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Writer's pictureAnshul P

RV 1.25.9


The place of Praan Vaayu is heart. Reverence(Shradha) exists in the heart. So Reverence should be expressed through your heart, Therefore dedication towards truth should also come from heart.Then the Truth becomes our Protector. The way we take care of our body, Similarly Parmatma takes care of us as we are his part @ Rig Ved 1.25.9


वेद॒ वात॑स्य वर्त॒निमु॒रोर्ऋ॒ष्वस्य॑ बृह॒तः ।

वेदा॒ ये अ॒ध्यास॑ते ॥


Translation:-


वेद॒ - To know.


वात॑स्य - For wind.


वर्त॒निम् - On road.


उरोः - Wide.


र्ऋ॒ष्वस्य॑ - Pleasing.


बृह॒तः - Big and Famous


वेद - To know.


ये - This.


अ॒धि आस॑ते - Stays up.


Explanation:-This mantra says that Varundev knows about the secretly moving Praan Vaayu or inner moving air flowing from all four directions.He also knows the about the adorning deities keeping an eye on the great praan vaayu.


Deep meaning:- The place of Praan Vaayu is heart. Reverence(Shradha) exists in the heart. So Reverence should be expressed through your heart, Therefore dedication towards truth should also come from heart.Then the Truth becomes our Protector. The way we take care of our body, Similarly Parmatma takes care of us as we are his part.




#मराठी


ऋग्वेद १.२५.९


वेद॒ वात॑स्य वर्त॒निमु॒रोर्ऋ॒ष्वस्य॑ बृह॒तः ।

वेदा॒ ये अ॒ध्यास॑ते ॥


भाषांतर :-


वेद - ज्ञात होणे.


वात॑स्य - वायु ने.


वर्त॒निम् - मार्गात.


उरो - विस्तीर्ण.


र्ऋ॒ष्वस्य॑ - दर्शनीय.


बृह॒तः - महान.


वेद - ज्ञात असणे.


ये - जे.


अ॒धि आस॑ते - वर असतात.


भावार्थ :-ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की वरूणदेव चार ही बाजूस वाहून पण महान प्राण वायुची रहस्यपूर्ण गति ची जाणीव ठेवतात. त्यांना ह्या महान प्राण वायुच्या गति वर दृष्टि ठेवणारे अधिष्ठाता देवतांची पण माहिती आहेत.


गूढार्थ: प्राण वायुचे स्थान हृदय आहे. श्रृद्धेचा पण स्थान हृदय आहे,म्हणून सत्याचा प्रति समर्पण हृदय पासून असला पाहिजे.शक्यच आपले रक्षण करतो.जसे आम्ही आपल्या अंगाचे रक्षण करतो,तसेच परमात्मा आमचे रक्षण करणार.



#हिंदी


ऋग्वेद १.२५.९


वेद॒ वात॑स्य वर्त॒निमु॒रोर्ऋ॒ष्वस्य॑ बृह॒तः ।

वेदा॒ ये अ॒ध्यास॑ते ॥


अनुवाद :-


वेद॒ - जानना।


वात॑स्य - वायु को।


वर्त॒निम् - मार्ग को।


उरोः - विस्तीर्ण।


र्ऋ॒ष्वस्य॑ - दर्शनीय।


बृह॒तः - महान।


वेद - जानना।


ये - जो।


अ॒धि आस॑ते - ऊपर रहते हैं।


भावार्थ :-इस मंत्र में कहा गया है कि वरूणदेव चारों तरफ बहने वाली महान प्राण वायु की रहस्यात्मक गति का पूरा ज्ञान रखते हैं। उन्हें इस महान प्राण वायु की गति के रूप मे निगरानी रखनेवाले अधिष्ठाता देवताओं की भी जानकारी है।


गूढार्थ:प्राण वायु का स्थान हृदय है।श्रद्धा का भी स्थान हृदय है,इसलिए सत्य का समर्पण हृदय से होना चाहिए। सत्य ही रक्षा करता है। जैसे हम अपने अंग की रक्षा करते हैं,वैसे ही परमात्मा हमारी रक्षा करता है।


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