HERE OMNIPRESENCE OF PARMATMA IS SCIENTIFICALLY PROVED
Rig Ved 1.26.8
Here the worldly or physical meaning is explained. It says that when we chant a particular name of a Deity while giving our offering, Agnidev carries that offering to that particular Deity. Fire is always Present in visible or invisible form.We call for it as per our need. Though it is omnipresent, but it remains aloof. For eg Wood contains fire inside,but it inflames only when rubbed The real characteristics of Fire is 'Yatra Tatra sarvatra' (Here,there,everywhere) @ Rigved 1.26.8
स्व॒ग्नयो॒ हि वार्यं॑ दे॒वासो॑ दधि॒रे च॑ नः ।
स्व॒ग्नयो॑ मनामहे ॥
Translation:
स्नग्नयः - Contains excellent fire.
देवासः - Radiant.
नः - Ours.
वार्यम् - Selectable.
हि - Because.
दधिरे - To carry or wear.
च - Then also.
मनामहै - To Plead.
Explanation:It means that because the Deities possess excellent Quality of radiant fire they are Prosperous. Therefore we too desire the best type of Agni.It means that the radiant Priests have our selected offerings, similarly we too should desire the same fire and become prosperous.
Deep meaning: Here the worldly or physical meaning is explained. It says that when we chant a particular name of a Deity while giving our offering, Agnidev carries that offering to that particular Deity. Fire is always Present in visible or invisible form.We call for it as per our need. Though it is omnipresent, but it remains aloof. For eg Wood contains fire inside,but it inflames only when rubbed The real characteristics of Fire is 'Yatra Tatra sarvatra' (Here,there,everywhere).
📸Credit-jaymahkal
#मराठी
ऋग्वेद १.२६.८
स्व॒ग्नयो॒ हि वार्यं॑ दे॒वासो॑ दधि॒रे च॑ नः ।
स्व॒ग्नयो॑ मनामहे ॥
भाषांतर:
स्नग्नयः - उत्तम अग्नि युक्त.
देवासः - दीप्तिमान.
नः - आमचे.
वार्यम् - वरणीय.
हि - यतः.
दधिरे - धारण करणे.
च - ते पण.
मनामहै - याचना करणे.
भावार्थ :ह्या मंत्रात म्हटले आहे की इथे यतः उत्तम अग्नि ने युक्त होउन देवांनी ऐश्वर्य धारण केले,म्हणून आम्ही पण उत्तम अग्निने युक्त होण्याची कामना करू.अर्थात दैदिप्यमान ऋत्विकांनी आमचे वरणीय हविला धारण केलेले आहे,आम्ही पण उत्तम अग्निने युक्त होउन दीप्तिमान होण्याची कामना करू.
गूढार्थ: इथे मंत्राचा भौतिक अर्थ सांगितला गेला आहे की आम्ही ज्या देवांचे नाव घेउन हवि टाकतो, अग्निदेव त्याच देवाकडे हवि नेउन जातात. अग्नि सर्वकाळी तिथे वास्तव्य करते,प्रकट किंवा अप्रकट रूपात. कारण आम्ही उपयोगाच्या वेळी अग्निला आवाहन करतो.उदाहरण आहे लाकूड. ह्याचे घर्षण केल्यावर अग्नि उत्पन्न होते कारण ती त्याचा आत व्याप्त असते.इकडे अग्निचा स्वरूप आहे यत्र तत्र सर्वत्र.
#हिन्दी
ऋग् वेद १.२६.८
स्व॒ग्नयो॒ हि वार्यं॑ दे॒वासो॑ दधि॒रे च॑ नः ।
स्व॒ग्नयो॑ मनामहे ॥
अनुवाद :
स्नग्नयः - उत्तम अग्नि से युक्त ।
देवासः - दीप्तिमान।
नः - हमारे।
वार्यम् - वरणीय।
हि - यतः।
दधिरे - धारण करना।
च - भी।
स्वग्नयः - उत्तम अग्नि से युक्त।
मनामहै - याचना करना।
भावार्थ :इस मंत्र मे कहा गया है कि यहां यतः उत्तम अग्नि से युक्त होने के कारण देवों ने श्रेष्ठ ऐश्वर्य को धारण किया है,अतः हम भी उत्तम अग्नि से युक्त होने की कामना करें। अर्थात दीप्तिमान ऋत्विजों ने हमारे वरणीय हवि को धारण किया है हम भी उसी प्रकार उत्तम अग्नि से युक्त होकर दीप्तिमान बनने की कामना करें।
गूढार्थ:यहां इसके भौतिक अर्थ को दर्शाया गया है। हम मंत्र के द्वारा जिस देवता का नाम लेकर हवि देते हैं,अग्निदेव उन तक उसे पहुँचा देते हैं।अग्नि हमेशा वर्तमान में रहती है,प्रकट या अंर्तध्यान हो सकती है,क्योंकि हम उपयोग के हिसाब से उसका आवाहन करते हैं। वह सर्वव्यापी होते हुए भी अलिप्त है।उदाहरण है काष्ठ।काष्ठ रगडने पर अग्नि उत्पन्न होती है,क्योंकि वह उसमें व्याप्त है।यहां अग्नि का स्वरूप यत्र तत्र सर्वत्र है।
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