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Writer's pictureAnshul P

RV 1.25.13

Updated: Jul 1, 2020


Here the Golden armour denotes divinity. One who is indifferent towards worldly subjects, Or is untouched by any vices can attain divinity. Even we should follow this path @ Rig Ved 1.25.13


बिभ्र॑द्द्रा॒पिं हि॑र॒ण्ययं॒ वरु॑णो वस्त नि॒र्णिजं॑ ।

परि॒ स्पशो॒ नि षे॑दिरे ॥


Translation:


वरूणः - Varundev.


हिरण्ययम् - Golden hued.


द्रापिम् - For Armour.


बिभ्रत् - To hold.


निर्णिजम् - For well built body.


वस्त - Aura.


स्पशः - Sun rays.


परि - From all four sides.


नि षेदिरे - Spread.


Explanation:- This mantra says that Varundev has decorated himself by wearing the golden hued armour on his well built body. Shining rays seems to be spreading from all four directions ,meaning that golden lustre of his aura is spread in all four directions.



Deep meaning:- Here the Golden armour denotes divinity. One who is indifferent towards worldly subjects,or is untouched by any vices can attain divinity. Even we should follow this path.


#मराठी


ऋग्वेद १.२५.१३



भाषांतर :


वरूणः - वरूणदेव.


हिरण्ययम् - स्वर्णमय.


द्रापिम् - कवचाला.


बिभ्रत् - धारण करणे.


निर्णिजम् - आपल्या धष्ट पुष्ट शरीरास.


वस्त - परिवेशित करणे.


स्पशः - बाहेर पडलेली किरण.


परि - चार ही बाजू.


नि षेदिरे - प्रसारित होणे.


भावार्थ :ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की स्वर्णमय कवच धारण करणारे वरूणदेव आपले धष्ट पुष्ट शरीर सुससज्जित करतात. शुभ्र प्रकाश किरणे त्यांच्या चारही बाजू मध्ये विस्तीर्ण होतात, म्हणजे सुवर्णपासून पडणारी आभा त्यांच्या भोवती व्याप्त राहते.


गूढार्थ: इथे सुवर्ण कवचाचा अर्थ आहे दिव्यतेचा कवच.जे निर्विकार आहेत,विषय रहित आहेत, त्याना दिव्यता प्राप्त होते.हे आमच्या साठी अनुकरणीय आहे.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.२५.१३


अनुवाद :


वरूणः - वरूणदेव।


हिरण्ययम् - सुवर्णमय।


द्रापिम् - कवच को।


बिभ्रत् - धारण करना।


निर्णिजम् - अपने पुष्ट शरीर को।


वस्त - परिवेशित करना।


स्पशः - निकलने वाली किरणें।


परि - उनके चारों ओर।


नि षेदिरे - फैलना।



भावार्थ : इस मंत्र में कहा गया है कि सुवर्णमय कवच धारण करनेवाले वरूणदेव अपने हृष्ट पुष्ट शरीर को सुसज्जित करते हैं।शुभ्र प्रकाश किरणें उनके चारों ओर विस्तीर्ण होती हैं अर्थात स्वर्ण से निकली हुई आभा उनके चारों ओर व्याप्त रहती है।


गूढार्थ:- यहां स्वर्ण कवच का अर्थ हुआ दिव्यता का कवच।जो निर्विकार होगा,विषय रहित होगा,वही दिव्यता को प्राप्त कर सकेगा। हमारे लिए भी यह अनुकरणीय होना चाहिए।



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