DESTROY YOUR ATTACHMENTS AND BRING OUT YOUR REAL SELF.
Rig Ved 1.30.14
Here the two wheels stand for Maya(illussions) , Moha(attachment) and the other is Ahankar (ego), Mamta(love). If we destroy them then there is no fault within us. Perform your duties without any attachments.
आ घ॒ त्वावा॒न्त्मना॒प्तः स्तो॒तृभ्यो॑ धृष्णविया॒नः ।
ऋ॒णोरक्षं॒ न च॒क्र्योः॑ ॥
Translation :
धृष्णो - Oh! Indra, the one with patience.
त्वावान् - Deity like you.
त्मना - Yourself.
आप्तः - After receiving.
इयानः - The one who is pleading.
स्तोतृभ्य - The one singing praises.
घ - Sure.
चक्रयो - Of the chariots wheels.
अक्षम् - Of hub(centre of where).
न - Equal.
आ ऋणोः - Put it in front.
Explanation- This mantra is addressed to Indra.It says" . Oh the one with Patience! You are requested to fulfill the desires of Yajmans through your healing and best knowledge. Just as the hub where the two wheels of a chariot meet, similarly you help the Yajmans.
Deep meaning:- Here the two wheels stand for Maya(illussions) , Moha(attachment) and the other is Ahankar (ego), Mamta(love). If we destroy them then there is no fault within us. Perform your duties without any attachments.
📸Credit-Ramkebhakth
#मराठी
ऋग्वेद १.३०.१४
आ घ॒ त्वावा॒न्त्मना॒प्तः स्तो॒तृभ्यो॑ धृष्णविया॒नः ।
ऋ॒णोरक्षं॒ न च॒क्र्योः॑ ॥
भाषांतर:
धृष्णो - हे धैर्ययुक्त इन्द्र!
त्वावान् - आपले सारखे देव.
त्मना - स्वयं.
आप्तः - प्राप्त होणे.
इयानः - याच्यमान.
स्तोतृभ्य - स्तुति कर्ता.
घ - अवश्य.
चक्रयो - रथाच्या चाकांचे.
अक्षम् - धुरेतल्या.
न - समान.
आ ऋणोः - आणून समोर टाकणे.
भावार्थ -
ह्या मंत्रात इंद्राला संबोधित करून म्हटले आहे की , " हे धैर्यवान इंद्रा ! आपल्या ज्ञानाने व उपचारांने यजमानांच्या सगळ्या इच्छा आपण पूर्ण कराव्यात ही विनंती आहे .जशी रथाची दोन चक्र एकाच धुरीने ( आस ) मिळतात (एकत्र येतात ) , तशीच आपण यजमानांना मदत करावी.
गूढार्थ: इथे रथाचे दोन्ही चाक म्हणजे पहिला माया आणि मोह व दूसरा आहे अहंकार आणि ममता.ह्याना समाप्त करायचा असतो.असे केल्यावर संपूर्ण दोष नष्ट होतात.
# हिन्दी
ऋग्वेद १.३०.१४
आ घ॒ त्वावा॒न्त्मना॒प्तः स्तो॒तृभ्यो॑ धृष्णविया॒नः ।
ऋ॒णोरक्षं॒ न च॒क्र्योः॑ ॥
अनुवाद:
धृष्णो - हे धैर्य युक्त इन्द्र!
त्वावान् - आपके समान देव।
त्मना - स्वयं।
आप्तः - प्राप्त होकर।
इयानः - याचनाकर्ता।
स्तोतृभ्य - स्तुति करनेवाला।
घ - अवश्य।
चक्रयो - रथ के पहियों के।
अक्षम् - धुरे के।
न - समान।
आ ऋणोः - लाकर सामने डालें।
भावार्थ:इस मंत्र में कहा गया है कि हे धैर्यशाली इन्द्र!आप कल्याणकारी बुद्धि से स्तुति करनेवाले यजमानो को उनका अभिष्ट प्रदान करने की कृपा करें। आप स्तोताओं को धन देने के लिए रथ के चक्रों को मिलाने वाली धुरी के समान ही उनकी सहायता करें।
गूढार्थ: यहां रथ के पहिये हैं माया और मोह दूसरा है अहंकार और ममता इनको समाप्त करना है।ऐसा करने पर सारा दोष समाप्त हो जाएगा।
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