YAGYA THE INTERNAL AND EXTERNAL CLEANSER
Rig ved 1.31.15
Here Protection means external and internal protection. Internal protection denotes that we destroy our Bad Thoughts, Anger, Lust, Maya etc like vices. By performing Yagya all the evils in your body are destroyed. Environment becomes pure and sacred. Our vices too are destroyed from their root. Mind and thought are cleansed,our body/ house seems like heaven.
त्वम॑ग्ने॒ प्रय॑तदक्षिणं॒ नरं॒ वर्मे॑व स्यू॒तं परि॑ पासि वि॒श्वतः॑ ।
स्वा॒दु॒क्षद्मा॒ यो व॑स॒तौ स्यो॑न॒कृज्जी॑वया॒जं यज॑ते॒ सोप॒मा दि॒वः ॥
Translation:-
त्वम् - You.
अग्ने - Agnidev!
प्रयतदक्षिणाम् - To do Charity.
नरम् - For Men.
वर्म इव - With armour.
स्यूतम् - Sewn.
परिपासि - To save.
विश्वतः - From all four sides.
स्वादुक्षद्मा - Tasty food.
यः - Whose.
वसतौ - Our house.
स्योनकृत - Comfortable.
जीवायाजम् - Satisfied insects.
यजते - To perform Yagya.
सः - This.
उपमा - Of heaven.
दिवः - Example.
Explanation:-This mantra is addressed to Agnidev. It says that Agnidev becomes the protective armour of hardworking good yajmans. The Yajmans who perform Yagya in their house by making offerings to the Agnidev are not only happy but get compared to heaven.
Deep meaning:- Here Protection means external and internal protection. Internal protection denotes that we destroy our Bad Thoughts, Anger, Lust, Maya etc like vices. By performing Yagya all the evils in your body are destroyed. Environment becomes pure and sacred. Our vices too are destroyed from their root. Mind and thought are cleansed,our body/ house seems like heaven.
#मराठी
ऋग्वेद १.३१.१५
त्वम॑ग्ने॒ प्रय॑तदक्षिणं॒ नरं॒ वर्मे॑व स्यू॒तं परि॑ पासि वि॒श्वतः॑ ।
स्वा॒दु॒क्षद्मा॒ यो व॑स॒तौ स्यो॑न॒कृज्जी॑वया॒जं यज॑ते॒ सोप॒मा दि॒वः ॥
भाषांतर :
त्वम् - आपण.
अग्ने - अग्निदेव!
प्रयतदक्षिणाम् - दक्षिणा दिलेल्या.
नरम् - पुरूषास.
वर्म इव - कवच सारखे.
स्यूतम् - सिलले.
परिपासि - वाचवणे.
विश्वतः - चारही बाजू.
स्वादुक्षद्मा - स्वादिष्ट अन्न.
यः - जे.
वसतौ - आपले घर.
स्योनकृत् - सुखकारी.
जीव याजम् - जीव संतुष्ट होणे.
यजते - यज्ञ करणे.
सः - जे.
उपमा - दृष्टान्त.
दिवः - स्वर्गातील
भावार्थ:ह्या मंत्रात अग्निदेवांना संबोधित करून म्हटले आहे की ते पुरूषार्थ असलेल्या यजमानांचे कवच बनून त्यांचे रक्षण करतात.जे यजमान आपल्या घरी यज्ञ करून त्यांना मधुर हविश प्रदान करतात,ते मात्र स्वर्ग सुखाची प्राप्ति होते.
गूढार्थ: इथे सुरक्षेचे तात्पर्य म्हणजे बाह्य आणि आंतरिक सुरक्षा.आंतरिक सुरक्षा म्हणजे आमचे विचार,काम,क्रोध, माया,मोह, या आसक्तिंंना नष्ट करने. यज्ञ केल्यावर नकारात्मक ता समाप्त होत असते,वातावरण ही शुद्ध आणि पवित्र होते.आमचे विकार समूळ नष्ट होतात.मन,विचार शुध्द होतात.आमचे घर रूपी शरीर स्वर्गासारखे होते.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३१.१५
त्वम॑ग्ने॒ प्रय॑तदक्षिणं॒ नरं॒ वर्मे॑व स्यू॒तं परि॑ पासि वि॒श्वतः॑ ।
स्वा॒दु॒क्षद्मा॒ यो व॑स॒तौ स्यो॑न॒कृज्जी॑वया॒जं यज॑ते॒ सोप॒मा दि॒,वः ॥
अनुवाद:
त्वम् - आप।
अग्ने - अग्निदेव!
प्रयतदक्षिणाम् - दक्षिणा दिये हुए।
नरम् - पुरूष को।
वर्म इव - कवच के समान।
स्यूतम् - सिले हुए।
परि पासि - बचाना।
विश्वतः - सब तरफ से।
स्वादुक्षद्मा - स्वादिष्ट अन्न।
यः - जो।
वसतौ - अपने घर।
स्योनकृत - सुखकारी।
जीव याजम् - जीव संतुष्ट होना।
यजते - यज्ञ करना।
सः - वह।
उपमा - दृष्टान्त।
दिवः - स्वर्ग का।
,
भावार्थ:इस मंत्र में अग्निदेव को संबोधित करते हुए कहा गया है कि वे उन पुरूषार्थी यजमानो के कवच बनकर उनकी सुरक्षा करते हैं। जो यजमान अपने निवास पर यज्ञ करते हुए मधुर हवि प्रदान करता है वह केवल सुखी ही नहीं होता बल्कि स्वर्ग के समान वाली उपमा पाता है।
गूढार्थ: यहां सुरक्षा से तात्पर्य है आंतरिक और बाहरी सुरक्षा।हमारे विचार क्रोध,अहंकार माया,मोह,आदि आसक्तियों को नष्ट करना ही आंतरिक सुरक्षा है।यज्ञ करने से बुराईयों का नाश तो होता ही है,वातावरण भी पवित्र और शुद्व होता है। हमारे विकार भी समूल नष्ट होते हैं। मन,विचार शुद्ध होते हैं,हमे घर रूपी शरीर स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है।
Comentarios