Here Parmatma is requested to provide excellent view for the eyes to see, Excellent words for the ears to listen, Excellent thoughts for the mind to ponder and for the intelligence to dwell in devotion or bhakti. This is ultimate happiness and satisfaction. Various Deities performing different tasks are nothing but a part of parmatma itself. Through Deities and the added strength of Parmatma when this reaches to Yajman the strength has increased manifold making things more pleasurable. When we make offerings to Deities actually we are sending this to parmatma himself who is Happiness incarnate. This is the real happiness @ Rig Ved 1.27.2
स घा॑ नः सू॒नुः शव॑सा पृ॒थुप्र॑गामा सु॒शेवः॑ ।
मी॒ढ्वाँ अ॒स्माकं॑ बभूयात् ॥
Translation:-
सः - They.
घ - This only.
नः - For us.
सू॒नुः - Son.
शव॑सा - Forcefully.
पृ॒थुप्र॑गामा - Moving around.
सु॒शेवः॑ - Gives satisfaction.
मी॒ढ्वान् - Pleasure.
अ॒स्माकम् - For us.
बभूयात् - To be.
Explanation:-This mantra says that Agnidev ,through his strength completes various tasks and moves around.The Yajmans request him to provide pleasure and satisfaction to them.
Deep meaning: Here Parmatma is requested to provide excellent view for the eyes to see, Excellent words for the ears to listen, Excellent thoughts for the mind to ponder and for the intelligence to dwell in devotion or bhakti. This is ultimate happiness and satisfaction. Various Deities performing different tasks are nothing but a part of parmatma itself. Through Deities and the added strength of Parmatma when this reaches to Yajman the strength has increased manifold making things more pleasurable. When we make offerings to Deities actually we are sending this to parmatma himself who is Happiness incarnate. This is the real happiness.
#मराठी
ऋग्वेद १.२७.२
स घा॑ नः सू॒नुः शव॑सा पृ॒थुप्र॑गामा सु॒शेवः॑ ।
मी॒ढ्वाँ अ॒स्माकं॑ बभूयात् ॥
भाषांतर :-
सः - ते.
घ - हाच.
नः - आमच्या साठी.
सू॒नुः - पुत्र.
शव॑सा - बळाने.
पृ॒थुप्र॑गामा - गमनशील.
सु॒शेवः॑ - सुख देणारे.
मी॒ढ्वान् - कामवर्षक.
अ॒स्माकम् - आमच्या साठी.
बभूयात् - होेणे.
भावार्थ :-ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की जे अग्नि स्वबळाने कोणते ही कार्य करण्यास समर्थ असतात व ते सगळीकडे जाउ शकतात. यजमान त्यांना अशी विनंती करतात की यजमानांना सुख आणि समाधान द्यावे.
गूढार्थ: इथे परमात्माना प्रार्थना आहे की त्यांने नेत्रांना उत्तम दर्शन, कानासाठी उत्तम श्रवण, मनासाठी उत्तम मनन आणि बुद्धीच्या विकासासाठी आत्माची भक्ति देण्याची कृपा करावी.हा उत्तम आनंद आहे.अग्निदेवांना किंवा इतर देवांना दिलेली आहुति वास्तवात परमात्मा कडे जाते जे आनंद स्वरूप आहेत.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२७.२
स घा॑ नः सू॒नुः शव॑सा पृ॒थुप्र॑गामा सु॒शेवः॑ ।
मी॒ढ्वाँ अ॒स्माकं॑ बभूयात् ॥
अनुवाद :-
सः - वह।
घ - ही।
नः - हमारे लिए।
सू॒नुः - पुत्र।
शव॑सा - बल से।
पृ॒थुप्र॑गामा - सर्वत्र गमनशील।
सु॒शेवः॑ - सुख देनेवाले।
मी॒ढ्वान् - कामवर्षक।
अ॒स्माकम् - हमारे लिए।
बभूयात् - होना।
भावार्थ :-इस मंत्र में कहा गया है कि जो अग्नि बल के द्वारा संपन्न होनेवाले विविध कार्यों को करने के लिए प्रकट होनेवाले और सभी स्थानों में गमनशील हैं,ऐसे अग्निदेव हम यजमानो के लिए कामवर्षक और आनंद प्रदान करनेवाले हों।
गूढार्थ: यहां पर परमात्मा से प्रार्थना है कि नेत्रों को उत्तम दर्शन, कानो को उत्तम श्रवण और शब्द,मन को उत्तम मनन और बुद्धि के विकास के लिए आत्मा से भक्ति चाहिए। अग्निदेव की शक्ति जब यजमानो को प्राप्त होगी तब शक्ति में वृद्धि होगी।तब सब कुछ उत्तम होगा।यही तो आनंद है।अग्निदेव या अन्य देव के लिए आहुति वास्तव में पहुंचती है परमात्मा को ही जो कि परम आनंद स्वरूप हैं।
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