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Writer's pictureAnshul P

RV 1.30.1

Updated: Aug 18, 2020


PERFORM YOUR KARMA WITH HAPPINESS BUT NOT AIMLESSLY


Rig Ved 1.30.1


आ व॒ इंद्रं॒ क्रिविं॑ यथा वाज॒यंतः॑ श॒तक्र॑तुं ।

मंहि॑ष्ठं सिंच॒ इंदु॑भिः ॥


Translation :


वाजयन्त - Praying for Foodgrains.


वः - Related to you.


शतऋतुम् - Thousands of work.


मंहिष्ठम् - Big.


इन्द्रम् - For Indra.


क्रिविम् यथा - Like a well.


इन्दुभिः - Of Somras


आ सिञ्चे - Satisfied in all ways.


भावार्थ:In this mantra the disciples of Muni Shunah Shep tell the Yajmans that when we desire foodgrains we satisfy the great Indra who does your thousands of work by feeding him Somras until he is full of satisfaction just as we flood the well with lots of water.


Deep meaning: Flooding here means filling,happiness, excitement. When we wish to get something from the Deities then first we have to create the situation for him to give.Indra means Karma or work.In practical life too we dont gain anything without working for it.But this Karma should not be aimless and directionless. Shruti Bhagwati is inspiring us to perform our work with a sense of purpose and direction. Aim should be of unattachment and Supreme Happiness(Parmanand ). This act can be Physical or Spiritual but it should not be of negligence or prejudice but should be done with belief, Patience, Happiness and excitement. Then only you will be satisfied.



#मराठी


ऋग्वेद १.३०.१


आ व॒ इंद्रं॒ क्रिविं॑ यथा वाज॒यंतः॑ श॒तक्र॑तुं ।

मंहि॑ष्ठं सिंच॒ इंदु॑भिः ॥


भाषांतर:


वाजयन्त - धनधान्यासाठी प्रार्थना.


वः - आपल्याशी संबंधित.


शतऋतुम् - शेकडो कर्म.


मंहिष्ठम् - जास्त वाढलेले.


इन्द्रम् - इन्द्रांना.


क्रिविम् यथा - विहीर सारखे.


इन्दुभिः - सोमरसाचा.


आ सिञ्चे - प्रत्येक रीती ने तृप्त.


भावार्थ:ह्या मंत्रात मुनि शुनःशेपांचे शिष्य यजमानांना म्हणत आहे की धनधान्याची इच्छा ठेवून आम्ही तुमच्याशी संबंधित शेकडो कार्य करणारे अतिशय मोठे इन्द्रांना सोमरस देउन त्याच प्रकारे तृप्त किंवा आप्लावित करणार जशी विहीराला पाण्याने भरले जातो.


गूढार्थ:इथे आप्लावित होण्याचे अर्थ आहे भरून जाणे किंवा आनंदित होणे,उल्लासाने भरून जाणे.जर आपण कुठल्याही देवतांचे कडे काही प्राप्त करण्याची इच्छा करत असतो तरी आम्हाला त्याचा साठी एक स्थितीची निर्मिती करायची असते ज्या अनुषंगाने देवता आमच्या वर लक्ष टाकणार.इन्द्रेचा अर्थच आहे कर्म.व्यावहारिक जीवनात पण कर्म केल्यावरच फळाची प्राप्ति होते.परंतू हे कर्म लक्ष्यविहीन आणि दिशाविहीन नसले पाहिजे. श्रुति भगवती लक्ष आणि दिशेने केलेले कर्म करण्याची प्रेरणा देत आहेत. लक्ष्य आहे की निर्लिप्त भावना आणि परमानंद. हे लक्ष्यपूर्ण दिशेने केलेले कर्म भौतिक किंवा आध्यात्मिक होउ शकतात पण ते प्रमाद रहित असले पाहिजे आणि धैर्य, आस्था, विश्वास, आनंद आणि उत्साहाने झाले पाहिजे.तरच आम्हास तृप्ति होणार.


#हिन्दी


ऋग्वेद १.३०.१


आ व॒ इंद्रं॒ क्रिविं॑ यथा वाज॒यंतः॑ श॒तक्र॑तुं ।

मंहि॑ष्ठं सिंच॒ इंदु॑भिः ॥


अनुवाद:


वाजयन्त - अन्न के लिए प्रार्थना।


वः - आप से संबंधित।


शतऋतुम् - सैकडो कर्म।


मंहिष्ठम् - बहुत अधिक बढे हुए।


इन्द्रम् - इन्द्र को।


क्रिविम् यथा - कूप जैसा।


इन्दुभिः - सोमरस से।


आ सिञ्चे - सब ओर से संतुष्ट होना।


भावार्थ:इस मंत्र में मुनि शुनःशेप के शिष्य यजमानों को कह रहें हैं कि अन्न की इच्छा करते हुए हम लोग तुमसे संबंधित सैकडो कर्म करनेवाले अतिशय बढे हुए इन्द्र को सोमरस से उसी प्रकार तृप्त करते हैं या आप्लावित कर देते है जिस प्रकार किसी कूप के जल को आप्लावित किया जाता है।


गूढार्थ: यहां आप्लावित करने का अर्थ है भरना,आनंदित करना, उल्लासित करना। हम जब किसी देवता से कुछ लेना चाहते हैं तो पहले उसके लिए स्थिति का निर्माण करना पडता है कि वे हमें कुछ दें। इन्द्र का अर्थ ही है कर्म ।वैसे भी व्यावहारिक जीवन में बिना कर्म किये कुछ नहीं मिलता। पर यह दिशाहीन और लक्ष्यविहीन नहीं होना चाहिए। श्रुति भगवती हमें लक्ष्य और दिशा के साथ कर्म करने की प्रेरणा देती हैं। लक्ष्य है कि हम निर्लिप्त भाव को और परमानन्द को प्राप्त हों। ये लक्ष्यपूर्ण दिशा के साथ सार्थक कर्म चाहे भौतिक हों या आध्यात्मिक, वे प्रमाद रहित हों और आस्था, धैर्य, विश्वास, आनंद और उत्साह के साथ करना चाहिए। तब तृप्ति और संतुष्टि मिलेगी।



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