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Writer's pictureAnshul P

RV 1.26.7

Updated: Jul 16, 2020


EACH AND EVERY VED MANTRA IS ACTUALLY DEDICATED TO PARMATMA ONLY


Rig Ved 1.26.7


Here Agnidev is declared as Adhidev meaning the 'ultimate One '.He is the ultimate therefore he is Parmatma swaroop(The Supreme One). Because of this supremacy he is Aadhyatma Swarup. Both have name and fame. They are indestructible, Anandswaroop( Happiness incarnate) and Satyaswaroop(Truth incarnate). The conscious power is Parmatma himself @ Rig Ved 1.26.7


प्रि॒यो नो॑ अस्तु वि॒श्पति॒र्होता॑ मं॒द्रो वरे॑ण्यः ।

प्रि॒याः स्व॒ग्नयो॑ व॒यं ॥

Translation:-


प्रि॒यः - Dear.


नः - Ours.


अस्तु - To be.


वि॒श्पतिः - The protector of his subjects.


होता॑ - The one performing Yagya.


मं॒द्रः - Happy.


वरे॑ण्यः - To choose or select.


व॒ग्नयः - With the best type of fire.


व॒यम् - We.


Explanation:- Here many qualities of Agnidev are mentioned.He is the protector of his subjects, The performer of Yagya,He is always cheerful and happy. He is among the best Deity. We request him to remain endearing towards Yajmans and may the Yajmans be the one's who perform things which are dear to Agnidev.


Deep meaning: Here Agnidev is declared as Adhidev meaning the 'ultimate One '.He is the ultimate therefore he is Parmatma swaroop(The Supreme One). Because of this supremacy he is Aadhyatma Swarup. Both have name and fame. They are indestructible, Anandswaroop( Happiness incarnate) and Satyaswaroop(Truth incarnate). The conscious power is Parmatma himself.




#मराठी


ऋग्वेद १.२६.७


प्रि॒यो नो॑ अस्तु वि॒श्पति॒र्होता॑ मं॒द्रो वरे॑ण्यः ।

प्रि॒याः स्व॒ग्नयो॑ व॒यं ॥


भाषांतर :-


प्रि॒यः - प्रिय.


नः - आमचे.


अस्तु - होणे.


वि॒श्पतिः - प्रजेचा पालन करणारा.

होता॑ - यज्ञ निष्पादक.


मं॒द्रः - प्रसन्न.


वरे॑ण्यः - वरण करणारे.


व॒ग्नयः - उत्तम अग्नि(तेज) ने युक्त


व॒यम् - आम्ही.


भावार्थ :-इथे अग्निची अनेक वैशिष्ट्यांचे वर्णन असून त्याना प्रजेचा पालक,यज्ञ निष्पादक, सदा प्रफुल्लित राहणारा व सर्वांचा वरण करणारा म्हणून त्यांना श्रेष्ठ देव म्हटले आहे.असे गुणयुक्त अग्निदेवांना यजमान प्रिय वाटू दे आणि यजमान पण अग्निंचे प्रिय करणारे असू दे.


गूढार्थ: इथे अग्निदेवांना आधिदेव अर्थात सर्वश्रेष्ठ घोषित केलेले आहे.ते सर्वश्रेष्ठ आहेत म्हणून परमात्मा रूप आहेत, ह्या कारणे ते आध्यात्म रूप आहेत. दोघांची एकता सिद्ध आहे.दोघे अविनाशी,आनंदस्वरूप आणि सत्यस्वरूप आहेत.त्या चेतन सत्ते चा नांव घेउन वास्तवात परमात्माची स्तुती केली आहे.


#हिंदी


ऋग्वेद १.२६.७


प्रि॒यो नो॑ अस्तु वि॒श्पति॒र्होता॑ मं॒द्रो वरे॑ण्यः ।

प्रि॒याः स्व॒ग्नयो॑ व॒यं ॥


अनुवाद :-


प्रि॒यः - प्रिय।


नः - हमारे।


अस्तु - होना।


वि॒श्पतिः - प्रजा के पालनहार।


होता॑ - यज्ञ निष्पादक।


मं॒द्रः - प्रसन्न।


वरे॑ण्यः - वरण करने योग्य।


प्रि॒यः - प्रिय।


व॒ग्नयः - उत्तम अग्नि(तेज) से युक्त।


व॒यम् - हम।


भावार्थ :-यहां अग्नि की अनेक विशेषताओं का वर्णन है।वे समस्त प्रजा के पालनकर्ता, यज्ञ के निष्पादक, सदा प्रफुल्लित रहनेवाले और सभी का वरण करनेवाले सबों में श्रेष्ठ देव हैं। ऐसे गुणवान अग्निदेव अपने यजमानो के लिए प्रिय हों तथा यजमान भी उनके प्रिय कार्य करनेवाले हों।


गूढार्थ: यहां अग्निदेव को आधिदेव अर्थात सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया है। वे सर्वश्रेष्ठ हैं इसलिए परमात्मा रूप हैं इसलिए वे आध्यात्मरूप हैं। दोनो की एकता सिद्ध है। दोनो अविनाशी,आनंदस्वरूप और सत्यस्वरूप हैं। उस चेतन सत्ता का नाम लेकर वास्तव में परमात्मा की ही स्तुति हो रही है।








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