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Writer's pictureAnshul P

RV 1.28.2

Updated: Aug 3, 2020


DIVINE MEDICINES WERE USED FOR RECUPERATING(CURING)AND ALSO FOR NOURISHMENT & HAPPINESS.


Rigved 1.28.2


Indra is the ruler of Deities. It's general meaning is that because Indra is the Deity of hands which symbolizes Karma or deed.The spiritual meaning of this is, here Indra is the Parmatma.Thighs are mentioned as they symbolize strong foundation.If the foundation is weak then it is difficult to get anything done.Also Somras could mean medicine which have recuperating effects to provide strength .Shruti Bhagwati has put forth a scientific meaning. Here central point is man who has used the divine Somras as per his needs to provide taste, nourishment, welfare and happiness @ RV 1.28.2


स घा॑ नः सू॒नुः शव॑सा पृ॒थुप्र॑गामा सु॒शेवः॑ ।

मी॒ढ्वाँ अ॒स्माकं॑ बभूयात् ॥


Translation


इन्द्र - Oh Indra!


यत्र - There.


अधिषवण्या - Two slabs for extraction of Somras.


द्वौ जघना इन - Like two thighs.


कृता - Spread widely.


उलखलसुतानाम् - Extracted through grinding stones.


अव अत उ - Near.


जल्गुलः - To drink.


भावार्थ:Here too Indradev is addressed. He is requested to go near the place where the Somras which was extracted through grinding stones and is kept there for him to drink.The grinding stones appear like two wide thighs.


Deep meaning: Indra is the ruler of Deities. It's general meaning is that because Indra is the Deity of hands which symbolizes Karma or deed.The spiritual meaning of this is, here Indra is the Parmatma.Thighs are mentioned as they symbolize strong foundation.If the foundation is weak then it is difficult to get anything done.Also Somras could mean medicine which have recuperating effects to provide strength .Shruti Bhagwati has put forth a scientific meaning. Here central point is man who has used the divine Somras as per his needs to provide taste, nourishment, welfare and happiness.



#मराठी


ऋग्वेद १.२८.२


स घा॑ नः सू॒नुः शव॑सा पृ॒थुप्र॑गामा सु॒शेवः॑ ।

मी॒ढ्वाँ अ॒स्माकं॑ बभूयात् ॥


भाषांतर


इन्द्र - हे इन्द्र!


यत्र - जिथे.


अधिषवण्या - सोम वाटण्याचे पाट.


द्वौ जघना इन - .दोन माडी प्रमाणे.


कृता - विस्तृत होउन ठेवले.


उलखलसुतानाम् - उखळात पिळून ठेवलेले.


अव अत उ - समोरून.


जल्गुलः - प्राशन करणे.


भावार्थ:इथे इन्द्रदेवांना संबोधित करून विनंती केली आहे की ज्या स्थानावर सोमरस पिळला जातो तो दोन घट्ट मांड्याप्रमाणे असणाऱ्या दोन जात्याच्या दगडातून सोमरस पिळला जात आहे त्या जागेजवळ त्यांनी जावे.


गूढार्थ:देवतांचे राजा इन्द्र आहेत.ह्या मंत्राचे भौतिक अर्थ आहे की ते हातांचे देवता आहेत म्हणजे ते कर्माचे प्रतीक आहेत.ह्याचे आध्यात्मिक अर्थ आहे की इन्द्र म्हणजे परमात्माच. इथे मांडी म्हणजे आधार.आधार मजबूत नसणारी लोक काही पण कार्य करू शकणार नाही.सोमरसाचा अर्थ मात्र औषधी नाही ज्याने रोग प्रतिरोधक शक्ती वाढत असते.श्रुति भगवती इथे वैज्ञानिक पक्ष दाखवतात. मनुष्याला केंद्र करून म्हटले आहे की त्यांने आपल्या आवश्यकतेनुसार सोमरसाचे प्रयोग, स्वाद,पौष्टिकता,सुख आणि कल्याणा साठी उपयोग करतो.




#हिन्दी


Rigved 1.28.2


स घा॑ नः सू॒नुः शव॑सा पृ॒थुप्र॑गामा सु॒शेवः॑ ।

मी॒ढ्वाँ अ॒स्माकं॑ बभूयात् ॥


Translation


इन्द्र - हे इन्द्र!


यत्र - जहाँ।


अधिषवण्या - सोम कूटने के दो फलक।


द्वौ जघना इन - दोनों जाँघों की तरह।


कृता - विस्तृत रखे होते हैं।


उलखलसुतानाम् - ओखल से निचोडे गए।


अव अत उ - पास जाकर।


जल्गुलः - पान करना।


भावार्थ:यहाँ भी इन्द्रदेव को संबोधित कर कहा गया है कि जिस स्थान पर सोमरस को निचोडने के लिए दोनो जंघाओं की तरह रखे उन्नत दो पत्थरों के निकट इन्द्रदेव सोमपान करने हेतु वहाँ जाते हैं।


गूढार्थ:देवताओ के राजा इन्द्र हैं। इस मंत्र का भौतिक अर्थ है कि चूंकि वे हाथों के देव हैं इसलिए यह कर्म का प्रतीक है।इसका आध्यात्मिक अर्थ हुआ की वे परमात्मा के प्रतीक है।यहां जंघा आधार का प्रतीक हैं।आधार नहीं होगा तो कार्य नहीं होगा।दूसरे सोमरस का अर्थ हो सकता है औषधि जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न करना है।श्रुति भगवती ने यहां वैज्ञानिक पक्ष को उजागर किया हैं जिसमें मनुष्य को केंद्र बिन्दु बनाकर बताया गया है कि उन्होने आवश्यकतानुसार और स्वादनुसार पौष्टिकता, सुख,कल्याण के लिए वे सोमरस जैसी दिव्य चीज का उपयोग करते रहें हैं।


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