Shruti Bhagwati says that although Ishwar is omnipresent, Nirgun and Nirakaar (Invisible and without any shape,form, size or vices)but on a call from a true devotee, He transforms himself into Sagun sakaar(Visible and with a body) @ Rig Ved 1.25.18
दर्शं॒ नु वि॒श्वद॑र्शतं॒ दर्शं॒ रथ॒मधि॒ क्षमि॑ ।
ए॒ता जु॑षत मे॒ गिरः॑ ॥
Translation:-
दर्शम् - To see.
नु - Without doubt.
वि॒श्व द॑र्शतम् - Can be Sighted by all.
अधि दर्शम् - To sight.
रथ॒म् - On Chariot.
क्षमि॑ - On land.
जु॑षत - To accept.
मे॒ - Me.
Explanation :This mantra says that we all wish to view the Almighty Ishwar, But are not successful. But a true devotee gets to view him effortlessly. Similarly everybody wishes to occupy the ultimate abode,but only a true devotee gets that honour as Ishwar always listens to the evocation of his devotees.
Deep meaning: Shruti Bhagwati says that although Ishwar is omnipresent, Nirgun and Nirakaar (Invisible and without any shape,form, size or vices)but on a call from a true devotee, He transforms himself into Sagun sakaar(Visible and with a body).
#मराठी
ऋग्वेद १.२५.१८
दर्शं॒ नु वि॒श्वद॑र्शतं॒ दर्शं॒ रथ॒मधि॒ क्षमि॑ ।
ए॒ता जु॑षत मे॒ गिरः॑ ॥
भाषांतर :-
दर्शम् -पाहणे.
नु - निःसंदेह.
वि॒श्व द॑र्शतम् - प्रत्येका साठी दर्शनीय.
अधि दर्शम् - पाहणे.
रथ॒म - रथात.
क्षमि - भूमी वर
जुषत - स्वीकारणे.
में - माझे.
भावार्थ: ह्या मंत्रात म्हटले आहे की आम्ही सर्व त्या विश्व रूप ईश्वर चे दर्शन करण्यास उत्सुक असतो पण ते दर्शन घडते नाही.परंतु एका खऱ्या भक्ताला ते दर्शन लाभतो. ह्याच प्रमाणे ज्या अधिष्ठानाला प्राप्त करण्याची कामना सर्वांना असते,पण ते स्थान पण भक्ताला प्राप्त होते कारण की ईश्वर आपल्या भक्तांची हाक सार्थक करायची असते.
गूढार्थ: श्रुति भगवती म्हणतात की ईश्वर तर निर्गुण निराकार रूपात सर्वत्र व्याप्त आहे,पण एका खऱ्या भक्तीच्या प्रेमपूर्ण आवाहनाला ऐकून ते सगुण साकार रूपात येउन दर्शन देतात.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२५.१८
दर्शं॒ नु वि॒श्वद॑र्शतं॒ दर्शं॒ रथ॒मधि॒ क्षमि॑ ।
ए॒ता जु॑षत मे॒ गिरः॑ ॥
अनुवाद :-
दर्शम् - देखना।
नु - बिना किसी संदेह के।
वि॒श्व द॑र्शतम् - प्रत्येक के लिए दर्शनीय।
अधि दर्शम् - देख लेना।
रथ॒म् - रथ को।
क्षमि॑ - भूमि पर।
जु॑षत - स्वीकार कर लेना।
मे॒ - मेरी।
भावार्थ :-इस मंत्र में कहा गया है कि हम सब उस विश्व रूप ईश्वर को देखने की इच्छा तो रखते हैं,पर देख नहीं पाते,परंतु एक सच्चा भक्त अनायास ही उनके दर्शन पा जाता है। इसी प्रकार जिस अधिष्ठान को प्राप्त करने की कामना सब करते हैं,उस स्थान को भी भक्त जन प्राप्त कर लेते हैं क्योंकि भगवान हमेशा अपने भक्तों की पुकार को सार्थक करते हैं।
गूढार्थ:श्रुति भगवती कहती हैं ईश्वर तो सर्वत्र निर्गुण निराकार रूप में व्याप्त है और भक्तों की
य प्रेम से परिपूर्ण पुकार पर ईश्वर सगुण साकार रूप में प्रकट होकर दर्शन देते हैं।
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