top of page
Search
Writer's pictureAnshul P

RV 1.26.10

Updated: Jul 19, 2020


Rig Ved 1.26.10


TRADITIONAL WAY TO INVOKE AGNI


This type of Agni is called by invoking(by rubbing) wood or stone. This is its spiritual aspect unlike the physical one. It is always present everywhere since it is universal. When we evoke this Agni through our heart our mind becomes pure and we are consciously happy. Shruti Bhagwati is calling the Agni as mentioned above. From times immemorial we have been appealing to the near and dear one's for help. No one is as near as Parmatma is. So we call upon him(Agnidev) and ask him to provide foodgrains for our welfare @ Rig Ved 1.26.10


विश्वे॑भिरग्ने अ॒ग्निभि॑रि॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचः॑ ।

चनो॑ धाः सहसो यहो ॥


Translation:-


विश्वे॑भि - In all aspects.


अग्ने - Oh! Agni.


अ॒ग्निभि॑ - With Agni.


इनम् य॒ज्ञम् - For this Yagya.


इदं वचः॑ - This hymn.


चनः - Foodgrains


धाः - To carry.


सहसः - With Energy.


यहो - Son in the form of Deity.


Explanation:-In this mantra Agnidev is requested to appear with his strength and energy.The Yajmans also request him to come for this sacred Yagya along with his radiant energy in order to make this sacred Yagya successful. Also they pray to him, to listen to their hymns along with sufficient foodgrains for the nourishment of Yajmans.


Deep meaning: This type of Agni is called by invoking(by rubbing) wood or stone. This is its spiritual aspect unlike the physical one. It is always present everywhere since it is universal. When we evoke this Agni through our heart our mind becomes pure and we are consciously happy. Shruti Bhagwati is calling the Agni as mentioned above. From times immemorial we have been appealing to the near and dear one's for help. No one is as near as Parmatma is. So we call upon him(Agnidev) and ask him to provide foodgrains for our welfare.



🎥Credit-श्री दत्त अनुष्ठान केंद्र उज्जैन


#मराठी


ऋग्वेद १.२६.१०


विश्वे॑भिरग्ने अ॒ग्निभि॑रि॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचः॑ ।

चनो॑ धाः सहसो यहो ॥


भाषांतर :-


विश्वे॑भि - सर्व प्रकाराचे.


अग्ने - हे अग्ने!


अ॒ग्निभि॑ - अग्निच्या बरोबर.


इमम् य॒ज्ञम् - ह्या यज्ञाच्या साठी.


इदं वचः॑ - ह्या स्तोत्रात.


चनः - धान्य.


धाः - धारण करणे.


सहसः - बलाचा.


यहो - पुत्र देव रूप.


भावार्थ :-ह्या मंत्रात बळ किंवा ऊर्जा बरोबर प्रकट होणारे अग्निदेवांना संबोधित करून आणि प्रार्थना करून म्हटले आहे की त्यांनी आपले तेजस्वी सामर्थ्या बरोबर यजमानांचे यज्ञकर्माला सफल बनवूनआणि त्यांचा स्तोत्रांना श्रवण करून त्यांचा साठी पर्याप्त धान्याला धारण करून त्यांचे पोषण चांगल्या पद्धती ने करवून देणार.


गूढार्थ : इथे अग्निचे आवाहनीय स्वरूपाचे(घर्षणचा माध्यमे) वर्णन आहे.हा अग्निचा भौतिक नव्हे पण आध्यात्मिक स्वरूप आहे.अग्नि प्रत्येक वस्तूत लपूून असते.जर हा आवाहन हृदयाने होत आहे तर चित्त शुध्द होतो आणि अंतःकरण प्रसन्न होउन जातो.ही अनादिकाळातली परंपरा आहे की आम्ही सहायता जवळचे व्यक्तीशी मागतो. परमात्माहून अधिक जवळ दूसरे कोणिही नसतो,म्हणून आपले पोषणा साठी त्यांचे आवाहन करतो.



#हिंदी


ऋग्वेद १.२६.१०


विश्वे॑भिरग्ने अ॒ग्निभि॑रि॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचः॑ ।

चनो॑ धाः सहसो यहो ॥


अनुवाद :-


विश्वे॑भि - सभी प्रकार की।


अग्ने - हे अग्ने!


अ॒ग्निभिः - अग्नियों के साथ।


इमम् य॒ज्ञम् - इस यज्ञ को।


इदं वचः॑ - इस स्तोत्र को।


चनः - अन्न।


धाः - धारण करना।


सहसः - बल के।


यहो - पुत्र देवता रूप।


भावार्थ :-इस मंत्र में बल या ऊर्जा के साथ प्रकट होनेवाले अग्निदेव को संबोधित कर उनसे प्रार्थना की गई है कि वे अपने तेजस्वी सामर्थ्य के साथ प्रकट होकर यजमान के यज्ञकर्म को सफल बनाए और उसके स्तोत्रो का श्रवण करके उसके लिए पर्याप्त अन्न को धारण करें जिससे उसका पोषण भली भाँति हो सके।


गूढार्थ; यहां अग्नि का आवाहनीय स्वरूप(घर्षण द्वारा) कहा गया है।यह भौतिक नहीं बल्कि अग्नि का आध्यात्मिक पक्ष है। अग्नि छिपी रहते हुए भी सर्वव्यापक है। ऐसी अग्नि को हृदय से प्रकट करवाने पर चित्त शुद्ध और अंतःकरण प्रसन्न रहता है। श्रुति भगवती उपर्युक्त रूप में यह स्तुति कर रहीं हैं। यह तो अनादिकाल से परंपरा चली आ रही है कि हम सहायता के लिए निकटजनों को याद करते हैं। परमात्मा(अग्निदेव) से अधिक हित चाहनेवाला और कोई नहीं,इसलिए हम अपना पोषण करने के लिए उनका आवाहन करते हैं।







🎥Credit-श्री दत्त अनुष्ठान केंद्र उज्जैन

60 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


Post: Blog2_Post
bottom of page