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Writer's pictureAnshul P

RV 1.27.3

Updated: Jul 22, 2020


परोक्ष(Indirectly) means not from front. So here praises through hymns are for Agnidev. Here Agnidev is scientifically described as the Deity providing longevity. It means here Agnidev and our life are inter related. We can give the example of Oxygen. For the fire to ignite we need oxygen. So we are alive as our body remains heated due to presence of Agni. We would not be able to ignite nor we woubld be alive in absence of Oxygen.Being alive, we can do whatever we desire @ Rig Ved 1.27.3


स नो॑ दू॒राच्चा॒साच्च॒ नि मर्त्या॑दघा॒योः ।

पा॒हि सद॒मिद्वि॒श्वायुः॑ ॥


Translation:-


सः - They.


नः - We.


दू॒राच्च - Faraway.


आसाच्च॒ - Near.


मर्त्या॑त् - Mortal humans.


अघा॒योः - One who thinks ill of others.


नि पा॒हि - Protect us.


सद॒म् इत् - Every time.


विश्वायुः॑ - Throughout life.


Explanation:-Here Agnidev is addressed indirectly and requested that since he provides longevity to all, So he should also provide longevity to all living beings on this earth.Such Agnidev is requested to protect us from evil people who think ill of us.


Deep meaning: परोक्ष(Indirectly) means not from front. So here praises through hymns are for Agnidev. Here Agnidev is scientifically described as the Deity providing longevity. It means here Agnidev and our life are inter related. We can give the example of Oxygen. For the fire to ignite we need oxygen. So we are alive as our body remains heated due to presence of Agni. We would not be able to ignite nor we woubld be alive in absence of Oxygen.Being alive, we can do whatever we desire.



#मराठी


ऋग्वेद १.२७.३


स नो॑ दू॒राच्चा॒साच्च॒ नि मर्त्या॑दघा॒योः ।

पा॒हि सद॒मिद्वि॒श्वायुः॑ ॥


भाषांतर :-


सः - ते.


नः - आम्ही.


दू॒राच्च - लांब


आसाच्च॒ - निकट.


मर्त्या॑त् - मरणधर्मा मनुष्य.


अघा॒योः - दुसर्यांचा अनिष्ट करणारे.


नि पा॒हि - सुरक्षा देणे.


सद॒म् इत् - प्रत्येक वेळी.


विश्वायुः॑ - समस्त आयु.


भावार्थ :-इथे परोक्ष रूपाने अग्निदेवांना प्रार्थना केली आहे की त्याने समस्त संसाराला दीर्घायुष्य प्रदान करावेत अर्थात सर्व चराचर विश्वाला दीर्घायुष्य प्रदान करवावे.असे अग्निदेवांना निवेदन आहे की त्यांने दूर किंवा निकट असतील, पण आम्हास कपटी लोकांपासून सुरक्षा प्रदान करावी जे आमचा अनिष्टाचा विचार करत आहेत.


गूढार्थ: परोक्ष अर्थात समोर नसून. ह्या रूपात अग्निची स्तुति केली आहे.इथे अग्निदेवांना वैज्ञानिक दृष्ट्याने आयु प्रदान करणारे म्हटले आहे.शरीरात जेंव्हा पर्यंत ताप किंवा ऊष्णता आहे तोच आमचे जीवित राहाण्याचे कारण आहे.कारण अग्नि आमचे प्राण आहे.प्रामाणित करण्यात आलेला आहे की अग्नि ऑक्सिजनच्या अभावात पेटणार नाही.त्याच प्रमाणे अग्निच्या अभावात आमचे पण जीवित राहणे अशक्य आहे.जीवन आहे तर सर्व काही संभव आहे.


#हिंदी


ऋग्वेद १.२७.३


स नो॑ दू॒राच्चा॒साच्च॒ नि मर्त्या॑दघा॒योः ।

पा॒हि सद॒मिद्वि॒श्वायुः॑ ॥


अनुवाद :-


सः - वह।


नः - हम।


दू॒राच्च - दूर से।


आसाच्च॒ - पास से।


मर्त्यात् - मरणशील मनुष्यों से।


अघा॒योः - दूसरों का अनिष्ट सोचनेवाला।


नि पा॒हि - सुरक्षा दें।


सद॒म् इत् - हमेशा ही।


विश्वायुः॑ - समस्त आयु।


भावार्थ :-यहां परोक्ष रूप से अग्नि से प्रार्थना की गई है कि वे समस्त संसार को आयु प्रदान करनेवाले हैं अर्थात सब चराचर जगत को आयु प्रदान करते हैं।ऐसे अग्निदेव से निवेदन है कि दूर या निकट,कहीं से भी वे हमें उन कपटी लोगों से दूर रखें जो हमारा अनिष्ट चाहते हैं।


गूढार्थ: परोक्ष मतलब सामने से नहीं। तो यहां इसी रूप में अग्नि की स्तुति है। अग्निदेव को अायु प्रदान करनेवाले देवता वैज्ञानिक दृष्टि से कहा गया है। शरीर में जब तक ताप या ऊष्णता है तब तक ही हम जीवित हैं,क्योंकि अग्नि हमारे प्राण हैं। प्रामाणित करने के लिए हम कह सकते हैं कि ऑक्सिजन के अभाव में कुछ भी जलाना असंभव है,उसी प्रकार अग्नि के अभाव मे हमारा जीवित रहना असंभव है। जीवन है तो सब संभव है।





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