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Writer's pictureAnshul P

RV 1.29.2


CLUTTER FREE MIND IS THE ESSENCE OF RICHNESS.


RIG VED1.29.2


Here Indra is portrayed as a multi faceted Deity. He is most efficient, has a beautiful nose,He is the protector of Foodgrains and is the owner of many types of Wealth RV 1.29.2


Rig Ved 1.29.2


शिप्रि॑न्वाजानां पते॒ शची॑व॒स्तव॑ दं॒सना॑ ।

आ तू न॑ इंद्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ 


Translation:


शचीवः - Oh the Capable One!


शिप्रिन् - Oh the one with beautiful nose!


वाजानं पते - Oh the Protector of Foodgrains!


तुव - Yours.


दंसना - Work especially.


तु - Then too.


तुवीमघ इन्द्र - Oh the rich Indra!


नः - Ours.


सहस्त्रेषु - Thousands.


शुभ्रिषु - Beautiful.


गोषु - Cows.


अश्वेषु - Horses.


आ शंस्य - To increase Fame.


Explanation: Here Indra is portrayed as a multi faceted Deity. He is most efficient, has a beautiful nose,He is the protector of Foodgrains and is the owner of many types of Wealth.


Deep meaning:Nature is the mother of all Rasa's. It is the sense of smell that makes our nose recognize it's essence. Beautiful nose denotes the good smells which satisfies our mind,makes us indifferent,faraway from all evils.Mind becomes pure.We then become rich in all aspects.


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# मराठी


ऋग्वेद १.२९.२


शिप्रि॑न्वाजानां पते॒ शची॑व॒स्तव॑ दं॒सना॑ ।व

आ तू न॑ इंद्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ 


भाषांतर


शचीवः - हे सामर्थ्यवान!


शिप्रिन् - हे सुंदर नासिका धारण करणारे!


वाजानं पते - हे धनधान्य रक्षक!


तुव - आपले.


दंसना - कर्मविशेष.


तु - तरी पण.


तुवीमघ इन्द्र - हे धनवान इन्द्र!


नः - आम्ही.


सहस्त्रेषु - हजारो.


शुभ्रिषु - सुंदर.


गोषु - गाई.


अश्वेषु - अश्व.


आ शंस्य - प्रसिद्ध करणे.


भावार्थ: ह्या मंत्रात इन्द्रांना बहु आयामीच्या रूपात दर्शविले आहे.ते सामर्थ्यवान आहेत,सुंदर नासिकायुक्त आहेत, धनधान्यांचे रक्षक आहेत आणि अनेक प्रकाराच्या धनांचे स्वामी आहेत.


गूढार्थ:सृष्टी सर्व रसांची जननी आहे.नासिका ज्ञानेंद्रिय आहे जिथे घ्राण शक्ती असते.ती गंधांचे ज्ञान करवून देते.सुंदर नाक ह्याचे तात्पर्य आहे सुगंध जे मनाला तुष्ट करते,निर्विकार बनवून देते,छळ कपट रहित करते.मन निर्मळ होउन जातो.आम्ही सर्व रीतीने धनवान होतो.


# हिन्दी


ऋग्वेद १.२९.२


शिप्रि॑न्वाजानां पते॒ शची॑व॒स्तव॑ दं॒सना॑ ।

आ तू न॑ इंद्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ 


भावार्थ


शचीवः - हे सामर्थ्यवान!


शिप्रिन् - हे सुंदर नासिकावाले!


वाजानं पते - हे अन्नों के रक्षक!


तुव - आपका।


दंसना - कर्मविशेष।


तु - तो भी।


तुवीमघ इन्द्र - हे धनवान इन्द्रदेव!


नः - हमें।


सहस्त्रेषु - हजारों।


शुभ्रिषु - सुंदर।


गोषु - गाय।


अश्वेषु - अश्व।


आ शंस्य - प्रशस्त करना।


भावार्थ:इस मंत्र में इंद्र को बहु आयामी के रूप में दर्शाया गया है। वे सामर्थ्यवान हैं,सुंदर नासिका वाले हैं,अन्नों के रक्षक हैं और अनेक प्रकार के धनों के स्वामी हैं।


गूढार्थ;सृष्टि सारे रसों की जननी है।नासिका ज्ञानेन्द्रिय है जिसमे घ्राण शक्ति है। वह गंध का ज्ञान कराती है। सुंदर नाक से तात्पर्य हुआ सुगंध,जो मन की तुष्टि करता है,निर्विकार बनाती है,छल कपट से रहित करती है। मन निर्मल हो जाता है। हम हर तरह से धनवान हो जाते हैं।

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