Here logical and scientific thinking is explained. Shruti Bhagwati wants to draw our attention on two things. Firstly that there is a process in making things. Second is movement. Things prepared following the due process are always the best. Movement denotes life.
Rigved 1.28.3
यत्र॒ मंथां॑ विब॒ध्नते॑ र॒श्मीन्यमि॑त॒वा इ॑व ।
उ॒लूख॑लसुताना॒मवेद्विं॑द्र जल्गुलः
॥
Translation:
इन्द्र - Oh Indra!
यत्र - There.
मन्थाम् - To churn.
रश्मीन् - Rein.
यमितवा इव - As if to catch.
विब्धनते - To tie.
उलूखलसुतानाम् - Extracted through grinding stone.
अव इत उ - Near.
जल्गुलः - To drink:
Explanation: To extract butter from ghee is an art.In this process first it is churned through a churner by turning it front and backwards.Then the extracted butter is heated in order to make ghee.This ghee can then be used for Yagya etc.Similarly a horse is drawn by pulling its reins around. Somras is also prepared through a process.So come and drink the Somras extracted through the grinding stone.
Deep meaning:Here logical and scientific thinking is explained. Shruti Bhagwati wants to draw our attention on two things.Firstly that there is a process in making things. Second is movement.Things prepared following the due process are always the best. Movement denotes life.
#मराठी
ऋग्वेद १.२८.४
यत्र॒ मंथां॑ विब॒ध्नते॑ र॒श्मीन्यमि॑त॒वा इ॑व ।
उ॒लूख॑लसुताना॒मवेद्विं॑द्र जल्गुलः
॥
भाषांतर :
इन्द्र - हे इन्द्र!
यत्र - जिथे.
मन्थाम् - मंथन दंडाचे.
रश्मीन् - लगाम.
यमितवा इव - पकडण्या सारखा.
विब्धनते - बांधले गेले.
उलूखलसुतानाम् - उखळीत पिळलेले.
अव इत उ - समोरून.
जल्गुलः - प्राशन करणे.
भावार्थ: लोणी काढणे ही मोठी कलाकारी आहे,त्याची विशिष्ट प्रक्रिया असते.गृहिणी रवि घेउन तिला मागे पुढे फिरवतात,त्यातली लोणी काढून नंतर ते कढवून त्याचे तूप बनवितात त्याचे उपयोग यज्ञा मधे होतो.त्याचप्रमाणे अश्वांना गति देण्यासाठी लगाम फिरवावा लागतो. अश्याच प्रक्रियेने सोमरस तयार होतो. म्हणून ऊखलाच्या दोन दगडातून निघालेला सोमरस पिण्यास यावे.
गूढार्थ: इथे तर्कसंगत व वैज्ञानिक पक्ष मांडलेला आहे. श्रुति भगवती दोन तथ्ये सांगत आहेत. पहिला आहे की प्रत्येक वस्तू तयार करण्याचे मागे एक प्रक्रिया असते.दूसरा आहे गति.प्रक्रियेत बनवून घेतली वस्तू शोधपरक असल्या मुळे उत्तम असते.गति जीवंत असण्याचे प्रमाण आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.२८.४
यत्र॒ मंथां॑ विब॒ध्नते॑ र॒श्मीन्यमि॑त॒वा इ॑व ।
उ॒लूख॑लसुताना॒मवेद्विं॑द्र जल्गुलः
॥
अनुवाद :
इन्द्र - हे इन्द्र!
यत्र - जहां।
मन्थाम् - मंथन दंड का।
रश्मीन् - लगाम।
यमितवा इव - पकडने की भांति।
विब्धनते - बांधा जाता है।
उलूखलसुतानाम् - ओखल से निचोडे गए।
अव इत उ - पास जाकर।
जल्गुलः - पान करना।
भावार्थ :यहां तर्कसंगत और वैज्ञानिक पक्ष रखा गया है। मक्खन निकालने की प्रक्रिया में गृहिणी मथानी घूमाकर आगे पीछे करती है तब वह निकालकर उससे घी बनाने के लिए गरम किया जाता है। इसका उपयोग यज्ञादि में किया जाता है। इसी तथ्य को घोडे के संदर्भ में कह सकते हैं। मथानी की तरह घोडे की लगाम को घुमाया जाता है,वहां ओखल से निकाले गए सोमरस का पान करने उसके पास जाएँ ।
गूढार्थ: यहां श्रुति भगवती दो चीजों पर ध्यान देने को कहती हैं। पहली यह है कि प्रत्येक वस्तु को तैयार करने की एक प्रक्रिया होती है। दूसरी है गति।एक प्रक्रिया से गुजरकर बनी हुई वस्तु शोधपरक होने के कारण उत्तम होती है।गति जीवंत होने का प्रमाण है।
Comments