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RV 1.25.4

  • Writer: Anshul P
    Anshul P
  • Jun 21, 2020
  • 2 min read

Updated: Jun 22, 2020


Shruti Bhagwati says that after all we have to merge our being into the Supreme being i.e Parmatma, And for this we have to control our fleeting mind @ Rig Ved 1.25.4


परा॒ हि मे॒ विम॑न्यवः॒ पतं॑ति॒ वस्य॑इष्टये ।

वयो॒ न व॑स॒तीरुप॑ ॥


Translation:-


मे॒ - Mine.


विम॑न्यवः॒ - Not angry.


फरा पतं॑ति॒ - To make one run longer.


वस्य॑ इष्टये - For life.


वयो॒ न - The way birds.


व॑स॒तीः - Nest or house.


उप॑ हि - To run.


Explanation:- This mantra says that the just like the birds fly the whole day,but return to their nests in the evening, similarly my angerless mind roams amidst worldly things all day but to get happiness, we come in your(Parmatma) refuge or shelter.


Deep meaning:- Shruti Bhagwati says that after all we have to merge our being into the Supreme being i.e Parmatma, And for this we have to control our fleeting mind.



#मराठी


ऋग्वेद १.२५.४


परा॒ हि मे॒ विम॑न्यवः॒ पतं॑ति॒ वस्य॑इष्टये ।

वयो॒ न व॑स॒तीरुप॑ ॥


भाषांतर :-


मे॒ - माझे.


विम॑न्यवः॒ - क्रोध रहित.


परा पतं॑ति॒ - लांब पळवून नेणे.


वस्य॑ इष्टये - जीवना साठी.


वयो॒ न - ज्या प्रकारे पक्षी.


व॑स॒तीः - घरटे किंवा निवास.


उप॑ हि - पळणे.


भावार्थ :-ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की ज्या प्रकारे दिवस भर हिंडत राहिलेल्या पक्षी संध्याकाळी आपल्या घरटात परत येतात त्या प्रकारे माझी क्रोध रहित बुद्धी पण सांसारिक वस्तूंच्या प्रति आकर्षित होतात पण शेवटी मी तुझ्या शरणी येतो.


गूढार्थ: श्रुति भगवती म्हणतात की शेवटी आम्हास अात्मा ला परमात्मे शी एकाकार करायचा असतो पण हे तेंव्हा संभव होणार जेंव्हा आमचे चपल मनाला नियंत्रित करू.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.२५.४


परा॒ हि मे॒ विम॑न्यवः॒ पतं॑ति॒ वस्य॑इष्टये ।

वयो॒ न व॑स॒तीरुप॑ ॥


अनुवाद :-


मे॒ - मेरा या मुझ।


विम॑न्यवः॒ - क्रोधित न होना।


फरा पतं॑ति॒ - दूर दूर तक दौड़वाना।


वस्य॑ इष्टये - जीवन के लिए।


वयो॒ न - जिस प्रकार पक्षी।


व॑स॒तीः - घोंसला या निवास।


उप॑ हि - दौडना।


भावार्थ :-इस मंत्र में कहा गया है कि जिस प्रकार पक्षी दिन भर इधर उधर दौड़ते हैं पर शाम को अपने निवास या घोंसलों में आ जाते हैं, उसी प्रकार क्रोधरहित मेरी बुद्धि भी सांसारिक वस्तुओं के प्रति आकर्षित होती हुई अंत में सुख की प्राप्ति के लिए आपकी शरण में आकर ही शांति प्राप्त करते है।


गूढार्थ:श्रुति भगवती कहती हैं कि हमें आत्मा को परमात्मा से एकाकार करना है और ये तब संभव होगा जब हम अपने चंचल मन को नियंत्रण में रखें।



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