OFFERINGS MADE THROUGH YAGYA ULTIMATELY REACHES TO PARMATMA THROUGH DEVTAS
Rig Ved 1.27.10
This is an important mantra of rituals or Karmakaand. Shruti Bhagwati says that Karmakaand is highlighted in this Matra. While praying if your heart is pure and mind is clear then this prayer reaches directly to Parmatma. For eg, A drop of water drops from the sky on earth it flows into a sewer, which then goes into a river. The river water finally goes into the Ocean. Similarly our Prayers reach Parmatma through Deities.
जरा॑बोध॒ तद्वि॑विड्ढि वि॒शेवि॑शे य॒ज्ञिया॑य ।
स्तोमं॑ रु॒द्राय॒ दृशी॑कं ॥
Translation
जराबोध - Oh the intelligent One!
विशेविशे - For the welfare of the People.
यज्ञियाय - Attainment through Yagya rituals.
तत् - That.
विविडि्ढ - To enter.
रूद्राय - For Rudra.
दृशीकम् - Beautiful.
स्तोमम् - To sing hymns.
Explanation:This mantra is addressed to Agnidev. It says that he is the most understanding one,he will definitely look after the well being of his People.So the Yajmans try to please him by singing hymns in his praises.They also request the Deity in whose praise the hymn is being sung to come for this Yagya karma.
Deep meaning:This is an important mantra of rituals or Karmakaand. Shruti Bhagwati says that Karmakaand is highlighted in this verse.While praying if your heart is pure and mind is clear then this prayer reaches directly to Parmatma. For eg.A drop of water drops from the sky on earth it flows into a sewer, which then goes into a river.The river water finally goes into the Ocean.Similarly our Prayers reach Parmatma through Deities.
#मराठी
ऋग्वेद १.२७.१०
जरा॑बोध॒ तद्वि॑विड्ढि वि॒शेवि॑शे य॒ज्ञिया॑य ।
स्तोमं॑ रु॒द्राय॒ दृशी॑कं ॥
भाषांतर:
जराबोध - हे स्तुतिने बोध्यमान.
विशेविशे - प्रजेचे कल्याणासाठी.
यज्ञियाय - याज्ञिक अनुष्ठानांने सिद्धी साठी.
तत् - त्या.
विविडि्ढ - प्रवेश करणे.
रूद्राय - रूद्रदेव साठी.
दृशीकम् - सुंदर.
स्तोमम् - स्तुतिंचे गायन करणे.
भावार्थ:ह्या मंत्रा मध्ये अग्निदेवांना संबोधित करून म्हटले अाहे की ते स्तुतिंच्या द्वारे समजून घेणारे आणि यजमान रूपी प्रजेचे मंगळ करणारे आहेत.ह्या कारणाने यजमान त्यांना प्रसन्न करण्यासाठी त्यांचा साठी स्तुतिंचे गायन करतात. म्हणून ज्या देवांसाठी प्रार्थना होत आहे त्याने ह्या यज्ञात अवश्य उपस्थित रहावे.
गूढार्थ:हा कर्मकांडाचा महत्वपूर्ण मंत्र आहे। श्रुति भगवती इथे विशेष रूपाने कर्मकांडा बद्दल सांगत आहेत.जर हृदयाचे भाव पवित्र आणि अंतःकरण शुद्ध असेल तर केलेली प्रार्थना देवतांकडे थेट पोहोचली पाहिजे .उदाहरणार्थ आकाशातून पाण्याचे थेंब खाली पडल्यावर जमीनीत पडतो.तिथून तो नालीत जातो,तिथून नदीत, नंतर समुद्रात जाउन मिळतो. त्याच प्रमाणे आमची प्रार्थना पण ईश्वराकडे पोहोचते.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.२७.१०
जरा॑बोध॒ तद्वि॑विड्ढि वि॒शेवि॑शे य॒ज्ञिया॑य ।
स्तोमं॑ रु॒द्राय॒ दृशी॑कं ॥
अनुवाद
जराबोध - हे स्तुति से बोध्यमान!
विशेविशे - प्रजा के कल्याण हेतु।
यज्ञियाय - याज्ञिक अनुष्ठानो की सिद्धि के लिए।
तत् - उस।
विविडि्ढ - प्रवेश करना।
रूद्राय - रूद्रदेव के लिए।
दृशीकम् - सुंदर।
स्तोमम् - स्तुतियों का गायन करना।
भावार्थ :इस मंत्र में अग्निदेव को संबोधित करते हुए कहा गया है कि वे स्तुतियों के द्वारा बोध्यमान और यजमान रूपी प्रजाओं के मंगल करनेवाले हैं। इसलिए उनसे प्रार्थना है कि यजमान उनको प्रसन्न करने के लिए स्तुति गान कर रहे हैं। अतः जिस देवता विशेष के लिए प्रार्थना हो रही है वह इस यज्ञकर्म में प्रवेश करें।
गूढार्थ: यह कर्मकांड का बडा महत्वपूर्ण मंत्र है।श्रुति भगवती यहां कर्मकांड के बारे में विशेष रूप से बताती हैं।यदि हृदय में भाव हो और शुद्व अंतःकरण से प्रार्थना की जाती है तो देवता को प्रत्यक्ष रूप से पहुंचती है।उदाहरण स्वरूप अगर आकाश से जल गिरता है तो धरती पर आता है,वहां से नाली में, फिर नदी मे और अंत में समुद्र तक पहुँच जाता है।उसी तरह प्रार्थना देवताओं के माध्मम से परमपद को पहुंच जाती है।
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