Ved can be divided in three sections(Karmakaand, Upaasana kaand and Gyan kaand) as per their subject matter. This mantra encompasses all three types. The physical (Karmakaand)aspect is explained in the following way.Ishwar as our father is pleased with the devotion of his children and showers unlimited benevolence on his children. Second context is the mutual selfless love between Parmatma and devotee(Adhi Daivik) .
Third context is spiritual where Parmatma is requested to demolish devotee's sufferings and ignorance @ Rig Ved 1.26.3
आ हि ष्मा॑ सू॒नवे॑ पि॒तापिर्यज॑त्या॒पये॑ ।
सखा॒ सख्ये॒ वरे॑ण्यः ॥
Translation:-
आपये - For brother.
हि स्म - All.
आ यजति - To give.
सू॒नवे॑ - For the place of brother.
पि॒ता - For the place of father.
आपि - Brothers
सखा॒ - Friend.
सख्ये॒ - For friend.
वरे॑ण्यः - Best.
Explanation:-This mantra denotes Agnidev as Father and Yajmams as sons.Agnidev is requested that as the best parent lovingly takes care of his son,as brother towards his brother and friend towards his friends and also tries to fulfill their wishes,similarly Oh! Agnidev you fulfill my wishes.
Deep meaning: Ved can be divided in three sections(Karmakaand, Upaasana kaand and Gyan kaand) as per their subject matter. This mantra encompasses all three types. The physical (Karmakaand)aspect is explained in the following way.Ishwar as our father is pleased with the devotion of his children and showers unlimited benevolence on his children. Second context is the mutual selfless love between Parmatma and devotee(Adhi Daivik) .
Third context is spiritual where Parmatma is requested to demolish devotee's sufferings and ignorance.
#मराठी
ऋग्वेद १.२६.३
आ हि ष्मा॑ सू॒नवे॑ पि॒तापिर्यज॑त्या॒पये॑ ।
सखा॒ सख्ये॒ वरे॑ण्यः ॥
भाषांतर :-
आपिः - बन्धु.
हि स्म - सर्वथा.
सू॒नवे॑ - पुत्र स्थानासाठी.
पि॒ता - पितृ स्थानासाठी.
आपये॑ - बन्धुंसाठी.
सखा॒ - मित्र.
सख्ये॒ - मित्रां साठी.
आ यजति - प्रदान करणे.
वरे॑ण्यः - श्रेष्ठ.
भावार्थ :-ह्या मंत्रा मध्ये अग्निदेवांना पितृ स्थान आणि यजमानांना पुत्र स्थानावर निरूपित करून त्यांना प्रार्थना केलेली आहे की जसे एक श्रेष्ठ वडिल आपल्या पुत्रावर,एक भाऊ आपल्या भावंडांवर आणि मित्र आपल्या मित्राची इच्छांची पूर्तता करतो,त्याच प्रमाणे हे! अग्निदेव आपण पण माझी कामना पूर्ण करावी.
गूढार्थ: वेदांचा तीनही कांड(कर्मकांड, उपासना कांड आणि ज्ञानकांड) ह्या मंत्रात दिसून येताे.
ह्याचे भौतिक (कर्मकांड) अर्थ आहे की ईश्वर वडिलांसारखे आपल्या संतानाच्या(यजमान) उपासने तून प्रसन्न होउन त्यांच्यावर अनुग्रह करतो.
ह्याचा आधिदैविक अर्थ आहे की पिता पुत्र दोघे निश्चिंत आणि निस्वार्थ भावाने परस्पर प्रेम करतो तसे प्रेम परमात्मा आणि भक्तात आहे .तीसरे आध्यात्मिक अर्थ आहे आमच्या मध्ये अज्ञान आणि दुःखांना नष्ट केले पाहिजे.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२६.३
आ हि ष्मा॑ सू॒नवे॑ पि॒तापिर्यज॑त्या॒पये॑ ।
सखा॒ सख्ये॒ वरे॑ण्यः ॥
अनुवाद :-
आ यजति - प्रदान करना।
हि स्म - सर्वथा।
सू॒नवे॑ - पुत्र स्थान के लिए।
पि॒ता - पितृ स्थान के लिए।
आपये॑ - बन्धु के लिए।
आपिः - बन्धु।
सखा॒ - मित्र।
सख्ये॒ - मित्र के लिए।
वरे॑ण्यः - श्रेष्ठ।
भावार्थ :-इस मंत्र में अग्निदेव को पितृ स्थान और यजमान को पुत्र स्थान में निरूपिंत करते हुए उनसे प्रार्थना की गई है कि जैसे एक श्रेष्ठ पिता प्रेमपूर्वक अपने पुत्र को,भाई अपने भाई को और मित्र अपने मित्र की इच्छाओं को सर्वथा पूरा करता है,उसी प्रकार हे! अग्निदेव आप भी मेरी कामनाओं को पूरा करें।
गूढार्थ:वेद के तीनों कांड( कर्मकांड,उपासना कांड और ज्ञानकांड)इसमें देखने को मिलते हैं।इसका भौतिक(कर्मकांड) अर्थ है कि ईश्वर पिता की तरह अपनी संतान (यजमानो) की उपासना से प्रसन्न होकर उनपर अनुग्रह करता है।
इसका आधिदैविक अर्थ है कि जैसे पिता पुत्र दोनो निश्चिंत और परस्पर प्रेम निस्वार्थ भाव से करते हैं वैसे ही परमात्मा और भक्त के बीच का रिश्ता है। तीसरा आध्यात्मिक अर्थ है कि ईश्वर मेरे भीतर के अज्ञान और दुख को दूर करें।
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📸Credit-Iskomtampa
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