Rig Ved 1.27.6
Agnidev is the ocean of Wealth. He showers Wealth wherever it is needed. Similar to the flowing rivers ,in the course of its flow, Whenever it comes across dry well or a pond, It fills them with its water. But this is not about the physical aspect of wealth but about Gyan or Ultimate Knowledge. Both increase on distribution. Here Yajmans are actually desiring that wealth i.e Knowledge @ RV 1.27.7
विभक्तासि चित्रभानो सिन्धोरूर्मा उपाक आ।
सद्यो दाशुषे क्षरसि।
Translation :
चित्रभानों - Oh the one with strange rays!
विभक्ता - The provider of special Wealth.
असि - For this reason.
आ - This way.
सिन्धोः - River.
उपाके - Near.
ऊर्मों - Flowing waves.
दाशुषे - To give.
सद्यः - Now.
क्षरसि - Shower.
भावार्थ: Here Agni is described the one with strange rays.He is going to provide special wealth to the Yajmans. It can be explained by the example of flowing river.In the course of its flow whenever a river comes across a dry well or Pond it fills them with it's Water along with other sources of water..Similarly Agnidev fulfills the wishes of the Yajmans making offerings towards Agnidev.
Deep meaning:- Agnidev is the ocean of Wealth. He showers Wealth wherever it is needed. Similar to the flowing rivers ,in the course of its flow, Whenever it comes across dry well or a pond, It fills them with its water. But this is not about the physical aspect of wealth but about Gyan or Ultimate Knowledge. Both increase on distribution. Here Yajmans are actually desiring that wealth i.e Knowledge .
# मराठी
ऋग्वेद १.२७.६
विभक्तासि चित्रभानो सिन्धोरूर्मा उपाक आ।
सद्यो दाशुषे क्षरसि।
भाषांतर :
चित्रभानों - हे विचित्र रश्मिधारक!
विभक्ता - विशिष्ट धनाची प्राप्ति मिळवून देणे.
असि - म्हणून.
आ - ज्या प्रकारे.
सिन्धोः - नदी.
उपाके - जवळ.
ऊर्मों - लाट्यांचे बहाव.
दाशुषे - प्रदान करणे.
सद्यः - तत्काल.
क्षरसि - वृष्टि करणे.
भावार्थ: ह्या मंत्रात अग्निंना विचित्र किरणांनी युक्त असे वर्णन करून त्यांना म्हटले आहे की त्यांनी यजमानांना विशिष्ट प्रकाराचे धन उपलब्ध करून द्यावे. उदाहरण देउन म्हटले आहे की ज्या प्रकारे नदी आपल्या पाण्याचा लाटानी विहीर, सरोवरे इत्यादि भरत पुढे वाहते त्याच प्रकारे अग्निदेव पण हवि टाकण्यारे यजमानांची इच्छांना त्वरित पूर्ण करून निघून जातात.
गूढार्थ: अग्निदेव धनाचे सागर आहेत.जिथे पण धनाची गरज भासते तिथे ते भरभरून धन देतात.जशी नदी वाहत असल्यास तिला जिथे पण जल स्त्रोत रिकामे दिसते त्याला ती आपल्या प्रवाहाने भरून देते.पण इथे भौतिक धनाचे वर्णन नसून ज्ञानाची बातमी आहे.ज्ञान वितरित केल्यावर अधिक वाढत असतो.यजमान इथे तिच संपदा ची कामना करित आहेत.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.२७.६
विभक्तासि चित्रभानो सिन्धोरूर्मा उपाक आ।
सद्यो दाशुषे क्षरसि।
अनुवाद:
चित्रभानों - हे विचित्र रश्मियों वाले!
विभक्ता - विशिष्ट धन को प्राप्त करानेवाले ।
असि - अतएव।
आ - जिस प्रकार।
सिन्धोः - नदियाँ।
उपाके - नजदीक।
ऊर्मों - लहरों का बहाव।
दाशुषे - प्रदान करना।
सद्यः - तत्काल।
क्षरसि - वृष्टि करना।
भावार्थ: इस मंत्र में अग्नि को विचित्र रश्मियों वाला कहा गया है कि अग्निदेव यजमानो को विशिष्ट प्रकार के धन उपलब्ध करानेवाले हैं।उदाहरण देकर समझाया गया है कि जिस प्रकार नदियाँ जल की धारा को लहरों के रूप में कुएँ आदि को भरते हुए चलती हैं और आस पास के जल स्त्रोतों को भरते हुए चलती हैं उसी प्रकार अग्नि भी हवि चढानेवाले यजमानो की इच्छाओं को तत्काल उसके फल के अनुसार पूरा करते हुए चलती हैं।
गूढार्थ: अग्निदेव धन के सागर हैं,जहां भी धन की आवश्यकता होती है वे वहां धन भर देते हैँ। जैसे नदी का जल प्रवाहित होते हुए जहां जल की आवश्कता होती है उस जल स्त्राेत के जल को भर देता है। वास्तव मे यहां भौतिक धन की नहीं बल्कि ज्ञान की बात हो रही है। दोनों ही बाँटने पर बढते हैं। यहां यजमान उसी संपदा की कामना करते हैं।
留言