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Writer's pictureAnshul P

RV 1.25.10

Updated: Jun 28, 2020


Truth is always dedicated to Justice, it is never lax, Neither it breaks. It is the ultimate truth. Parmatma is Omnipresent,rest all are Vibhutis(m

majestic powers) @ Rig Ved 1.25.10


नि ष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या॒३॒॑स्वा ।

साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतुः॑ ॥


Translation:-


आ नि ष॑साद - Comes and Sits.


धृ॒तव्र॑तः - The holder of the rules.


वरु॑णः - Varun


प॒स्त्या॒सु -Amidst divinity.


साम्रा॑ज्याय - For accomplishment of his Empire.


सु॒क्रतुः॑ - Doing good deeds.


Explanation:-This mantra says that Varundev is the holder of all rules,therefore he accomplishes his tasks excellently. In order to fulfill his empirical task he comes and sits amidst divine powers.Sitting there,he listens to their problems and tries to solve them.


Deep meaning: Truth is always dedicated to Justice, it is never lax, Neither it breaks. It is the ultimate truth. Parmatma is Omnipresent,rest all are Vibhutis(m

majestic powers).


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📸Credit-harekrsna_harerama


#मराठी


ऋग्वेद १.२५.१०


नि ष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या॒३॒॑स्वा ।

साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतुः॑ ॥


भाषांतर :-


आ नि ष॑साद - येउन बसणे.


धृ॒तव्र॑तः - नियामानं धारण करणारे.


वरु॑णः - वरूण.


प॒स्त्या॒सु - दैवी प्रजा मध्ये.


साम्रा॑ज्याय - साम्राज्य सिद्धी साठी.


सु॒क्रतुः॑ - उत्तम कर्म करणारे


भावार्थ :-ह्या मंत्रात म्हटले आहे की वरूणदेव सगळे नियमा ना धारण करणारे आहेत,म्हणून ते आपले कार्य चांगल्या पद्धती ने निर्वाहित करू शकतात.आपले साम्राज्याचा सुख समृद्धी साठी ते आपली दैवी प्रजेच्या मध्य येउन बसतात. इथे बसून ते आपली प्रजेची समस्यांना योग्य रीति ने निराकरण करतात.


गूढार्थ: सत्य न्याया चे प्रति समर्पित असतो,ते प्रमाद रहित असतो,कधी नियम भंग करत नाही.ते परम पुरुषार्थ आहे.परमात्मा व्यापक आहे,शेष विभूती आहेत.




#हिंदी


ऋग्वेद १.२५.१०


नि ष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या॒३॒॑स्वा ।

साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतुः॑ ॥


अनुवाद :-


आ नि ष॑साद - आकर बैठते हैं।


धृ॒तव्र॑तः - नियमों को धारण करनेवाले।


वरु॑णः - वरूण।


प॒स्त्या॒सु -दैवी प्रजाओं में।


साम्रा॑ज्याय - साम्राज्य की सिद्धि के लिएृ।


सु॒क्रतुः॑ - उत्तम कर्म करनेवाले।


भावार्थ :-इस मंत्र में कहा गया है कि वरूणदेव सारे नियमों को धारण करनेवाले हैं,इसलिए वे अपने समस्त कार्यों का उत्तम तरीके से निर्वहन करते हैं और अपने साम्राज्य की सुख समृद्धि के लिए अपनी दैवी प्रजा के बीच में आकर बैठते हैं।यहां पर बैठकर वे उनकी समस्याओं का योग्य रीति से निराकरण करते हैं।


गूढार्थ:सत्य न्याय के प्रति समर्पित होता है,वह प्रमाद रहित होता है,कभी नियम भंग नहीं करता है। वह परम पुरूषार्थ है।परमात्मा व्यापक है,बाकी सब विभूतियां हैं।








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