UTILIZE THIS HUMAN BODY TOWARDS WORSHIP OF PARMATMA
Rig Ved 1.27.13
Keeping Parmatma in mind Shruti Bhagwati says that may it be the four stages of our life or may it be time,we have to see Parmatma in them.Also our Prayers should be faultless. Here bowing before things means liberating ourselves from faulty ego. We have to worship consistently if we wish to Worship Parmatma.
नमो॑ म॒हद्भ्यो॒ नमो॑ अर्भ॒केभ्यो॒ नमो॒ युव॑भ्यो॒ नम॑ आशि॒नेभ्यः॑ ।
यजा॑म दे॒वान्यदि॑ श॒क्नवा॑म॒ मा ज्याय॑सः॒ शंस॒मा वृ॑क्षि देवाः
Translation
महदभ्यः - For people with great qualities.
नमः - Salutations.
अर्भकेभ्यः - Child with minor qualities.
युवभ्यः - For young.
आशिनेभ्यः - For older people.
यदि - If.
शक्नबाम् - Capable .
देवान् - For Deities.
यजाम् - To perform Yagya.
देवाः - Oh Dev!
ज्यायस्यः - Of best.
आ शसम् - To praise.
मा वृक्षि - Should not be wrong.
Translation:In this mantra we again find reference to Shuunh Shep Muni about what he did to please Parmatma.Our body goes through four stages- childhood, youth,middle age and adage. But they all are reflection of Parmatma and we should bow before them.It further says We should keep offering Salutations to Parmatma till the time we have energy in our body and we will keep performing Yagya to keep the Deities happy. Only thing is, We should never be wrong in our Praises, this is the request to Parmatma.
Deep meaning: Keeping Parmatma in mind Shruti Bhagwati says that may it be the four stages of our life or may it be time,we have to see Parmatma in them.Also our Prayers should be faultless. Here bowing before things means liberating ourselves from faulty ego. We have to worship consistently if we wish to Worship Parmatma.
# मराठी
ऋग्वेद १.२७.१३
नमो॑ म॒हद्भ्यो॒ नमो॑ अर्भ॒केभ्यो॒ नमो॒ युव॑भ्यो॒ नम॑ आशि॒नेभ्यः॑ ।
यजा॑म दे॒वान्यदि॑ श॒क्नवा॑म॒ मा ज्याय॑सः॒ शंस॒मा वृ॑क्षि देवाः
भाषांतर:-
महदभ्यः - गुणा मध्ये श्रेष्ठ असणाऱ्यांसाठी.
नमः - नमस्कार आहे.
अर्भकेभ्यः - अल्प गुणांचे बालक.
युवभ्यः - युवांसाठी.
आशिनेभ्यः - वृद्धांसाठी.
यदि - जर.
शक्नबाम् - समर्थ होणे.
देवान् - देवांचा.
यजाम् - यजन करणे.
देवाः - हे देव!
ज्यायस्यः - श्रेष्ठांचे.
आ शसम् - प्रशंसा करणे.
मा वृक्षि - चूकीचे.
भावार्थ:ह्या मंत्रात पुनः शुनःशेप मुनिंचा संदर्भ आहे की त्यांने कसे देवांना प्रसन्न केले.ह्या देहाच्या चार अवस्था असतात- बाल्य, तारूण्य, प्रौढत्व आणि वृद्धत्व. ह्या सगळ्या परमात्माचेच रूप आहेत असे सांगून त्याना नमन करित पुढे म्हटले आहे की जे पर्यंत आमच्यात शक्ति असेल जो पर्यंत आम्ही देवांना प्रसन्न करण्यासाठी यज्ञ करत राहणार. परमात्म्याची स्तुती करताना आमची कोणतीही चूक होउ नये, ही प्रार्थना आहे.
गूढार्थ: इथे श्रुति भगवती परमात्मांना लक्ष्य करून म्हणतात की जणू शरीराची चारही अवस्था असो की काळ असो,आम्हास ह्यांचा मध्ये परमात्माना पाहायला असतो.हे पण लक्ष्यावर आले पाहिजे की आमची प्रार्थनेत काही त्रूटी नसली पाहिजे. इथे सर्वांना नमस्काराचा तात्पर्य आहे की आमच्याकडून सर्व मिथ्या अहंकार याचे त्याग केले पाहिजे.आम्ही भक्ति तो पर्यंत करू शकतो जो पर्यंत हा शरीर आहे.म्हणून भक्ति पण नित्य करावी.
#हिन्दी
ऋद्धियों १.२७.१३
नमो॑ म॒हद्भ्यो॒ नमो॑ अर्भ॒केभ्यो॒ नमो॒ युव॑भ्यो॒ नम॑ आशि॒नेभ्यः॑ ।
यजा॑म दे॒वान्यदि॑ श॒क्नवा॑म॒ मा ज्याय॑सः॒ शंस॒मा वृ॑क्षि देवाः
अनुवाद
महदभ्यः - गुणों में महान के लिए ।
नमः - नमस्कार है।
अर्भकेभ्यः - अल्प गुणोंवाले बालक के समान।
युवभ्यः - युवा के लिए।
आशिनेभ्यः - वृद्धों के लिए ।
यदि - यदि।
शक्नबाम् - समर्थ होना।
देवान् - देवों का।
यजाम् - यजन करना।
देवाः - हे देवों।
ज्यायस्यः - श्रेष्ठ की।
आ शसम् - प्रशंसा करना।
मा वृक्षि - गलत न हो।
भावार्थ:इस मंत्र में पुनः शुनःशेप मुनि का संदर्भ है कि कैसे उन्होंने देवों को प्रसन्न किया। यहां देह की चारों अवस्थाएं- बालक,तरूण,प्रौढ और वृद्ध ये सभी परमात्मा के ही रूप हैं, यह कहकर उनका नमन करते हुए आगे कहा गया है कि जब तक हमारी शक्ति रहेगी तब तक हम देवों को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते रहेंगे। ईश्वर की स्तुति में हम से कोई गलती न हो यह प्रार्थना है।
गूढार्थ: यहां श्रुति भगवती भगवान को लक्ष्य करके कह रहीं हैं चाहे शरीर की चारों अवस्थाएं हो या काल( वर्तमानादि) हमको इनमें परमात्मा ही देखना है। यह भी ध्यान रखना है कि, प्रार्थना मे कोई त्रुटिहीन हो। यहां प्रणाम का मतलब है अपने मिथ्या अहंकार का त्याग करना है। हम भक्ति तभी तक कर पाएंगे जब तक शरीर है इसलिए भक्ति नित्य करनी चाहिए।
留言