CHAITANYA DEVTAS AND DHYULOK.
Rig Ved 1.30.19
With the inspiration of rishis, the Devtas fulfill the physical, spiritual and materialistic wishes. In order to keep our body healthy we have to consume food in Prithvilok. But in the other Loks since the devtas are the consciousness incarnate,they roam around without feeling hungry or thirsty. By using the allegory of Ashwini Kumars, it says that the one worshipping Parmatma, desires to be under his shelter @ 1.30.19
न्य१॒॑घ्न्यस्य॑ मू॒र्धनि॑ च॒क्रं रथ॑स्य येमथुः ।
परि॒ द्याम॒न्यदी॑यते ॥
Translation :
अध्न्यस्य - Indestructible.
मूर्धनि - On the highest peak.
रथस्य चक्रम - Wheels of the Chariot.
नि येमथुः - To regularize.
अन्यतः - Second.
परि द्याम् - Around Dhyulok.
ईयते - To go around.
Explanation:This mantra says that Shunah Shep Muni tells the Ashwini Kumars that one wheel which is a symbol of nourishing activity is on the top of the peak and the other wheel which represents environment, is going around Dhyulok.
Deep meaning: With the inspiration of rishis, the Devtas fulfill the physical, spiritual and materialistic wishes. In order to keep our body healthy we have to consume food in Prithvilok. But in the other Loks since the devtas are the consciousness incarnate,they roam around without feeling hungry or thirsty. By using the allegory of Ashwini Kumars, it says that the one worshipping Parmatma, desires to be under his shelter.
#मराठी
ऋग्वेद १.३०.१९
न्य१॒॑घ्न्यस्य॑ मू॒र्धनि॑ च॒क्रं रथ॑स्य येमथुः ।
परि॒ द्याम॒न्यदी॑यते ॥
भाषांतर :
अध्न्यस्य - अविनाशी.
मूर्धनि - शिखरावर
रथस्य चक्रम - रथाचे चाक.
नि येमथुः - नियमित करणे.
अन्यतः - दूसरे.
परि द्याम् - द्युलोकात चहुबाजूंनी.
ईयते - फिरणे.
भावार्थ:ह्या मंत्रात शुनःशेप अश्विनीकुमारांना म्हणत आहे की आपल्या रथाचे एक चाक,जे पोषण प्रक्रियेचा प्रतीक आहे,तो पर्वताच्या शिखरावर आणि दूसरे चाक,जे पर्यावरण चे प्रतीक आहे ते द्युलोकात फिरत आहे.
गूढार्थ: इथे ऋषी लोकांच्या प्रेरणे तून देवता लोक दैहिक, दैविक आणि भौतिक कामनांची पूर्तता करतात.आपल्या पृथ्वीलोकात आपले शरीर पूष्ट ठेवण्यासाठी आम्हास आहार ग्रहण करावा लागतो,परंतू अन्य लोकात सर्व स्वतः चैतन्य असून त्यांना भूक आणि क्षुधाची जाणीव नसते.जशी स्वप्नात आपण भौतिक शरीर विना पण व्यवहार करत असतो,तशी देवतांची अनवरत गति अन्य लोकात फिरून येण्याची असते.इथे अश्विनीकुमारआमचे रूपक बनवून प्रार्थना करणाऱ्याना परमात्माचे आश्रयात राहायचे आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३०.१९
न्य१॒॑घ्न्यस्य॑ मू॒र्धनि॑ च॒क्रं रथ॑स्य येमथुः ।
परि॒ द्याम॒न्यदी॑यते ॥
अनुवाद:-
अध्न्यस्य - जिसका नाश असंभव है।
मूर्धनि - ऊंचाई या शिखर पर।
रथस्य चक्रम - रथ के पहिये का।
नि येमथुः - नियमित करना।
अन्यतः - दूसरा।
परि द्याम् - द्युलोक के चारों ओर।
ईयते - घूमना।
भावार्थ:इस मंत्र में मुनि शुनःशेप अश्विनी कुमारो से कह रहे हैं कि आप के रथ का एक पहिया जो पोषण प्रक्रिया का प्रतीक है,उसे आपने पर्वत के शिखर भाग में और दूसरे पहिये को द्युलोक में जो पर्यावरण चक्र के रूप में स्थित है ,उसे वहां द्युलोक में घूमा रहे हैं।
गूढार्थ:यहां ऋषि की प्रेरणा से देवता लोग दैहिक,दैविक और भौतिक कामना की पूर्ति करते हैं। इस लोक में हमे शरीर को पुष्ट रखने के लिए आहार की आवश्कता पडती है,परंतु उस लोक में सब स्वतः चैतन्य हैं,उन्हें क्षुधा, भूख नही लगती,जैसे स्वप्न में हम बिना भौतिक शरीर के विहार कर लेते हैं तो अन्य लोकों में उनकी अनवरत गति होती है। अश्विनी कुमारों का एक रूपक लेकर के कहा गया है कि प्रार्थना करनेवाला परमात्मा के आश्रय में रहे।
Comments