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Writer's pictureAnshul P

RV 1.30.21

Updated: Sep 9, 2020


MIND IS FICKLE, NEEDS CONTROLLING.


Rig Ved 1.30.21


This mantra describes the greatness or Majesty of Parmatma. We acquire this knowledge not through wisdom or intellect but through dedication towards him. Real dedication is the one where you surrender your mind and knowledge in Parmatma's feet. Knowledge has a tendency to corrupt as it has many faults.But dedication is self induced.


व॒यं हि ते॒ अम॑न्म॒ह्यांता॒दा प॑रा॒कात् ।

अश्वे॒ न चि॑त्रे अरुषि ॥


Translation:


अश्वे - Oh the generous one!


चित्रे - Oh the wonderful one!


अरूषि - Oh the one with interesting nature!


हि - Well known.


वयम् - We all.


ते - Yours.


आ अन्तात् - From near.


आ पराकात् - From far.


न - No.


अमन्महि - Knows everything.


Explanation - In this mantra the morning Goddess Usha is being Praised.It describes her as the generous one with wonderful appearance and interesting nature. A7 common man cannot understand her ability neither from near nor far.


Deep meaning; This mantra describes the greatness or Majesty of Parmatma. We acquire this knowledge not through wisdom or intellect but through dedication towards him. Real dedication is the one where you surrender your mind and knowledge in Parmatma's feet. Knowledge has a tendency to corrupt as it has many faults.But dedication is self induced.


RigVedPositivity




#मराठी


ऋग्वेद १.३०.२१


व॒यं हि ते॒ अम॑न्म॒ह्यांता॒दा प॑रा॒कात् ।

अश्वे॒ न चि॑त्रे अरुषि ॥


भाषांतर :


अश्वे - हे उदार स्वभाव युक्त!


चित्रे - हे अद्भुत स्वरूप!


अरूषि - हे उज्वलता देणारी!


हि - प्रख्यात.


वयम् - आम्ही सर्व.


ते - आपले.


आ अन्तात् - जवळ.


आ पराकात् - दूर हून.


न - नाही.


अमन्महि - ज्ञाता.


भावार्थ - ह्या मंत्रात प्रातःकाळाची देवी उषा ह्यांची प्रशंसा करत म्हटले आहे की ते उदार स्वभावाची, अद्भुत स्वरूप युक्त आणि उज्वलता देणारी आहे.साधारण मनुष्य तिला जवळून किंवा दूरून समझण्यास असमर्थ आहे.


गूढार्थ; इथे वास्तवात विभूतींच्या चर्चा केलेली आहे,महिमाची बातमी केलेली आहे.ह्याचे ज्ञान बुद्धी ने नव्हे पण समर्पणातून होते.समर्पणचा अर्थ आहे की आम्ही परमात्मेच्या चरणी मन आणि बुद्धीना ठेवू.बुद्धी सर्वात मोठी अडचण आहे कारण त्या मधे विकार जन्म घेतात, परंतू समर्पण स्वयंस्फूर्त आहे.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३०.२१


व॒यं हि ते॒ अम॑न्म॒ह्यांता॒दा प॑रा॒कात् ।

अश्वे॒ न चि॑त्रे अरुषि ॥


अनुवाद:


अश्वे - हे उदार स्वभाव युक्त!


चित्रे - हे अद्भुत स्वरूप!


अरूषि - हे रोचक स्वभाव वाले!


हि - प्रख्यात।


वयम् - हम सब।


ते - आपके।


आ अन्तात् - पास ही।


आ पराकात् - दूर से।


न - नहीं।


अमन्महि - जानकार।


भावार्थ - इस मंत्र में प्रातःकाल की देवी उषा की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि की वे उदार स्वभाव वाली,अद्भुत स्वरूप युक्त तथा रोचक स्वभाव की हैं। साधारण मनुष्य उनके इस विराट स्वरूप के पास तो क्या दूर से भी समझने में असमर्थ है।


गूढार्थ: यहां वास्तव में विभूतियों की चर्चा की गई है,महिमा से की गई है।इसका ज्ञान बुद्धि से नहीं बल्कि समर्पण से होता है।समर्पण का अर्थ है हम परमात्मा के चरणों में मन और बुद्धि को रख दें। बुद्धि ही हमारे लिए सबसे बडी बाधक है। बुद्धि में तो बहुत से विकार भी पैदा होते हैं, परंतु समर्पण तो स्वयं स्फूर्त है।




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