VED MANTRAS ARE THE SOURCE OF PURIFICATION.
Rig Ved 1.30.10
Ved mantras not only purify you but also purify the environment around you. One should remember the Parmatma through Ved mantras and if we recite it through singing then it becomes more worthy. Ved mantras are the path leading to welfare of the World @ RV 1.30.10
तं त्वा॑ व॒यं वि॑श्ववा॒रा शा॑स्महे पुरुहूत ।
सखे॑ वसो जरि॒तृभ्यः॑ ॥
Translation :
विश्ववार - Respected by all.
पुरहुत - Worshipped by many.
सखे - Dear like a friend.
वसो - Reason for staying.
तम् - they.
त्वा वयम् - Yours.
जरितृभ्य - Benefit to Yajmans.
आ शास्महे - To pray.
Explanation :This mantra is addressed to Indra in which the Priests describe him as the most worshipped foremost Deity.They pray to him through their chants.They further say that you are the benefactor and friend to many.We request you bestow your bounty on the yajmans singing your praises.
Deep meaning: Ved mantras not only purify you but also purify the environment around you. One should remember the Parmatma through Ved mantras and if we recite it through singing then it becomes more worthy. Ved mantras are the path leading to welfare of the World.
# मराठी
ऋग्वेद १.३०.१०
तं त्वा॑ व॒यं वि॑श्ववा॒रा शा॑स्महे पुरुहूत ।
सखे॑ वसो जरि॒तृभ्यः॑ ॥
भाषांतर :
विश्ववार - सर्वांचे वरणीय.
पुरहुत - अनेकांचे आहूत.
सखे - मित्रा सारखा प्रिय.
वसो - निवासाचे कारण.
तम् - त्या.
त्वा वयम् - आपले आम्ही.
जरितृभ्य - स्तोतांच्या अनुग्रहासाठी.
आ शास्महे - प्रार्थना करणे.
भावार्थ:ह्या मंत्रात इन्द्रांचा आवाहन करून म्हटले आहे की ते विश्ववरणीय आहेत. त्यांचा आवाहन सगळे स्तोत्रांच्या माध्यमाने करतात. त्यांचे अनेक आश्रयदाता आणि मित्र आहेत.आम्ही आपल्यास आवाहन करतो की आपण आम्ही ऋत्विक निवेदित करतो की त्या स्तोतांना अनुग्रहित करा.
गूढार्थ: वेद मंत्रांच्या उच्चारणाने आपण पवित्र तर होतोच आणि वातावरणास पण शुद्ध करतो.वेद मंत्रांच्या माध्यमातून परमात्माना स्मरण केले पाहिजे, जर ते गाणीच्या अंदाजात केले तर अतिशय उत्तम.विश्व कल्याणाचा मार्ग आहे वेदमंत्र.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३०.१०
तं त्वा॑ व॒यं वि॑श्ववा॒रा शा॑स्महे पुरुहूत ।
सखे॑ वसो जरि॒तृभ्यः॑ ॥
अनुवाद:
विश्ववार - सबके वरणीय।
पुरहुत - अनेको के द्वारा आहूत।
सखे - मित्र के समान प्रिय।
वसो - निवास का कारण।
तम् - उन।
त्वा वयम् - आपकी हम।
जरितृभ्य - स्तोताओं के अनुग्रह के लिए।
आ शास्महे - प्रार्थना करना।
भावार्थ:इस मंत्र में इन्द्र का आवाहन करते हुए कहा गया है कि वे विश्ववरणीय हैं।उनका आवाहन सभी लोग स्त्रोतों के माध्यम से करते ही हैं।आपने बहुतों के आश्रय दाता और मित्र हैं। आप से हम ऋत्विज लोग उन स्तोताओं को अनुग्रहित करने का निवेदन करते हैं।
गूढार्थ:-वेद मंत्र उच्चारण से सिर्फ आप ही पवित्र नहीं होते बल्कि आसपास का वातावरण भी शुद्ध होता है। वेद मंत्रों द्वारा ही परमात्मा को रोज याद करना चाहिए और अगर वेद मंत्र गायन के साथ हो तो फिर तो कहना ही क्या। विश्व के कल्याण का मार्ग है वेद है वेद मंत्र।
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