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  • Writer's pictureAnshul P

RV 1.27.9

Agnidev is the link who carries our Yagya offerings(हवि) to Parmatma


Here when we enumerate the qualities of Compassion of Agnidev we know that he is the provider of Fearlessness, Provider of Foodgrains and the fulfiller of our Wishes. Whatever offerings are made by us to Agnidev, He actually gives it to Parmatma. In fact Agnidev is the Priest of all Deities. When Raja Dashrath had organized his ritual, His Prasad was in four parts - Jagrut(World), Swapna(fame), Sushupti(Wide or Ishwar) and Turiya(Brahmapad). Here Shruti Bhagwati says that when we pray to the Deity, He also fulfills our wishes devotedly @ Rigved 1.27.9


स वाजं॑ वि॒श्वच॑र्षणि॒रर्व॑द्भिरस्तु॒ तरु॑ता ।

विप्रे॑भिरस्तु॒ सनि॑ता


Translation


विश्वचर्षणिः - One who does good to all.


सः - That.


अर्वदिभः - with horses.


वाजम् - In war


तरूता - One who helps us cross.


अस्तु - To be.


विप्रेभिः - With Priests.


सविता - One who rewards.


Explanation:This mantra is addressed to Agnidev. It says that Agnidev always gives benefits to everyone. Here he is requested to help the Yajmans along with their horses to cross this tide of War and he along with the Knowledgeable Priests must come for this Yagya and give the expected reward.


Deep meaning: Here when we enumerate the qualities of Compassion of Agnidev we know that he is the provider of Fearlessness, Provider of Foodgrains and the fulfiller of our Wishes. Whatever offerings are made by us to Agnidev, He actually gives it to Parmatma. In fact Agnidev is the Priest of all Deities. When Raja Dashrath had organized his ritual, His Prasad was in four parts - Jagrut(World), Swapna(fame), Sushupti(Wide or Ishwar) and Turiya(Brahmapad). Here Shruti Bhagwati says that when we pray to the Deity, He also fulfills our wishes devotedly.



#मराठी


ऋग्वेद १.२७.९


स वाजं॑ वि॒श्वच॑र्षणि॒रर्व॑द्भिरस्तु॒ तरु॑ता ।

विप्रे॑भिरस्तु॒ सनि॑ता



भाषांतर:


विश्वचर्षणिः - सर्वांचा भला करणारा .


सः - ते.


अर्वदिभः - अश्वां बरोबर.


वाजम् - युद्धात.


तरूता - पार करणारा.


अस्तु - होणे.


विप्रेभिः - ऋत्विकां बरोबर.


सनित: - फळ देणारा.


भावार्थ:हा मंत्र अग्निदेवांना संबोधित केले आहे.

ह्यात म्हटले आहे की सर्वांचे हित करणारे अग्निदेव यज्ञकर्म करणारे यजमानांना अश्वां बरोबर युद्धात पार करवून देणारे आणि ज्ञानीलोक अशा ऋत्विकां बरोबर प्रसन्न होऊन ह्या यज्ञाचे कर्मफळ देणारे असो.


गूढार्थ: इथे अग्निदेवांची करूणाच्या गुणांचे लक्षणांवर अवलोकन केल्यावर दिसून येतो की ते अभय प्रदान करणारे, धनधान्याची पूर्तता करणारे आणि कामना पूर्ण करणारे आहेत.राजा दशरथने आपल्या अनुष्ठानात ज्या प्रसादाला अग्निदेवांचो माध्यमे प्राप्त केले होते त्याचे चार विभाग होते- जाग्रत(विश्व),स्वप्न (यश),सुषुप्ति (विराट,ईश्वर) आणि तूरीय(ब्रह्मपद)।अग्निदेवांना तर देवतांचे पुरोहित म्हटले आहे.इथे श्रुति भगवती म्हणतात की आपण ज्या देवतांचे आवाहन करतो तर ते त्याला समर्पित भावाने पूर्ण करतात.


# हिन्दी


Rigved 1.27.9


स वाजं॑ वि॒श्वच॑र्षणि॒रर्व॑द्भिरस्तु॒ तरु॑ता ।

विप्रे॑भिरस्तु॒ सनि॑ता


अनुवाद;


विश्वचर्षणिः - सभी का भला करनेवाले।


सः - वह।


अर्वदिभः - घोडों के साथ।


वाजम् - युद्ध में।


तरूता - पार करनेवाले।


अस्तु - होना।


विप्रेभिः - ऋत्विजों के साथ।


सनिता - फल को देनेवाले।


भावार्थ: यहां कहा गया है कि सभी का भला करनेवाले अग्निदेव यज्ञ करनेवाले यजमानो को घोडों के साथ युद्ध को पार करनेवाले और ज्ञानी ऋत्विजों के साथ प्रसन्न होकर यज्ञ के कर्म फल को देनेवाले हों।


गूढार्थ: यहां अग्निदेव के करूणा के गुणों के लक्षणेँ पर अवलोकन करने पर कहा जा सकता है कि वे अभय प्रदान करनेवाले, धनधान्य की पूर्ति करनेवाले और कामनाओं को पूरा करनेवाले हैं।हमारी समर्पित चीजें वे परमात्मा को प्रदान करते हैँ। राजा दशरथ ने अपने अनुष्ठान में जो प्रसाद अग्निदेव से पाया था वह वास्तव में परमात्मा ने ही उन्हें प्रदान किया था,जिसके चार भाग थे जाग्रत (विश्व) ,स्वप्न (यश),सुषुप्ति (विराट, ईश्वर) और तूरीय (ब्रह्मपद)।अग्निदेव को तो देवताओं का पुरोहित कहा गया हैं। यहां श्रुति भगवती कहती हैं कि हम जिस देवता की उपासना करते हैं या उनका आवाहन करते हैं तो तो वे भी समर्पित भाव से उसे पूरा करते हैं।


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