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Here the Parmatma is being Praised through hymns directly. Actually various Deities represent different parts of our body. For example Indra is the devta of hand, Ashwini kumar is the devta of ears and Suryadev is the devta of eyes. They all are a part of Parmatma. So by invoking them we are actually requesting Parmatma to make our body strong.
Rigved 1.27.4
इ॒ममू॒ षु त्वम॒स्माकं॑ स॒निं गा॑य॒त्रं नव्यां॑सं ।
अग्ने॑ दे॒वेषु॒ प्र वो॑चः ॥
Translation
अग्ने - Oh Agnidev!
त्वम् - You.
इमम् - This.
उ षु - In front.
सऩिम् - Making offerings.
अस्माकम् - Ours.
गायत्रम् - Gayatri.
देवेषु - In front of Deities.
प्रण वोचः - Tell.
Explanation: This mantra is directly addressed to Agnidev wherein he is requested that he should mention this to Parmatma that the Sacred Yagya is being performed in his presence and also about the Yajmans offering foodgrains for Yagya. They also request him to mention before Parmatma about Devotees singing hymns in his Praise.
Deep meaning: Here the Parmatma is being Praised through hymns directly.Actually various Deities represent different parts of our body.For example Indra is the devta of hand, Ashwini kumar is the devta of ears and Suryadev is the devta of eyes.They all are a part of Parmatma. So by invoking them we are actually requesting Parmatma to make our body strong.
मराठी
ऋग्वेद १.२७.४
इ॒ममू॒ षु त्वम॒स्माकं॑ स॒निं गा॑य॒त्रं नव्यां॑सं ।
अग्ने॑ दे॒वेषु॒ प्र वो॑चः ॥
भाषांतर
अग्ने - हे अग्ने!
त्वम् - आपण.
इमम् - ह्या.
उ षु - समोर.
सऩिम् - हविर्दान.
अस्माकम् - आमचे.
गायत्रम् - गायत्री चे.
देवेषु - देवांचे सन्मुख.
प्रण वोचः - सांगा.
भावार्थ :ह्या मंत्रात अपरोक्ष रूपाने अग्निला संबोधून निवेदन केलेले आहेत कि त्यांने समोर होणारे यज्ञानुष्ठान मध्ये यजमानां द्वारे होणारे अन्नदान आणि स्तुतींचा वर्णन देवतांचे सन्मुख पण पाठवावा.
गूढार्थ: इथे अपरोक्ष रूपाने अर्थात समोरून परमात्मा ची स्तुती केली जात आहे.समस्त देवता आमचे शरीराचे विशिष्ट भागांचे स्वामी असतात आणि रक्षक असतात. इंद्र हाथांचे देव आहेत,अश्विनीकुमार कानांचे देव आहेत तर सूर्यदेव डोळ्यांचे रक्षक असतात. हे सगळे परमात्माचेच अंग आहेत.सम्मिलित रूपाने सगळे मिळून आमचे शरीराला स्वस्थ आणि शक्तीवान बनवून देणार.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.२७.४
इ॒ममू॒ षु त्वम॒स्माकं॑ स॒निं गा॑य॒त्रं नव्यां॑सं ।
अग्ने॑ दे॒वेषु॒ प्र वो॑चः ॥
अनुवाद:
अग्ने - हे अग्ने!
त्वम् - आप।
इमम् - इस।
उ षु - सामने।
अस्माकम् - हमारे।
सऩिम् - हविर्दान।
नव्यासम् - नवीन।
गायत्रम् - गायत्री को।
देवेषु - देवों के सम्मुख।
प्रण वोचः - कहिए।
भावार्थ :इस मंत्र में अपरोक्ष रूप से अग्नि को संबोधित करते हुए उनसे निवेदन किया गया है कि वे सामने हो रहे यज्ञ अनुष्ठान में यजमानो के द्वारा किये जा रहे अन्नदान तथा स्तुतियों का वर्णन देवों के सम्मुख करें।
गूढार्थ:यहां अब अपरोक्ष रूप से अर्थात सामने से ही परमात्मा की स्तुति की जा रही है।समस्त देवता हमारे शरीर के किसी विशेष अंग के रक्षक माने जाते हैं। जैसे इंद्र का संबंध हाथ से है,अश्विनी कुमार कामेंग के देव हैं, आँखों के सूर्य हैं।ये सब परमात्मा का ही अंग हैं,। इन सब से सम्मिलित रूप में हमारे समस्त शरीर को मजबूत बनाने की स्तुति की गई है।
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