्या बंधनां पासून मुक्त करावे.

दूसरे अर्थ हे आहे की मनुष्य तीन बंधनाने बांधला गेला आहे -पितृऋण,ऋषिऋण आणि देवऋण.अर्थात सत्व, रज आणि तमस गुणांचा पाश आहे.ह्याना विविध उपायांनी मुक्त करायला पाहिजे.ह्याची पूर्तता वरूणदेव चे नियमां वर चालून मोक्ष प्राप्त करणे संभव आहे.


गूढार्थ: शारीरिक आणि मानसिक कामनांचे त्याग केल्या वर आम्ही परमात्मा बरोबर एकाकार होउन मोक्षाचे मार्ग प्रशस्त करू शकतो.



#हिंदी


ऋग्वेद १.२४.१५


उदु॑त्त॒मं व॑रुण॒ पाश॑म॒स्मदवा॑ध॒मं वि म॑ध्य॒मं श्र॑थाय ।

अथा॑ व॒यमा॑दित्य व्र॒ते तवाना॑गसो॒ अदि॑तये स्याम ॥


अनुवाद :-


उत् - ऊपर की ओर खींचना।


उत्त॒मम् - उत्कृष्ट।


व॑रुण॒ - हे वरूणदेव।


पाश॑म् - बाँधना।


अस्मत् - हमसे।


अव - नीचे खींचकर ढीला कर देना।


अध॒मम् - नीचे अर्थात पैर में पाश।


वि - पृथक।


म॑ध्य॒मम् - शरीर का मध्य भाग।


श्र॑थाय - ढीला करना।


अथ - इसके बाद।


व॒यम् - हम।


आदित्य - हे अदिति पुत्र वरूण !


तव व्र॒ते - आपके व्रत में रहते हुए ।


अना॑गसः - पाप रहित।


अदि॑तये - अदिति के लिए या खंडन रहित होकर।


स्याम - होना।



भावार्थ :-इस में वरूणदेव से कहा गया है कि वह हमें तीनों प्रकार के तापों के बंधन से मुक्त करें।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तापों से हम दूर रहें तथा मध्य और नीचे के बंधन से भी मुक्त हों। हे सूर्यपुत्र! हम पापों से रहित होकर कर्मफल सिद्धांत में अनुशासित रहें और दयनीय स्थिति से बचें।

दूसरा अभिप्राय यह है कि मानव तीन पाशों में बंधा हुआ है- पितृऋण, ऋषिऋण और देव ऋण।अर्थात सत्व, रज और तमस गुणों के पाश हैं। इनको विविध उपायों से दूर कर इन पाशों से मुक्त होना है।

इनकी पूर्ति वरूणदेव के नियमों से चलकर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।


गूढार्थ:- शारीरिक और मानसिक कामनाओं का त्याग करके हम परमात्मा से एकाकार हो सकते हैं और हमारे मोक्ष का मार्च प्रशस्त कर पाएंगे।




📸Credit-aghori.shiva

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