We can achieve the path of Moksha or Salvation only after taking birth as Humans. This cycle of being reborn as human beings opens the door towards Salvation or Moksha @ Rig Ved 1.24.2
अ॒ग्नेर्व॒यं प्र॑थ॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑ ।
स नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च ॥
Translation:-
अ॒ग्ने देवस्य - To Agnidev.
वयम् - We.
प्र॑थ॒मस्य - First.
अमृता॑नाम् - For immortal Deities.
मना॑महे॒ - To remember.
चारु॑ नाम - Sacred name.
सः - They.
नः - We.
म॒ह्यै - Great.
अदि॑तये॒ - Near Aditi.
पुनः - Again.
दात् - To give.
पितरम् - Father.
च - And.
दृ॒शेयम् - To see.
मा॒तरम् - Mother.
Explanation:-As inquired in the previous mantra, Rishi Shuun Shap answers his query and says that Agnidev is the prime Deity amongst them.Therefore we should remember him first.He is omnipresent. It is Agnidev who inspires us towards Aditi or immortality. He provides a glimpse of our mother and father after we perform good deeds.Means that we are reborn many times.
Deep meaning: We can achieve the path of Moksha or Salvation only after taking birth as Humans. This cycle of being reborn as human beings opens the door towards Salvation or Moksha.
#मराठी
ऋग्वेद १.२४.२
अ॒ग्नेर्व॒यं प्र॑थ॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑ ।
स नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च ॥
भाषांतर :-
अ॒ग्ने देवस्य - अग्निदेवाचे.
वयम् - मी.
प्र॑थ॒मस्य - सर्वप्रथम.
अमृता॑नाम् - अमर देवां मधे.
मना॑महे॒ - मनन किंवा स्मरण करणे.
चारु॑ नाम - शुभ नाम.
सः - ते.
नः - आम्ही.
म॒ह्यै - महान.
अदि॑तये॒ - अदिति जवळ.
पुनः - पुनः.
दात् -देणे.
पितरम् - वडिल.
च - आणि.
दृ॒शेयम् - बघणे.
मा॒तरम् - आई.
भावार्थ :- पूर्वीचे मंत्रात व्यक्त केलेली जिज्ञासा चे उत्तर स्वयं शुनःशेप ऋषी देेतात.त्यांचा अनुसार प्रजापतिची कृपेने त्याना समजले की अग्निदेव हे प्रधान देव असून प्रथम त्यांचे स्मरण केले पाहिजे. ते सर्वत्र व्याप्त आहेत, ते अदिति किंवा अमरत्व च्या कडे प्रेरित करतात. ते आमच्याकडून उत्तम कर्म करवून देण्या साठी पुनः पुनः आई वडिलांचे दर्शन घडवून देतात.अर्थात पुनः पुनः मनुष्य जन्म प्रदान करतात.
गूढार्थ:- मानव शरीराच्या मार्फत मोक्ष चे द्वार उघडतात.परमात्मा पुनः पुनः मानव शरीर देउन आमच्या मोक्षाचा मार्ग प्रशस्त करताे.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२४.२
अ॒ग्नेर्व॒यं प्र॑थ॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑ ।
स नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च ॥
अनुवाद :-
अ॒ग्ने देवस्य - अग्निदेव के।
वयम् - हम(शुनःशेप)।
प्र॑थ॒मस्य - सर्वप्रथम।
अमृता॑नाम् - अमर देवों में।
मना॑महे॒ - मनन या याद करना।
चारु॑ नाम् - शुभ नाम।
सः - वह।
नः - हमें।
म॒ह्यै - महान।
अदि॑तये॒ - अदिति के पास।
पुनः -फिर से।
दात् - देना।
पितरम् - पिता
च - और।
दृ॒शेयम् - देखना।
मा॒तरम् - माता।
भावार्थ :-पूर्वोक्त मंत्र में व्यक्त जिज्ञासा का उत्तर स्वयं शुनःशेप ऋषि ही देते हुए कहते हैं कि प्रजापति की कृपा से उन्होने यह तय किया है कि सब देवों में अग्निदेव ही प्रधान हैं इसलिए प्रथम उनका स्मरण करना चाहिए।वे सर्वत्र व्याप्त हैं ,वही अदिति या अमरता की ओर प्रेरित करते हैं।वे ही उत्तम कर्म करने के लिए बार बार माता पिता के दर्शन करवाते हैं। अर्थात बार बार मनुष्य जन्म प्रदान करते हैं।
गूढार्थ:- मानव शरीर से ही मोक्ष का द्वार खुलना संभव है। परमात्मा हमें मानव शरीर देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
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