Here Upper, Middle and legside portion refer to Shuunh Shep Rishi being tied to a pole. These three portions denote three types of human sufferings. They are Aadi Daivik, Aadi daihik {Physical} and Aadi bhautik {Materialistic} sufferings. When Parmatma destroys these sufferings, We are truly enlightened. @ Rig Ved 1.25.21
उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त ।
अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑ ॥
Translation:-
उदु॑त्त॒मम् - Head side.
उत् मु॑मुग्धि - Pull upwards to liberate.
नः - Ours.
पाशम् - Grip.
मध्य॒मम् - Middle portion.
वि चृ॑त - Seperate and destroy.
अध॒मानि॑ - My leg portion.
अव - Push downwards and destroy.
जी॒वसे॑ - Expecting to get life again.
Explanation:-This mantra is addressed to Varundev. It says that he should destroy the grips or ties on the upper portion,middle portion and legside portion of the body in order to destroy our ignorance and liberate us.This is written with reference to Shuunh Shep rishi.
Deep meaning. Here Upper, Middle and legside portion refer to Shuunh Shep Rishi being tied to a pole. These three portions denote three types of human sufferings. They are Aadi Daivik, Aadi daihik { Physical} and Aadi bhautik {Materialistic} sufferings. When Parmatma destroys these sufferings, We are truly enlightened.
#मराठी
ऋग्वेद १.२५.२१
उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त ।
अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑ ॥
भाषांतर :-
उदु॑त्त॒मम् - शिरोगत.
उत् मु॑मुग्धि - वर खेचून मुक्त करणे.
नः - आमचे.
पाशम् - पाश.
मध्य॒मम् - उदरगत.
वि चृ॑त - पृथक करून नाश करणे.
अध॒मानि॑ - माझे पादगत.
अव - खाली खेचून समाप्त करणे.
जी॒वसे॑ - जीव धारणाची इच्छा ठेवणारे.
भावार्थ :-ह्या मंत्रात वरूणदेवांना निवेदन केलेले आहे की त्याने आमचे उत्तम,मध्यम आणि अधम या तीनही पाशाना नष्ट करून आम्हास मुक्ति प्रदान करावी.
गूढार्थ: इथे उत्तम,मध्यम आणि अधम पाश म्हणजे क्रमशःआदि दैविक,आदि दैहिक आणि आदि भौतिक तापातून मुक्त होणे हे शुनःशेप ऋषिच्या संदर्भात आहे.जर आम्ही या तीघापासून मुक्त झालो तर आम्ही ज्ञानी होऊ.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२५.२१
उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त ।
अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑ ॥
अनुवाद :-
उदु॑त्त॒मम् - शिरोगत।
उत् मु॑मुग्धि - ऊपर खींचकर मुक्त करना।
नः - हमारे।
पाशम् - पाश को।
मध्य॒मम् - उदरगत।
वि चृ॑त - पृथक कर नाश करिए।
अध॒मानि॑ - मेरे पादगत।
अव - नीचे खींचकर समाप्त करना।
जी॒वसे॑ - जीव धारण की इच्छा रखनेवाले ।
भावार्थ :-इस मंत्र में वरूणदेव से कहा गया है कि वे उत्तम, मध्यम और अधम इन तीनों पाशों को नष्ट करें और हमें मुक्त करें।
गूढार्थ:यहां उत्तम, मध्यम और अधम पाश से तात्पर्य है आदि दैविक, आदि दैहिक और आदि भौतिक तापों से मुक्त होना,ये शुनःशेप ऋषि के संदर्भ में है। अगर हम तीनो तापों से मुक्त होंगे तो हम अज्ञान से मुक्त होंगे।
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