VIMAAN AND SATELLITES ARE THE FRUITS OF OUR ANCIENT WISDOM
Rigved 1.27.5
Here Dhyulok denotes light or Prakash which is the symbol of Knowledge and Space or Antariksha stands for Universal truth or everything Comprehensive. We can explain this in physical(Worldly) and Spiritual form. From ancient times we knew the art of making aeroplanes and Satellites being fixed in their centers. This knowledge was actually our Wealth,that is Wealth of Prakashlok. Yajmans request Agnidev to grant them this Knowledge.
The spiritual denotation is that Agnidev is the Putohit of the Deities. Like Brahaspati he also is referred as their Guru of Devtas. So such a great Guru is requested to let Yajmans too become Knowledge incarnate and Happiness incarnate @ RV 1.27.5
आ नो॑ भज पर॒मेष्वा वाजे॑षु मध्य॒मेषु॑ ।
शिक्षा॒ वस्वो॒ अंत॑मस्य ॥
Translation
परमेषु - Found in Dhyulok.
वाजेषु - Of foodgrains.
नः - Us.
आ भज - Let it come from all four directions.
मध्यमेषु - From Space.
नः आ अज - Provide us.
अन्तमस्य - From earth.
वस्वः - Wealth.
शिक्ष - Provide to us.
Explanation :In this mantra Yajmans are requesting Agnidev to provide them the wealth from Dhyulok, Space and from Earth itself.
Deep meaning: Here Dhyulok denotes light or Prakash which is the symbol of Knowledge and Space or Antariksha stands for Universal truth or everything Comprehensive. We can explain this in physical(Worldly) and Spiritual form. From ancient times we knew the art of making aeroplanes and Satellites being fixed in their centers. This knowledge was actually our Wealth,that is Wealth of Prakashlok. Yajmans request Agnidev to grant them this Knowledge.
The spiritual denotation is that Agnidev is the Putohit of the Deities. Like Brahaspati he also is referred as their Guru of Devtas. So such a great Guru is requested to let Yajmans too become Knowledge incarnate and Happiness incarnate.
#मराठी
ऋग्वेद १.२७.५
आ नो॑ भज पर॒मेष्वा वाजे॑षु मध्य॒मेषु॑ ।
शिक्षा॒ वस्वो॒ अंत॑मस्य ॥
भाषांतर:
परमेषु - द्युलोक वर उत्कृष्ट.
वाजेषु - धन धान्याचे.
नः - आम्ही.
आ भज - चारही दिशेने येत राहणे.
मध्यमेषु - मध्यम अर्थाने अंतरिक्षलोकात.
नः आ अज - आमच्या कडे पाठवावे.
अन्तमस्य - अंतिम अर्थात भूलोक मध्ये.
वस्वः - धन.
शिक्ष - प्रदान करणे.
भावार्थ:ह्या मंत्रात अग्निदेवांना निवेदन आहे की त्यांने ह्या यज्ञानुष्ठानात यजमानांसाठी द्युलोक मधिल वस्तू, अंतरिक्ष लोकात किंवा भूलोकात मिळणारे विविध प्रकाराचे धन प्रदान करण्याची कृपा करावी.
गूढार्थ: इथे द्युलोक अर्थात प्रकाश आहे जे ज्ञानाचा प्रतीक आहे आणि अंतरिक्ष चे अर्थ आहे सर्वव्यापकता.ह्याचे दोन अर्थ निघतात, एक भौतिक, दूसरे आध्यात्मिक. भौतिक रूपात अर्थ आहे की आम्ही सगऴी प्राचीन विद्यांना प्राप्त करू. प्राचीनकाळापासून आम्ही विमान आणि उपग्रह बनवणियाची कलेत पारंगत आहोत.तो ज्ञान आमचे धन आहे म्हणजे तो प्रकाशलोकाचा धन आहे.यजमानांना त्या ज्ञानाची विद्या हवि.
ह्याचे आध्यात्मिक अर्थ आहे की अग्निदेव देवतांचे पुरोहित आहेत.म्हणून ते ब्रहस्पति सारखे त्यांचे गुरू म्हणून आेळखले जातात.असे परम आचार्याना यजमान प्रार्थना करतात की त्यांना पण देवतांसारखे ज्ञानस्वरूप आणि आनंदस्वरूप बनवून द्या.
#हिंदी
Rigved 1.27.5
आ नो॑ भज पर॒मेष्वा वाजे॑षु मध्य॒मेषु॑ ।
शिक्षा॒ वस्वो॒ अंत॑मस्य ॥
Translation:-
परमेषु - द्युलोक पर उत्कृष्ट
वाजेषु - अन्नों के।
नः - हमें।
आ भज - चारों ओर से पहुंचना।
मध्यमेषु - मध्यम अर्थात अंतरिक्ष लोक से।
नः आ अज - हमें पहुंचाइए।
अन्तमस्य - अंतिम अर्थात भूलोक से।
वस्वः - धन।
शिक्ष - प्रदान करना।
भावार्थ: इस मंत्र में अग्निदेव से निवेदन किया गया है वे इस यज्ञानुष्ठान में यजमानो को द्युलोक मे पाया जानेवाला, अंतरिक्ष लोक में अवस्थित तथा भूलोक में पाया जानेवाला अनेक प्रकार का धन प्रदान करें।
गूढार्थ:यहां द्युलोक अर्थात प्रकाश है जो कि ज्ञान का प्रतीक है और अंतरिक्ष का अर्थ है सर्वव्यापकता ।इसके दो अर्थ हैं भौतिक और आध्यात्मिक।भौतिक रूप में हम सभी विद्याओं को ले सकते हैं। आदिकाल से विमानों का उडना,उपग्रहों का कक्ष में स्थापित होना, ये सभी ज्ञान हमारे प्राचीन धन हैं,प्रकाश लोक के धन।यजमान उन विद्याओं के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
इसका आध्यात्मिक अर्थ हुआ कि अग्निदेव देवताओं के पुरोहित हैं,इसलिए वे ब्रहस्पति की तरह गुरू भी कहलाते हैं। तो ऐसे परम आचार्य से प्रार्थना की गई है कि यजमानो को भी देवताओं की तरह ज्ञानस्वरूप और आनंदस्वरूप बनाएं।
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